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June 1985

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सुना है भगवान अजस्र दानी हैं, पर आपके अजस्र अनुदानों में से एक मुझे चाहिए। “आत्म विश्वास”। लगता रहे, आप सदा मेरे साथ हैं यदि साथ हैं तो भटकने का दुर्दिन नहीं ही आने पायेगा। यदि साथ हैं तो हिम्मत क्यों टूटेगी। यदि साथ हैं तो संकट की घड़ियों में रोने कलपने और जिस-तिस को दोष देने का मन भी नहीं होगा।

अजस्र अनुदानों में से केवल एक चाहिए जो हर समय भरोसा दिलाता रहे कि मनुष्य संकटों की तुलना में अधिक मजबूत है। विपत्तियों से जूझ सकता है। अपनी नाव अपने डण्डों के सहारे लेकर खुद पार ले जा सकता है।

आप सहारा दें, तो इतना दें कि और किसी का सहारा न माँगना पड़े। यदि आपके सहारों में भी कई प्रकार होते हों तो वह चाहिए जिसमें आत्म-विश्वास ढीला न पड़ने पाये। पैर लड़खड़ाये न और चुनौतियों को स्वीकार करने में झिझकना न पड़े।

-कविवर रवीन्द्र


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