व्यास जी बोलते गये और गणेश जी लिखते गये। इस प्रकार जब महाभारत पूरा हो गया तो व्यास जी ने गणेश जी से कहा- मैनें चौबीस लाख शब्द बोले पर उस समय में सर्वथा मौन रहे। एक शब्द भी न कहा। गणेश जी ने कहा- वादरायण, सभी प्राणियों में सीमित प्राण शक्ति है। जो उसे संयमपूर्वक व्यय करते हैं वे ही उसका समुचित लाभ उठा पाते हैं। संयम ही समस्त सिद्धियों का आधार है और संयम की प्रथम सीढ़ी है- वाचोमुक्ति अर्थात् वाणी का संयम।