भक्त ने भगवान की मनोमुग्धकारी प्रतिमा देखी। देर तक टक-टकी लगाये रहा और बोला- कितने सुन्दर हैं आप जिनकी छवि देखते-देखते नेत्र अघाते नहीं।
प्रतिमा तनिक मुस्कराई और संकेत में कहा- “सौंदर्य तो उस कला में खोजो, जिसके सहारे किसी अनगढ़ पत्थर से बदल कर मुझे इस स्थिति तक पहुँचाया।”