मनोमुग्धकारी प्रतिमा देखी (kahani)

January 1985

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भक्त ने भगवान की मनोमुग्धकारी प्रतिमा देखी। देर तक टक-टकी लगाये रहा और बोला- कितने सुन्दर हैं आप जिनकी छवि देखते-देखते नेत्र अघाते नहीं।

प्रतिमा तनिक मुस्कराई और संकेत में कहा- “सौंदर्य तो उस कला में खोजो, जिसके सहारे किसी अनगढ़ पत्थर से बदल कर मुझे इस स्थिति तक पहुँचाया।”


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