पेट भरने की फिराक (kahani)

January 1985

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एक सियार सवेरे-सवेरे पेट भरने की फिराक से निकला। छाया लम्बी थी। अपने आकार का अनुमान उसने इसी छाया से लगाया। सोचा इतने बड़े पेट के लिए हाथी का शिकार तो चाहिए ही।

सो वह हाथी खोजने के लिए चल पड़ा। झाड़ियों पर झाड़ियाँ खोजी पर हाथी का पता न चला। कई घंटे बीते और दोपहर हो गयी।

थका सियार सुस्ताने के लिये खड़ा हो गया। छाया पर दुबारा नजर डाली तो वह सिकुड़ कर पैरों के नीचे आ गई थी।

अब उसे नये सिरे से सोचना पड़ा। जब आकार इतना ही छोटा है तब तो वह एक मेंढ़की से भी भर सकता है। उसने चिन्ता छोड़ दी और सरलता से पेट भरकर झाड़ी में सो गया। साढ़े पाँच फुट का मनुष्य क्या जीवन भर यही नहीं करता फिरता।


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