चन्द्रमा की दो सन्तानें थीं- एक पुत्र और दूसरी पुत्री। पुत्र का नाम पवन और पुत्री का नाम आँधी। पुत्री को एक दिन ऐसा प्रतीत हुआ कि मेरे पिताजी साँसारिक पिताओं की तरह पुत्र और पुत्री में भेद करते हैं। चन्द्रमा आँधी की व्यथा को ताड़ गये। उन्होंने पुत्री को आत्म-निरीक्षण का एक अवसर देने का निश्चय किया।
चन्द्रमा ने आँधी और पवन दोनों को अपने पास बुलाकर कहा- ‘बच्चों! क्या तुमने स्वर्गलोक में इन्द्र के कानन में पारिजात नामक देव वृक्ष को देखा है?
‘हाँ!’ दोनों ने एक स्वर से उत्तर दिया।
‘तो तुम पारिजात की सात परिक्रमा करके आओ।’
पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर दोनों चल दिये, पारिजात देव वृक्ष की ओर। आँधी सिर पर पैर रखकर दौड़ी। वह धूल, पत्ते और तमाम कूड़ा-करकट उड़ाती हुई बात की बात में परिक्रमा करके आ खड़ी हुई। आँधी समझ रही थी पिता का काम कर मैं जल्दी लौटी हूँ तो जरूर पिताजी मेरी पीठ ठोकेंगे।
थोड़ी देर बाद पवन लौटा, पर उसके आगमन पर सोंधी सुगन्ध से सारा भवन महक उठा। चन्द्रमा ने कहा- ‘बेटी! अब तुम अच्छी तरह समझ गई होगी कि जो अत्यधिक तेज गति से दौड़ता है वह खाली झोली लेकर आता है और जिसकी गति स्वाभाविक होती है वह मन को मुग्ध करने वाली सुगन्ध लाता है, जिससे सम्पूर्ण वातावरण सुगन्धित हो जाता है।’