मुसकान- एक जादू भरा कला कौशल

June 1985

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ऐसी प्रकृति किन्हीं विरलों की ही रही जो हँसते रहे और दूसरों को हँसाते रहे। हलकी मुसकान वाला चेहरा देखकर दर्शकों की बाछें खिल उठती हैं। जो ठठाका मारकर हँसना तो कभी-कभी अपमान, उपहास या व्यंग का कारण भी समझा जाता है पर मन्द मुसकान में न मनुष्य की शालीनता घटती है और न किसी को अन्यथा अभिप्राय निकालने का अवसर मिलता है। ऐसे मनुष्य कम ही होते हैं पर जो होते हैं वे अपनी इस प्रसन्नता अभिव्यक्ति से समूचे संपर्क क्षेत्र को उल्लेखित बनाये रहते हैं। जिनने इस आदत का महत्व न समझा हो उन्हें समझना चाहिए और धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाते हुए इस प्रवृत्ति को विकसित करना चाहिए। ऐसा व्यक्ति सर्वप्रिय बनता है। उसके समीप रहने के लिए सबका मन चलता है। आँखों के आगे से हट जाने पर सूना-सूना लगता है।

प्रसन्न मुख मुद्रा की पूर्णता तभी है जब उसके साथ प्रशंसा और सहानुभूति की अभिव्यक्ति या भी निकलती रहें। संसार में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं जिसमें अच्छाइयों का सर्वथा अभाव हो। ढूँढ़ने पर हर किसी में कुछ न कुछ विशेषता मिल जाती है। चर्चा का प्रसंग आने पर उन्हीं को व्यक्त करना चाहिए। दोष-दुर्गुणों को एकान्त में अथवा अच्छी मुख-मुद्रा देखकर ही करना चाहिए। ताकि व स्वस्थ मनःस्थिति में उस पर विचार करने तथा सुधरने के लिए प्रयत्न कर सके,

कई व्यक्तियों का स्वभाव गम्भीर रहने का होता है वे उदास या निराश प्रतीत होते हैं अथवा चिन्ता मग्न लगते हैं। इस प्रकृति के लोगों को कोई दार्शनिक विद्वान या कार्यों में व्यस्त भले ही मान ले पर उसके साथ सहज सम्बन्ध बनाने का मन नहीं होता। डर रहता है कि कुछ कहने पर वे न जाने उसका क्या अर्थ लगा बैठे और झिड़क न दें या निरुत्तर रहकर अपनी गम्भीरता और भी अधिक रहस्यमय न बना ले।

तुनक मिज़ाज लोगों की संख्या भी कम नहीं होती। यह जल्दबाज और छिद्रान्वेषी होते हैं। हर काम में हर व्यक्ति में, हर परामर्श में वे दुर्भाव छिपा ढूँढ़ते हैं और अन्तरंग भी अहंकार की मात्रा बढ़ी-चढ़ी होने के कारण उबल पड़ते हैं या व्यंग करते हैं। उनकी भवें हर समय चढ़ी रहती हैं। ऐसे नर-नारियों से निपटना टेड़ी खीर है। फिर भी बच्चों को फुसलाने की तरह आरम्भ में उनका रुझान टटोलकर उनके अनुरूप ‘ठकुर सुहाती’ कहनी चाहिए और फिर जैसे-जैसे पारा नीचे उतरता जाय वह बात कहनी चाहिए जो उनके, अपने और सबके हित की है। ऐसे लोग फुसलाने पर प्रसन्न और उदार भी हो जाते हैं और अच्छी मुद्रा में होने पर बात मान भी लेते हैं।

मनुष्य का संपर्क सभी तरह के लोगों से पड़ता है। घर में भी कई प्रकृति के लोग होते हैं उनके साथ विचार विनिमय करने में सबसे बड़ी समस्या उनके मूड- स्वभाव ही होती है। कइयों के बड़े विचित्र स्वभाव होते हैं। कुछ इच्छा के विपरीत कह देने पर या कल्पना से स्थिति को कुछ से कुछ समझकर तुनक जाते हैं और कठिनाई से पटरी पर आते हैं। ऐसे लोगों से जो कहना हो उनका पारा नीचे आने पर ही कहना चाहिए अन्यथा वे सही परामर्श को भी अवज्ञा समझकर उबल भी पड़ते हैं। हर स्थिति में अपना निर्वाह करने के लिए अच्छा तरीका यह है कि अपना मन हलका रखा जाय और मन्द मुसकान चेहरे पर बनाये रखने का अभ्यास करना चाहिए।

प्रसन्न मुख मुद्रा मनुष्य सर्वोत्तम गुण है। इसके लिए किन्हीं लाभदायक या अनुकूल उपलब्धियों की आवश्यकता नहीं। मात्र कुछ दिन के अभ्यास में यह विभूति हाथ लग जाती है। ऐसा मनुष्य कैसे ही वातावरण में- कैसे ही लोगों के बीच क्यों न रहे वह अनेकों आक्रोशों से बचता रहता है। दूसरों को अनुकूल बनाने, उन्हें प्रतिकूल से अनुकूल बनाने में भी ऐसे ही लोग सफल होते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles