संयोगों के विचित्र किन्तु सुव्यवस्थित घटनाक्रम

January 1985

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संयोग सदा से ही वैज्ञानिकों के लिये चुनौती का विषय रहा है। चमत्कार कहकर वैज्ञानिक स्वयं को नासमझ पिछड़ा हुआ घोषित नहीं करना चाहते, फिर भी उन्हें झुठला नहीं पाते। इसी कारण अपवाद कहकर बहुधा उन्हें टाल दिया जाता है। प्रसिद्ध लेखक-दार्शनिक आर्थर-कोस्लर ने संयोगों को अद्भुत चमत्कार मानते हुए कहा है कि वे दैनंदिन जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, उन्हें नकारा नहीं जाना चाहिए।

पिछले दिनों प्रकाशित ऐलन वॉन की पुस्तक “इन क्रेडिवल कॉइन्सीडेन्स” में कोस्लर की मान्यताओं का प्रतिपादन करते हुए संयोग सम्बन्धी ऐसी एक सौ बावन घटनाओं का उल्लेख किया गया है जिनका प्रत्यक्षतः ढूंढ़ने पर कोई कारण नहीं मिलता। अनेकों वैज्ञानिकों को ये प्रसंग इतने रोचक लगे कि उनसे चुप नहीं बैठे रहा गया। पिछले पाँच दशक की ऐसी सभी घटनाओं का उन्होंने संकलन कर खोज-बीन की व यह पाया कि कोई अदृश्य सत्ता जिसकी अभी खोज नहीं हो पायी है, ऐसे संयोगों के मूल में काम करती है। प्रसिद्ध गणितज्ञ एड्रियन डॉब्स ने विभिन्न परीक्षणों के उपरान्त बताया कि इस निखिल ब्रह्मांड में ऐसी शक्तियाँ निरन्तर गतिशील रहती हैं जो राडार की तरह भावी सम्भावनाओं का पूर्व संकेत दे देती हैं। अपनी पुस्तक “द रूट्स ऑफ कॉरइन्सीडेन्स” में कोस्लर ने डा. डॉब्स के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा है कि ये सन्देश वाहक शक्तियाँ मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियों के सतत् संपर्क में रहती हैं एवं मस्तिष्क में एक प्रकार से पूर्वानुभूति को जन्म देती हैं।

कोस्लर ने मनो विश्लेषक-चिकित्सक जुंग की एक पुस्तक “संयोग” का हवाला देते हुए लिखा है कि जुंग ने भी संयोगों के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए उन्हें सिन्कोनिसीटी (सहसामयिकता) नाम दिया था। जुंग के सहयोगी बुल्फ गैंग पाऊली जो कि भौतिकीविद् हैं, ने तो यह बात कहकर बला टाल दी थी कि संयोग ऐसे सिद्धान्तों के दिखाई देने वाले चिन्ह हैं जिनकी खोज नहीं की जा सकती। लेकिन जुंग ने इतने से सन्तोष नहीं किया, अपनी खोज को आगे जारी रखा। ऐसी हर बात पर जो कारण और परिणाम के सम्बन्धों पर पूरी न उतरती हो, अचेतन का प्रभाव होता है, ऐसा जुंग का मत था। उनका कहना था कि “यह अचेतन मन नहीं स्मृतियों का ऐसा गुप्त आगार है जिससे विभिन्न मस्तिष्क एक दूसरे को अपनी बात पहुँचाते हैं।”

“इनक्रेडिबल कॉइन्सीडेन्स” पुस्तक में ऐलन बान ने एक घटना का उल्लेख किया है। प्रिंस एडवर्ड द्वीप के निवासी कोगलान की टैक्सास स्थित गाल वेस्टन नामक स्थान पर 1899 में एक यात्रा के दौरान मृत्यु हुई। उन्हें वहाँ के एक मकबरे में सीसों की परतों से मढ़े हुए ताबूत में दफना दिया गया। एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था कि सितम्बर 1900 में गाल वेस्टन द्वीप में भीषण तूफान आया और पूरे कब्रिस्तान में पानी भर गया। तूफान की स्थिति में ही कोगलान का ताबूत मकबरे से निकलकर बहता-बहता मैक्सिको की खाड़ी जा पहुँचा। वहाँ से वह ताबूत फ्लोरिडा का चक्कर काटकर अटलांटिक महासागर में आ गया। क्रमशः पानी का प्रवाह उसे उत्तर दिशा में ले गया। आठ वर्ष बाद अक्टूबर 1908 में प्रिंस एडवर्ड द्वीप के मछुआरों ने तूफानी लहरों के बीच पड़े डिब्बे को पानी में तैरते पाया तो उत्सुकता वश किनारे लाकर उसे खोलकर देखा। कोगलान का नाम अंकित देख वे उसे तुरन्त पहचान गए। यह समुद्री किनारा उसके गाँव से कुछ ही मील दूरी पर था। कोगलान के शव को उचित सम्मान के साथ उस गिरजे के कब्रिस्तान में पुनः दफना दिया गया। यह ताबूत भटकते-भटकते किस प्रकार आठ वर्ष बाद मृतक के जन्म स्थान पर पहुँच गया, इस पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है।

आर्थर कोस्लर ने ऐसी अनेकों घटनाओं के विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि “जीव विज्ञान और भौतिक विज्ञान सम्बन्धी आधुनिक खोज प्रकृति की उस मूल शक्ति की ओर प्रबल संकेत करती है जो अव्यवस्था में भी व्यवस्था बनाए रखती है। इसी को देखकर लगता है कि हमारे ज्ञान से परे कोई शक्ति काम कर रही है।”

अपनी पुस्तक “द रूट्स ऑफ कॉइन्सीडेन्स” में कोस्लर ने स्पष्ट लिखा है कि हम निस्सन्देह संयोग परक चमत्कारों से घिरे हैं, जिनके अस्तित्व की अब तक हम उपेक्षा करते रहे हैं। यही कारण है कि इन्हें अन्ध विश्वास से अधिक कुछ माना नहीं गया है। यह रहस्य मनुष्य सदियों तक नहीं समझ पाया कि सूक्ष्म जगत कितना अद्भुत-विलक्षण है, ऐसी कितनी ही घटनाएँ इसकी साक्षी हैं।

प्रसिद्ध लेखक रिचर्ड बॉक 1966 में अमेरिका के मध्य पश्चिम क्षेत्र में दो फलक वाले एक विमान में यात्रा कर रहे थे। यह विमान दुर्लभ प्रकार का था क्योंकि 1929 में निर्मित डेट्राइट-पी-2 ए टाइप के विमान केवल आठ ही बने थे व इतने ही विश्व में थे। विस्कॉन्सिन स्थित पायीरो नामक स्थान में रिचर्ड ने यह विमान अपने को पायलट साथी, मित्र को चलाने के लिये दिया। विमान उतारते समय मित्र से थोड़ी भूल हो गयी और विमान क्षतिग्रस्त हो गया। “नथिंग बायचांस” (कुछ भी अनायास नहीं) नामक पुस्तक में रिचर्ड बॉक स्वयं लिखते हैं कि “हमने दबाव को रोकने वाले एक पुरजे को छोड़कर शेष हर पुरजे की मरम्मत कर दी थी। इस पुरजे की मरम्मत इसलिये न हो सकी कि उसके दुर्लभ होने से वह भाग कहीं भी मिलना सम्भव न था। तभी एक व्यक्ति आया जिसने स्वयं की उत्सुकतावश उनकी परेशानी पूछी। संयोगवश उसकी विमानशाला में उस विमान के उपयुक्त 40 वर्ष पुराना पुर्जा मिल गया व हम विमान को फिर चला पाने में समर्थ हो गए। यह एक संयोग ही था कि उस अपरिचित इलाके में ठीक वही पुर्जा मिल गया जिसे खोज कर हम हार गए थे।”

न्यूजीलैण्ड के कुक जलडमरुमध्य में दो शौकिया नाविक महिलाएँ अपना सप्ताहांत बिता रही थीं। इसी बीच उनकी नाव एक समुद्री चक्रवात में फँसकर उलट गयी। दोनों महिलाएँ कुछ दूर तक तैरीं पर किनारा मीलों दूर था, नजदीक कोई साधन नहीं। इसी बीच एक मृत ह्वेल मछली की लाश पानी में तैरती उनके समीप लहरों के साथ आयी। वे उस पर चढ़कर उसे नाव की तरह खेती हुई किनारे पर आ गयी और सकुशल घर पहुँच गयीं।

फैलमाऊथ (मेन- यू0 एस0 ए0) के एडविन रॉबिन्सन नामक व्यक्ति की आँखों की ज्योति 9 वर्ष पूर्व एक सड़क दुर्घटना में चली गयी थी। उसके चिकित्सक विलियम टेलर ने परीक्षणोपरांत बताया कि अब इसका आना सम्भव नहीं। संयोगवश 1982 की जुलाई में वे अकेले घर लौटते हुए भयंकर वर्षा वाले तूफान में फँस गए। पेड़ के नीचे शरण पाने के लिए उन्होंने अपनी धातु की छड़ी का प्रयोग किया। तभी जोरों से विद्युतगर्जन हुआ और उन्हें लगा कि कहीं समीप ही बिजली गिरी है। वे धक्का खाकर गिर पड़े, लेकिन 5 मिनट बाद जब किसी तरह उठे तो पाया कि उनका श्रवण यन्त्र तो बेकाम हो निकल गया, लेकिन वे इसके बिना भी सुन सकते हैं। प्रसन्न मन वे वापस घर लौटे। चिकित्सकों के अनुसार यह विज्ञान के समझ में न आ पाने वाले कई वैचित्र्यपूर्ण संयोगों में से एक है, जिसका कोई समाधान नहीं दिया जा सकता।

मैरी गैलेन्ट प्रान्त के फ्राँसीसी गवर्नर की तीन वर्षीय पुत्री एक समुद्री यात्रा पर पिता के साथ थी। रास्ते में वह बीमार पड़ी और मर गई। उसकी लाश बोरे में सी-कर बन्द कर दी गई ताकि उस जल में उपयुक्त स्थान पर डाला जा सके। कुछ समय उपरान्त देखा गया कि जहाज में पालतू बिल्ली लाश के पास चक्कर काट रही है। आमतौर से बिल्ली लाश से दूर रहती है। सन्देह हुआ कि कहीं बच्ची जीवित तो नहीं है। 24 घण्टे बीत चुके थे, फिर भी बोरा खोला गया तो देखा कि लड़की की हलकी-हलकी साँसें चल रहीं हैं। उसको उपचार मिला और वह ठीक हो गयी। बड़ी होने पर उसके विवाह फ्राँस के राजा लुई चौदहवें के साथ हुआ और वह 84 वर्ष की आयु तक जीवित रही।

सन् 1825 की घटना है। पश्चिमी जर्मनी के वाइक कस्बे के समुद्र तट पर भयानक समुद्री तूफान आया। असंख्यों परिवार उसमें डूब गए। फिर भी पालने से बँधे दो बच्चे जीवित अवस्था में किनारे पर पड़े पाए गये। किसी माता ने इन बच्चों के तैरने की सुविधा सोचकर पालने से बाँध दिया होगा। वे डूबे नहीं, किनारे आ लगे। उन्हें एक समुद्री जहाज के मालिक ने उठाया और पाल लिया। बड़े होने पर वे उस पालने वाले के उत्तराधिकारी बने और जहाजों के मालिक कहलाए। जिन्दगी उन्होंने समुद्र में ही बिताई और अन्ततः किसी समुद्री तूफान में फँसकर जहाज समेत समुद्र के गर्भ में ही समा गए।

कैन्सास के आर्थर स्टिवैल ने एक लम्बा रेल मार्ग बनाने की जिम्मेदारी ली थी। काम ठीक तरह आरम्भ भी नहीं हो पाया था कि एक अप्रत्याशित झंझट आ खड़ा हुआ। इस जमीन पर एक व्यक्ति ने अपने अधिकार का दावा किया और कोर्ट से निषेधाज्ञा निकलवाकर काम रुकवा दिया। बहुत समय तक इस अवरोध के बाद आर्थर ने सपना देखा कि जमीन का असली मालिक कोई कर्से नामक व्यक्ति है। खोज की गयी। कर्से मर चुका था। उसके उत्तराधिकारी भी इस जमीन के सम्बन्ध में अनभिज्ञ थे। पर जब सपने के हवाले से उसने जबरन कागजों की खोज-बीन कराई तो ऐसे प्रमाण मिल गए जिनसे वे लोग ही जमीन के मालिक सिद्ध होते थे। अन्ततः उन लोगों से समझौता करके रेलवे लाइन का काम फिर चालू किया गया और वह यथासमय पूरा भी हो गया। यह काम पूरा होने पर उसे करोड़ों का लाभ हुआ।

ऐसी ही घटना 15 वीं शताब्दी की है जो लन्दन के समीपस्थ शॉपहान कस्बे में प्रख्यात है। यहाँ एक चर्च है जिसमें एक लकड़ी का पुतला विद्यमान है। इसके नीचे नाम लिखा है- फेरी वाला लॉनचैपमेन। सारे गाँव में इसकी उदारता की अब भी चर्चा होती रहती है। प्रसंग यह है कि चैपमेन को रात्रि में एक स्वप्न में संकेत मिला कि “तुम लन्दन जाओ। वहाँ थेम्स नदी के पुल पर एक आदमी तुम्हें मिलेगा जो गढ़े खजाने के संदर्भ में तुम्हें बताएगा। उसका उपयोग सत्कार्यों में ही करना।”

नींद खुलने पर चैपमेन ने निश्चय किया कि यदि स्वप्न सच है तो वास्तविकता का पता अवश्य लगाना चाहिए। वह पैदल ही लन्दन के लिए रवाना हो 5 दिन बाद थेम्स के पुल पर पहुँचा। वहाँ तीन दिन तक वह टहलता रहा। किन्तु संकोच वश किसी को स्वप्न की बात बता नहीं पाया। उसी समय एक व्यापारी ने उसे एक पुल पर उसे बार-बार टहलते देखकर पूछा कि तुम्हें क्या परेशानी है? चैपमेन ने स्वप्न का जिक्र उसे कह सुनाया। व्यापारी हँसकर बोला कि गाँव के लोग बड़े भोले होते हैं एवं बेकार ही स्वप्नों पर विश्वास कर लेते हैं। आगे वह बोला- ‘‘मुझे भी 3 रात पूर्व एक स्वप्न में संकेत मिला था कि यहाँ से सौ मील दूर शॉपहन कस्बे में चैपमेन नामक एक व्यक्ति मिलेगा। उसके घर के पीछे पेड़ के नीचे एक खजाना गड़ा हुआ मिलेगा। लेकिन मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ नहीं हूँ कि ऐसे ही स्वप्न पर विश्वास कर चैपमेन को ढूंढू व खजाने का पता लगाऊँ?” चैपमेन को इस वार्तालाप से खजाने का संकेत मिल गया। वह चुपचाप वहाँ से अपने घर के पिछवाड़े के पेड़ के नीचे की जमीन खोदना आरम्भ किया। 2 घण्टे के परिश्रम के बाद ही उसे एक बड़े बर्तन में गढ़े हुए सोने एवं चाँदी के सिक्के मिले। उसने यह धन परिवार के लिए तो खर्च किया ही लेकिन मुक्त हस्त से गाँव वालों को भी सम्पत्ति वितरित की। एक चर्च व अस्पताल उसने बनवाया। उसकी मृत्यु के बाद वहाँ के निवासियों ने उसका एक लकड़ी का पुतला बनाकर चर्च में लगाया ताकि उसकी स्मृति अक्षुण्ण रहे।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सन् 1914 में एक जर्मन जासूस पीटर कार्पन, फ्राँस में पकड़ा गया। फ्राँसीसियों ने उसकी गिरफ्तारी को गुप्त रखा, साथ ही उसके नाम से झूठे समाचार जर्मनी भेजते रहे। साथ ही जो वेतन भत्ता जर्मनी से आता उसे झूठे दस्तखतों से वसूल करते रहे। सन् 1917 में पीटर का दाँव लगा एवं वह किसी तरह जेल से निकल भागा। दूसरी ओर पीटर के नाम से मिली धनराशि से गुप्तचर विभाग के लिए एक गाड़ी खरीदी गयी। संयोग की बात कि शहर में घूमते समय एक व्यक्ति उस गाड़ी की चपेट में आ गया। मृतक के बारे में खोज-बीन की गयी तो पता चला कि वह और कोई नहीं, कैद से भागा हुआ जासूस पीटर ही था।

ओहियो के फिलिप रैडेल के दाहिने फेफड़े में एक गोली लगी और इतनी गहरी घुस गयी कि उन दिनों के साधनों को देखते हुए निकालना संभव न था। शल्य चिकित्सकों ने निराशा व्यक्त की और ऑपरेशन करने से इन्कार कर दिया। घायल ऐसे ही अस्पताल में पड़ा रहा। एक दिन उसे जोरों की खाँसी आयी और गोली मुँह के रास्ते बाहर निकल गयी।

संयोगों का सिलसिला अपने आप में बड़ा विचित्र है। संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में 140 वर्षों से एक श्रृंखला-सी घटती चली आ रही है कि प्रति बीस वर्ष के अन्तराल पर वहाँ के राष्ट्रपति की मृत्यु अपने कार्यकाल में ही हो गयी। या तो वे मारे गये या स्वतः मृत्यु को प्राप्त हुए किन्तु अपना कार्यकाल पूरा न कर सके।

सन् 1840 में 68 वर्षीय विलियम हैरीसन राष्ट्रपति बने। मार्च 1841 में उनकी न्यूमोनिया से मृत्यू हो गयी। 1830 में लिंकन राष्ट्रपति बने और उनकी हत्या 1865 में गोली मारकर कर दी गयी। 1880 में प्रेसीडेन्ट गारफील्ड राष्ट्रपति बने किन्तु 1881 में ही एक व्यक्ति की गोली का शिकार हो गए। 1900 में विलियम मैकनले राष्ट्रपति बने और अगले वर्ष गोली लगने के कारण मर गए। 1920 में प्रेसीडेन्ट हार्डिग ने कार्यभार सम्भाला और स्वाभाविक मृत्यु से 1923 में मृत्यु को प्राप्त हुए। 1940 में फ्रैंकलिन रूजवेल्ट राष्ट्रपति बने किन्तु 1945 के आरम्भ में ही मर गए। 1960 में प्रेसीडेन्ट जॉन कैनेडी ने 1963 तक एक नक्स्लवादी फैनेटिक द्वारा गोली मारे जाने तक राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया था।

इनमें से 1860, 1900, 1940 में चुने गए राष्ट्रपति अपने कार्यकाल में तो मृत्यु को प्राप्त हुए ही थे, सब दूसरी बार चुने गए थे। एकमात्र अपवाद 1980 में चुने गए राष्ट्रपति रीगन हैं। संयोग यह भी है कि इस श्रृंखला में वर्णित सभी राष्ट्रपतियों में वे सबसे वयोवृद्ध हैं एवं आगामी चुनाव के लिये इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अपनी पार्टी द्वारा अनुमोदित भी कर दिये गए हैं। संयोगों पर सर्वाधिक विश्वास रखने वाले अमेरिकनों का मत है कि वे भी उसी नियति को प्राप्त होंगे। क्या होना है, यह तो समय बताएगा, किन्तु यह समय से जुड़ी संयोगों की विचित्रता अपने में रहस्यमय है।

मानव जीवन एवं प्रकृति जगत में इसी प्रकार कई बार विचित्र संयोग देखे जाते हैं। वे लगते तो संयोग, दैवी प्रयास, भाग्य जैसे हैं, पर वस्तुतः उनके पीछे विश्व व्यवस्था के किन्हीं अकाट्य नियमों को काम करते समझा जा सकता है और उन रहस्यों का पता लगाते हुए नए सिरे से प्रयास-पुरुषार्थ आरम्भ किया जा सकता है।


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