प्रगति और अवगति पुरुषार्थ पर अवलम्बित

January 1985

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कितनी ही मछलियाँ अपने शरीर से बिजली उत्पन्न करती हैं और उसका झटका मारकर शिकार को बेहोश करके उदरस्थ करती हैं। शिकार का यह तरीका अपेक्षाकृत अधिक सरल पड़ता है। शार्क इस प्रकार की मछलियों में प्रसिद्ध है। ह्वेल अपने आकार के अनुसार 600 बोल्ट तक बिजली पैदा करती है। इतना झटका खाकर कोई मजबूत आदमी भी ढेर हो सकता है।

इन मछलियों को ऐसी विशेषता कैसे मिली इसकी खोज करने वालों का कथन है कि विद्युत उत्पादन के अवयव हर मछली में होते हैं। उनके द्वारा उत्पादन भी होता रहता है। पर वे उसे अन्य क्रिया-कलापों में खर्च करने की आदत डाल लेती है। फलतः ऐसा चमत्कार नहीं दिखा पाती जैसा कि शार्क मछली शिकार पर आक्रमण करने के लिए बिजली का प्रहार करने में अभ्यस्त हो गई है। किसी अन्य जाति की मछली को यदि प्रयत्नपूर्वक इसके लिए सधाया जाय तो वह भी वही काम कर सकती है जो शार्क करती है।

मनुष्य शक्तियों का भण्डार है। उसमें इतने अधिक प्रकार की- इतनी अधिक मात्रा में क्षमताएँ विद्यमान हैं कि उनका आभास पाने पर आश्चर्य होता है। वे किसी-किसी में दृष्टिगोचर होती हैं, किसी में नहीं, इसका कारण एक ही है कि जिनने प्रस्तुत भण्डार में से आवश्यक को खोजा और उभारा। उनमें जो काम करने लगी। इसके विपरीत जो अनजान या अकर्मण्य बना रहे उन्हें सामान्य लोगों अथवा गये गुजरों जैसा जीवन व्यतीत करना पड़ा।

भूमि में उर्वरता होती है, पर बिना प्रयत्न किये उसमें से अनायास ही फसल उग पड़े ऐसा कहाँ होता है। पुरुषार्थ छोटे-बड़े हर काम के लिए आवश्यक है, अन्यथा थाली में रखा ग्रास तक मुँह में प्रवेश न कर सकेगा। पुरुषार्थ का तात्पर्य इतना ही है कि जो विद्यमान है उसे सही तरीके से उगाया और काम में लगाया जाय। जो है ही नहीं उसके लिए पुरुषार्थ करने पर भी कुछ बनता नहीं। चट्टान पर उपवन कैसे उगेगा? मानवी पुरुषार्थ की प्रशंसा इसलिए है कि आत्म-सत्ता में- समर्थ काया में- सफलता की अजस्र और अगणित सम्भावनाएँ भरी पड़ी हैं। ईश्वर ने उसे विभूतिवान बनाया है। प्रयत्न करने और समुन्नत बनाने का अवसर प्राप्त करना उसकी अपनी मर्जी पर निर्भर है।

संसार में अनगिनत विशिष्ट व्यक्ति हुए हैं। उनमें अपनी-अपनी मर्जी से क्षेत्रों में असाधारण सफलताएँ प्राप्त की हैं। उन उपलब्धियों को देखकर उन्हें चमत्कारी, भाग्यवान अथवा वरदान सम्पन्न बताया है पर वस्तुतः ऐसा कुछ भी होता नहीं है। सूझ-बूझ, लगन और मेहनत का नाम ही चमत्कार है। यह वैभव हर किसी के पास समुचित मात्रा में विद्यमान है पर उसे समझने और कुरेदने का कोई बिरले ही प्रयत्न करते हैं।

राबर्ड एल॰ बिले ने रहस्य रोमाँच भरे ऐसे घटना क्रमों को खोजा, जिन पर मनुष्य को सहज विश्वास नहीं होता। इसके लिए उसने पुस्तकों से संकलन नहीं किया वरन् 198 देशों में भ्रमण करके जो सामग्री जुटाई उसके प्रमाण और चित्र भी एकत्रित किये। इस प्रयास के लिए इंग्लैण्ड के राजा ने उसे दूसरा मार्कोपोलो कहा।

यही व्यक्ति कार्टन निर्माता के रूप में भी प्रख्यात हुआ। उसके बनाये व्यंग चित्र 38 देशों के प्रायः 300 समाचार पत्रों में 18 भाषाओं प्रकाशित होते रहे। इन अखबारों की पाठक संख्या करोड़ों थी।

ऐसे उदाहरणों में भूतकालीन इतिहास के अगणित पृष्ठ भरे पड़े हैं और सभी भी आये दिन ऐसे घटनाक्रम सामने से गुजरते रहते हैं। शरीर की संरचना की दृष्टि से लोगों के बीच नगण्य-सा अन्तर है। मस्तिष्क भी न्यूनाधिक मात्रा में एक जैसा ही है। कठिनाइयों और सुविधाओं के अवसर हर किसी के सामने रहते हैं। सहयोगी और विरोधी हर किसी का पीछा करते हैं। फिर कुछ ऊँचे उठते हैं कुछ नीचे गिरते हैं, और कुछ त्रिशंकु की तरह बीच में लटके रहते हैं। यह उनकी निजी प्रतिभा और तत्परता के न्यूनाधिक होने की परिणति है। उन्हें घटाने-बढ़ाने हेतु मनुष्य स्वयं ही उत्तरदायी है।


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