राजा आमात्य जनश्रुति ने महर्षि वशिष्ठ से पूछा- ‘‘भगवान में पुण्यात्मा हूँ। धर्म के नियमों पर चलता हूँ। उपासना में भी चूक नहीं करता फिर भी न मेरा लक्ष्य ही पूरा होता दिखाई पड़ता है, न भीतर का सन्तोष ही मुझे प्राप्त है।”
वशिष्ठ ने कहा- ‘‘वत्स! सदाचरण और साधन का महत्व है किन्तु वे दोनों ही स्नेह और सेवा बिना अपूर्ण रहते हैं। तुम उन दो साधनाओं को भी अपनाकर अपूर्णता दूर करो और समग्र प्रतिफल प्राप्त करो।”