शान्तिकुञ्ज अन्ततः शक्ति केन्द्र के रूप में परिणत होगा।

May 1972

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सात ऋषियों की ऐतिहासिक तपोभूमि सप्त सरोवर वह स्थान है जहाँ तप करते हुए सातों ऋषियों की साधना में विघ्न उत्पन्न न होने देने के विचार से अवतरित हुई भगवती गंगा सात भागों में विभक्त हो गई थी। पुराणों में इस तथ्य का जगह-जगह वर्णन है। हरिद्वार-हिमालय का द्वार है, यहाँ से आगे उत्तराखण्ड आरम्भ हो जाता है। भगवान् राम ने इसी क्षेत्र में अपने भाइयों समेत वृद्धावस्था में तप साधना की थी। देवप्रयाग में भगवान राम, लक्ष्मण झूला में लक्ष्मण जी, ऋषिकेश में भरत और मुनि की रेती में शत्रुघन के तप कुटीर थे। यह क्षेत्र गुरु देव को अधिक भाया। जीवन का अंतिम समय हिमालय पिता और गंगा माता की गोदी में खेलते हुए एकान्त तप साधना का आनन्द लेते हुए प्राचीन आश्रम व्यवस्था का पालन भी किया जा सकेगा और अपनी आकाँक्षा भी पूर्ण होगी। इस विचार को उनके मार्ग दर्शक का समर्थन भी मिला और उन्होंने यह स्थान चुन लिया।

शान्ति-कुञ्ज बना। इस आश्रम का निर्माण वेदमाता गायत्री ट्रस्ट के अंतर्गत हुआ। गत वर्ष हम लोग 20 जून को यहाँ आ गये। स्थानीय कार्यक्रम की दृष्टि से मेरे लिए यही आदेश हुआ कि जिस प्रकार गुरु देव ने 24 लक्ष गायत्री पुरश्चरण 24 की संख्या में पूरे किये थे वह मैं भी पूरे करूं। उनकी साधना व्यक्तिगत आत्मिक प्रखरता उत्पन्न करने के लिए थी, इसलिए वह छः घण्टे क्रम से धीरे-धीरे 24 वर्ष तक उन्हीं के द्वारा चलती रही। पर मेरी अनुष्ठान शृंखला का उद्देश्य दूसरा था। विशाल युग-निर्माण परिवार के सदस्यों की भौतिक एवं आत्मिक सहायताएं उपलब्ध करना, उसके लिए आवश्यक शक्ति और साधन जुटाना लक्ष्य था। उसमें बढ़े हुए खर्च को देखते हुए अधिक मात्रा में उत्पादन की आवश्यकता पड़ी इसलिए उस अनुष्ठान शृंखला को अखण्ड जप के रूप में परिणत करना पड़ा। इस प्रकार वह चौबीस वर्ष वाली साधना छह वर्ष में सम्पन्न करने की बात निश्चित हुई। अखण्ड दीपक अपना 46 वर्ष पूर्व से ही जलता चला आ रहा है। उसे भी कम से कम हम लोग अपने जीवन काल में तो जलने ही देना चाहते हैं। देखने में यह बाहरी प्रकाश देने वाला लगता है पर हम लोगों ने कितना अन्तः प्रकाश इसके माध्यम से पाया है, यह लिखा या बताया नहीं जा सकता।

कुमारी कन्याएं देवता स्वरूप मानी गई हैं। शास्त्रों में उन्हें प्रत्यक्ष देवी का स्थान दिया गया है। शक्ति साधना में कुमारी पूजा का अद्भुत महात्म्य वर्णित है। आज की परिस्थिति में तो उनका स्थान साधु ब्राह्मण से भी आगे है। क्योंकि वे तो अब केवल वेश और वश मात्र भर रह गये हैं, तात्विक महानता वे लोग लगभग गँवा ही बैठे। कुमारी कन्याओं में वे देवतत्व जन्म जात होते हैं। यों नर की तुलना में आत्मिक दृष्टि से नारी सदा ही आगे होती है पर कन्याओं में उनका भोला शैशव, सहज ब्रह्मचर्य जैसे कारणों से उनकी गरिमा और भी अधिक बढ़ जाती है। परम्परा कुछ भी रही हो तात्विक दृष्टि से देखा जाये तो आज की स्थिति में औसत कन्या औसत ब्राह्मण से कहीं आगे है। उनके द्वारा की हुई या कराई हुई साधना तथा-कथित ब्राह्मणों की तुलना में कम नहीं वरन् अधिक ही फलप्रद बैठती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर शान्ति-कुञ्ज में संकल्पित 24 लक्ष गायत्री महापुरश्चरण 24 की संख्या में अखण्ड दीपक पर अखण्ड जप के रूप में सम्पन्न करने का जो निश्चय किया गया उसके लिए कन्याएं ही उपयुक्त माध्यम चुनी गईं। तदनुसार गत वर्ष से वह साधना चल पड़ी और बराबर निर्बाध गति से चल रही है, उससे उत्पन्न शक्ति अंश निरन्तर परिवार की भौतिक एवं आत्मिक सहायता के लिये वितरित किया जाता रहता है।

आरम्भ में छः कन्याओं से 4-4 घण्टे की दिन में दो घण्टा रात्रि में दो घण्टा ड्यूटी देकर अखण्ड जप करते रहने का विचार था। पीछे इतना वजन छोटी बच्चियों से उठता न दिखाई दिया तो उनकी संख्या 10 कर दी गई। इस संख्या में औसत ढाई-तीन घण्टे का आता है जिससे वे सहज प्रसन्नता के साथ रात्रि और दिन में विभाजित करके पूरा कर लेती हैं। नित्य गंगा से जल लाना उसी को पीना, आहार-विहार में संत जैसी विशेषताएं रखना, यह सब कार्य वे करती ही हैं। इस प्रकार उनकी तप साधना पार्वती की—मनु पुत्री इला की साधना से मेल खाती है। कुमारिकाएं आत्म-कल्याण की दृष्टि से भी इस प्रकार के अनुष्ठानों का आश्रय लेकर बहुत आगे बढ़ सकती हैं। मरियम और कुन्ती ने देवताओं को अपनी गोदी में खिलाने तक के लिये आह्वान कर लिया था। इस प्रयोजन में जो कन्या जितना समय लगा सके उतना लगा सकेगी, हर दृष्टि से वह उसके उज्ज्वल भविष्य के लिये एक संचित पूँजी ही सिद्ध होगी। इस दृष्टि से तपस्विनी कन्याएं आत्म-कल्याण और लोक-मंगल के दोनों प्रयोजन पूरा करती हैं।

कन्याओं का मात्र ढाई घण्टा जप के अतिरिक्त शेष समय भी पर्याप्त बचता था। उसके लिये यह सोचा गया कि उन्हें जीवनोपयोगी शिक्षा का इस बचे हुए समय में लाभ भी दिया जाए। यों पत्रिकाओं का सम्पादन, पत्र व्यवहार आगन्तुकों का अतिथि सत्कार—अपना निज का साधन क्रम, आश्रम व्यवस्था आदि काम तो कई रहते हैं पर इसके लिये भी समय निकाला और लड़कियों की शिक्षा व्यवस्था भी हाथ में ले ली। उन्हें नारी जीवन का लक्ष्य और सदुपयोग बौद्धिक दृष्टि से, संगीत उल्लास की दृष्टि से, और सिलाई गृह-उद्योग की दृष्टि से मैंने स्वयं ही सिखानी शुरू कर दी। इसका एक प्रयोजन यह भी था कि लड़कियाँ अपने परिवार को छोड़कर आई हैं उन्हें मेरी समीपता का अधिक समय मिले और वे अधिक स्नेह लाभ करती हुई, अधिक सन्तुष्ट रह सके। यह प्रयोग बहुत सफल रहा। बच्चियाँ इस बहाने मेरे साथ रहीं तो इतनी घुल−मिल और इतनी लिपट गईं कि उनके घर वाले जब बुलाने के लिए लिखते हैं तो रोने लगती हैं। कारण कि उन्होंने स्नेह अपने परिवार से यहाँ कम नहीं अधिक ही पाया है। आपस में हँसने खेलने का इतना सुन्दर क्रम चल पड़ा है कि उन्हें आनन्द, उल्लास की एक अनोखी दुनिया का ही अनुभव होता है। बस चले तो वे जीवन भर इस आश्रम के आनन्द को न छोड़ें पर परिस्थितियाँ उन्हें विवाह आदि के लिये विवश करेंगी तो उन्हें घर वापिस जाना ही होगा।

पिछले दिनों मुझे अस्वस्थ रहना पड़ा। यहाँ तक कि अनिष्ट को सँभालने के लिये स्वयं गुरुदेव को कुछ समय के लिये आना पड़ा। फिर भी पहले जैसा स्वास्थ्य अभी नहीं हो पाया है। लड़कियों की शिक्षा का क्रम इन दिनों छूटा ही रहा है; यों दिव्य संस्कार उनमें अभी भी निरन्तर आरोपित किये जा रहे हैं। यह पूँजी मस्तिष्कीय शिक्षा से कुछ कम नहीं अधिक ही बैठेगी।

गुरुदेव यहाँ आये तो शान्ति-कुञ्ज की भावी व्यवस्था के सम्बन्ध में भी विचार करते रहे। हम लोग इस आश्रम में सदा तो रहेंगे नहीं। पीछे यहाँ क्या प्रवृत्तियाँ चलें, इस पर विचार होता रहा। शान्ति-कुञ्ज गुरुदेव का तो डाक बँगला है वे जब कभी जन संपर्क की आवश्यकता समझेंगे उतने समय ही रुकेंगे। यह संपर्क क्रम भी संभवतः अधिक लम्बा न चले। उनकी बातों से ऐसा लगा कि जब तक आगामी पाँच वर्ष में यहाँ के अखण्ड जप की पुरश्चरण शृंखला पूरी होगी तभी तक वे अपना संपर्क क्रम रखेंगे। इसी अवधि में जिन्हें शक्ति का प्रत्यावर्तन मार्ग दर्शन, अनुदान देना होगा उसे दे लेकर उससे भी निवृत्त हो लेंगे? और पीछे अपने और भी ऊँचे कदम बढ़ा देंगे।

शान्ति-कुञ्ज की इमारत बड़ी बन गई। विचार तो थोड़ा ही छोटा ही बनाने का था—पर न जाने क्या ईश्वर इच्छा हुई कि उसका स्वरूप उतना बड़ा बन गया—बनता जा रहा है जितना कि इस छः वर्षीय कार्यक्रम के लिये आवश्यक था। कन्याओं का निवास आवास, भोजन व्यवस्था, उनका शिक्षण, खेलना, पढ़ना काफी स्थान माँगता है। सम्पादन और पत्र व्यवहार का दफ्तर भी चाहिए ही। गायों की सेवा और बगीचे को सँभालने के लिए भी कार्यकर्त्ता चाहिए। उनके निवास को भी स्थान चाहिए ही। इतने विशाल परिवार में से हर दिन दस पाँच आदमी यहाँ भावना वश या किसी प्रयोजन के लिए आते रहें तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं। उनके विश्राम आवास के लिये भी स्थान चाहिए ही। जब कभी गुरुदेव यहाँ रहेंगे तब तो प्रशिक्षण न सही—प्रत्यावर्तन और परामर्श ही सही—उनके लिए भी लोग यहाँ आवेंगे ही। उनके लिये भी जगह चाहिए। वस्तुतः गुरुदेव का व्यक्तित्व इतना विशाल है कि उसके लिये कलेवर की सहज ही आवश्यकता पड़ती और बढ़ती है। गायत्री तपोभूमि आरम्भ में छोटी सी बननी थी पर आवश्यकतानुसार उसकी भी विशालता बढ़ती गई। शान्ति-कुञ्ज छोटा जरूर सोचा गया था पर आवश्यकताओं ने उसे भी बड़ा बना दिया और वह आगे बढ़ने ही वाला है।

हम लोग यह सोचते रहे कि छह वर्ष के शान्ति-कुञ्ज वाले कार्यक्रम के उपरान्त पीछे इस आश्रम का क्या होगा? यहाँ सब कुछ सूना पड़ा रहे यह भी उचित न होगा। चिंतन इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कन्याओं की जो शिक्षा इन दिनों छोटे रूप में आरम्भ की गई थी उसी को बड़ा बना दिया जाय और इससे एक बड़े अभाव की पूर्ति हो सकेगी। गायत्री तपोभूमि में यों पुरुषों के साथ महिलाएं भी आती थीं पर उनके प्रशिक्षण एवं स्थायी निवास के लिए प्रबन्ध नहीं था। इससे महिला जागृति में भारी अड़चन थी। इस कमी को गुरुदेव अनुभव करते थे पर वे परिवार के साथ बिना—नारी और नर के अधिक संपर्क में दूसरी बुराइयाँ उठ खड़ी होने की आशंका करते थे और कहते थे विकृत सेवा से उसे न करना अच्छा। वे सोचते थे नारी को भी प्रशिक्षित तो किया जाना चाहिए उसे परिवार और समाज में देवत्व उत्पन्न करने का ज्ञान तो कराया जाना चाहिए पर वह प्रशिक्षण पृथक से होना चाहिए। सहशिक्षा वह भी शिक्षा ही नहीं निवास में भी समीपता ही हो तो गड़बड़ ही पैदा करेगी अस्तु यदि उसका प्रबन्ध किया जाना हो तो उसमें इस प्रकार का नर नारी सम्मिश्रण नहीं होना चाहिये। नारी शिक्षा-उन्हीं के द्वारा और उन्हीं की परिधि में होनी चाहिये। वे अक्सर नारी संपर्क का जहाँ भी अवसर आता मुझे ही आगे ढकेलते थे। गुरु - देव की इस मनोवृत्ति के कारण ही अब तक अति महत्व पूर्ण एवं नितान्त आवश्यक होते हुए भी नारी प्रशिक्षण का कुछ काम न हो सका। इस बार सोचा गया कि शान्ति कुँज भविष्य में उस आवश्यकता की पूर्ति करने का माध्यम बने।

वर्तमान कन्याओं द्वारा अखण्ड जप वाले क्रम में नारी प्रशिक्षण का समावेश किया जाय और उसे धीरे-धीरे विकसित करते हुए इस स्तर तक पहुँचा दिया जाय कि उसके द्वारा नारी को समुन्नत बनाने की दिशा में विश्वव्यापी मार्ग दर्शन एवं प्रशिक्षण सम्पन्न किया जा सके। अस्तु इन्हीं दिनों यह निश्चय किया गया कि वर्तमान दस कन्याओं के प्रशिक्षण के लिये सुनिश्चित व्यवस्था की जाय और इसके लिये एक अध्यापिका की नियुक्ति कर दी जाय। पिछले दिनों लड़कियाँ अपनी रुचि का भोजन मिल-जुलकर बना लेती थीं। इसमें उन्हें पाक विद्या का व्यावहारिक ज्ञान देना भी उद्देश्य था। फिर बच्चों का नई चीजें खाने को अधिक मन रहता है। उनकी इच्छानुसार बदलती हुई चीजें बनती रहें तथा बनाने में वे कुशल होती रहें। पर इस मिल जुलकर बनाने में उनका समय कई घण्टे का चला जाता था। अब जबकि यह सोचा गया है कि उन्हें विशेष शिक्षण देना है तो समय की बचत आवश्यक हो गई और अब भोजन बनाने वाली एक महिला की स्थायी नियुक्ति कर दी गई है। प्रशिक्षण के लिये अध्यापिका की आवश्यकता भी सम्भवतः इसी महीने में पूरी हो लेगी। इस संदर्भ में पिछली अखण्ड-ज्योति में विज्ञापन भी छप चुका है।

नारी के व्यक्तित्व का समग्र विकास अपने आपमें एक अति महत्व पूर्ण विषय है। स्कूली शिक्षा से उसका उद्देश्य तनिक भी सिद्ध नहीं होता। उसमें नारी जीवन में कभी काम न आने वाले निरर्थक विषयों की ही भरमार है। पढ़ते-पढ़ते छात्रों का सिर खाली हो जाता है पर व्यावहारिक जीवन में काम आने वाला तथ्य उसमें नगण्य ही निकलता है। नौकरी पाने के अतिरिक्त यह शिक्षा और किसी काम की नहीं यदि यह कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति नहीं माननी चाहिए। शिक्षा का उद्देश्य ‘मुक्ति’ है। “सा विद्या या विमुक्तये” जो शिक्षा नौकरी के लिये गुलामी और बन्धन के लिए प्रोत्साहित करे वस्तुतः सच्चे अर्थ में विद्या कही ही नहीं जा सकती इसका उद्देश्य तो स्वतन्त्र व्यक्तित्व का विकास एवं स्वावलम्बन ही होना चाहिए। गायत्री तपोभूमि में युग-निर्माण विद्यालय का स्वतन्त्र पाठ्य क्रम इसीलिए रखा गया। उसमें सरकारी शिक्षा पद्धति का कोई समावेश नहीं है। जब दृष्टिकोण ही दूसरा हो तो पाठ्य क्रम भी दूसरा ही रहना चाहिए। नौकरी के लिये पढ़ाई जिनका उद्देश्य हो वे न उस पढ़ाई में आते हैं और न उन्हें बुलाया जाता है।

शान्ति कुञ्ज में जिस नारी प्रशिक्षण का विकास किया जाना है उसका लक्ष्य होगा नारी जीवन की प्रतिभा का विकास एवं समस्याओं का समाधान। इस दृष्टिकोण से एक समान पाठ्य क्रम बनाया जा रहा है। उसका कोर्स एक वर्ष का रहेगा। यह पाठ्य क्रम गुरु देव स्वयं ही निर्धारित करने का वचन दे गये हैं। उसके साथ साथ ऐसे गृह उद्योगों का समावेश अवश्य रहेगा जिससे हर नारी अपने बचे हुए समय में कुछ अतिरिक्त उपार्जन कर सके। कभी विपत्ति की घड़ी आ खड़ी होने पर सारे परिवार के निर्वाह में समर्थ हो सकने योग्य उपार्जन की—आर्थिक स्वावलम्बन की क्षमता उसमें होनी ही चाहिए। गायत्री तपोभूमि के युग-निर्माण विद्यालय में भी ऐसी ही शिल्प शिक्षा का समावेश है; फिर नारी के लिये निर्धारित बौद्धिक पाठ्यक्रम की तरह यह शिल्प शिक्षा भी भिन्न होगी। उसमें यह ध्यान रखना होगा कि वे उद्योग घर रहकर ही चलाये जा सकें उनके लिये बाजार में दुकान खोलने की आवश्यकता न हो। ऐसे शिल्पों का जो घर पर चल सकें—अधिक उपार्जन करा सकें, क्या-क्या हो सकते हैं इस सम्बन्ध में विशेषज्ञों से परामर्श किया जा रहा है। उनमें से कुछ तो अवश्य ही ऐसे होंगे जो बिजली की शक्ति से चलें, जिनमें शारीरिक श्रम अधिक न पड़े और उपार्जन भी एक परिवार के निर्वाह जितना हो सके। इस प्रकार के बौद्धिक एवं शिल्प सम्बंधी पाठ्य क्रम की रूप-रेखा सम्भवतः आगामी दो तीन महीने में ही बन जायगी। उसके लिये विशेषज्ञों से परामर्श आरम्भ कर दिये गये हैं। साथ में संगीत शिक्षा का समावेश रहना आवश्यक है। स्वान्तः सुखाय, पारिवारिक मनोरंजन और भावनाओं के जागरण के तीनों ही प्रयोजन संगीत पूरा करता है इसलिये उसमें नारी शिक्षा, उसका स्थान भी अनिवार्य रूप से रखा जायगा।

इस प्रशिक्षण के लिए स्वभावतः अधिक कन्याएं आना चाहेंगी पर अपने पास तो जप करने वाली कन्याओं के लिये ही भोजन आदि की सीमित व्यवस्था है। इस संख्या से आगे बढ़ा जायगा तो उसकी अर्थ व्यवस्था उनके अभिभावकों को ही करनी पड़ेगी। खाते-पीते मध्यम श्रेणी के परिवारों जैसे अच्छे भोजन में 50 रुपये मासिक से कम खर्च इस घोर महँगाई के जमाने में नहीं आ सकता। साल भर के लिये वस्त्र और उतने दिन के लिये भोजन प्रबन्ध के पैसे जो जुटा सकेंगे उनके लिए ही अतिरिक्त प्रबन्ध हो सकेगा। जप विभाग तो केवल नियत संख्या का ही भार वहन कर सकता है।

आगे चलकर सम्भवतः पाँच वर्ष बाद—जब अपना वर्तमान अखण्ड जप और शक्ति प्रत्यावर्तन का कार्य पूरा हो जायगा तो शाँति कुञ्ज में विवाहित नारियों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जायगी, उन्हें अधिक अवकाश न रहेगा इसलिए उनकी शिक्षा तीन महीने में ही पूरी करनी होगी उसी आधार पर उनका पृथक पाठ्य क्रम बनेगा। इस थोड़ी अवधि में ही वे इतना बौद्धिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगी कि अपने परिवार के लिए वरदान सिद्ध होकर रह सकें। यों ऐसी शिक्षा की आवश्यकता तो तुरन्त थी पर साधनों के अभाव में उसे पीछे ही आरम्भ किया जा सकेगा। अभी तो भावी योजना को ध्यान में रखने भर की—और तत्सम्बन्धी तैयारी करते रहने भर की है।

नारी जागरण एक स्वतन्त्र विषय है। नारी का अपना स्थान है और अपना कार्य क्षेत्र। उसे अलग ढंग से जागृत समर्थ और समाज के योगदान में महत्वपूर्ण भूमिका सम्पादित करने के लिए तैयार किया जायगा। इस आँदोलन की अपनी दिशा होगी और अपनी कार्य पद्धति। वह सर्वथा मौलिक होगी। इस संदर्भ में भी गुरु देव का चिन्तन स्पष्ट है, उसकी रूप-रेखा उनके सामने है पर चूँकि वह अभियान नारियों द्वारा ही चलाया जाना है—इसके लिए संगठन, प्रचार, आन्दोलन आदि को अपने हाथ में उन्हें ही लेना है। और वह कार्य लदे हुए बोझ को पूरा करने में ही चरमराने लगने वाली मैं उठा नहीं सकती थी अवसर और अवकाश भी नहीं था, इसलिए वह पिछले दिनों हो भी नहीं सका। सम्भवतः आगे उस योजना की रूप-रेखा स्पष्ट हो और नारी जागरण का—उसकी प्रतिभा को युग परिवर्तन में प्रयुक्त करने का—कोई सुनिश्चित अभियान खड़ा हो सकेगा। जब शाँतिकुञ्ज को नारी जागरण का केन्द्र ही बनना है तो वहीं से देशव्यापी-विश्वव्यापी, नारी उत्कर्ष का सर्वांग पूर्ण आन्दोलन भी सुसंचालित किया जा सकेगा।

जब वह योजना काम में आवेगी तब नारी संगठन का केन्द्र भी यही रहेगा और प्रचारिकाएं एवं प्रशिक्षिकाएं भी यहीं से तैयार की जायेंगी जो जगह-जगह जाकर इसी मिशन के अनुरूप विद्यालय खड़े करें और एक एक वर्ष के इसी प्रकार के पाठ्य-क्रम चलायें जैसा कि इस वर्ष कन्याओं के लिये यहाँ आरम्भ किया जा रहा है। तीन महीने में नारी शिविर भी वे प्रशिक्षिकाएं की चलायेंगी। तब तक आज की चार हजार शाखाएं—सम्भवतः चालीस हजार बन सकें, और सर्वत्र नारी शिक्षा के लिये विद्यालय खड़े करने की आवश्यकता अनुभव की जाने लगे ऐसी दशा में निष्णात प्रशिक्षिकाओं की सबसे पहली आवश्यकता पड़ेगी उसकी पूर्ति भी इसी अभियान के अंतर्गत शान्ति-कुञ्ज को ही करनी पड़ेगी।

तब एक सर्वांगपूर्ण नारी पत्रिका की—नारी साहित्य की—भी आवश्यकता अनुभव की जायगी और वह एक अतिरिक्त विभाग ही नारी जागरण योजना के अंतर्गत काम करेगा। अभी तो इस दृष्टि से देखा सोचा ही नहीं गया पर जब आवश्यकता अनुभव होगी तब इस आन्दोलन में अपने आपको खपा देने वाली जीवन्त महिलाएं भी आगे आ जायेंगी जैसे गायत्री तपोभूमि में सुयोग्य और सेवा भावी आत्म-दानी एकत्रित हो गये।

युग परिवर्तन की महान प्रक्रिया में नारी का असाधारण योगदान होगा और वह भावी संसार का हर क्षेत्र में नेतृत्व करेगी। भावनात्मक वर्चस्व नारी में ही अधिक है। श्रम भले ही पुरुष अधिक कर सके। नव समाज की रचना भावनात्मक आधारों पर होती है। इस विशेषता की दृष्टि से नारी का स्थान सदा से आगे रहा है और अभी भी आगे है। अगले दिनों तो विश्व नेतृत्व का भार उसी के कन्धों पर आने वाला है। इस तथ्य को गुरु देव अनेक बार प्रकाश में ला चुके हैं। ईश्वर की इच्छा इसी दिशा में अनुकूलता उत्पन्न कर रही है। राजनीति के क्षेत्र को ही लें। इसराइल की प्रधान मन्त्री गोल्डा मेयर ऐसी महिला हैं जिन्होंने मदान्ध मध्य पूर्व के समस्त देशों की आक्रमणात्मक चुनौतियाँ स्वीकार की हैं और वे अपने छोटे से देश को कितनी समुन्नत एवं समर्थ स्थिति में रख रही हैं इसे देखकर लोगों को दांतों तले उँगली दबानी पड़ती है। भारत की प्रधान मन्त्री इन्दिरा गाँधी का उभरता हुआ नेतृत्व चमत्कार उत्पन्न कर रहा है। इन्दिरा की आँधी चुनावों की सफलता में ऐतिहासिक स्थान प्राप्त कर चुकी। लंका की प्रधान मन्त्री श्रीमती भण्डार नायके का नेतृत्व भी सहज भुला देने योग्य नहीं है। नारी जगत की यह उदीयमान तारिकाएं यह पूर्व संकेत करती हैं कि हवा का प्रवाह किधर बह चला। अगले दिनों इस दिशा में प्रगति और भी तेजी से होगी। परिवर्तन चक्र में नारी दिशा प्रदान करेगी—नेतृत्व सँभालेगी और नर को अपनी कर्मठता का सहयोग देकर उसे नव निर्माण के लिए अधिक कुछ करने में सफल समर्थ बना सकेगी।

यह कल्पना नहीं यथार्थता है जो अगले ही दिनों साकार होने जा रही है। उसकी विधिव्यवस्था का आत्मिक सूत्र−संचालन भी आवश्यक है। यह कार्य अगले दिनों शाँति कुञ्ज द्वारा सम्पादित हो सकेगा गुरु देव की ऐसी मान्यता है। कन्याओं को प्रशिक्षण—नारी जीवन को सफल बनाने वाली विद्या का विस्तार तो लोक कल्याण की दृष्टि से आवश्यक है ही इससे भी बड़ी बात है—नारी प्रतिभा का जागरण और उसको साहित्य कला, राजनीति, समाज निर्माण आदि विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व उत्तरदायित्व उठा सकने में समर्थ बनाना। यह कार्य ऐसा ही आत्मबल सम्पन्न होने पर सँभाला जायेगा जैसा इन्दिरा गाँधी को उपलब्ध हुआ है। अगले दिनों हर क्षेत्र में ऐसी ही प्रतिभावान महिलाओं का उत्पादन आवश्यक होगा। इसके लिए परामर्श, प्रशिक्षण, आन्दोलन ही नहीं कुछ ऐसा ‘विशेष’ भी करना होगा जिससे उन्हें आत्म-बल सम्पन्न बनाया जा सके। शिक्षा या सम्पन्नता से वास्तविक प्रगति तो आत्मबल से होती है। अगले दिनों सर्वतोमुखी नेतृत्व जिसके कन्धों पर आने वाला है उस नारी के आत्मिक जागरण का कुछ विशेष प्रयास किया ही जाना चाहिए करना भी होगा। गुरु देव इस दिशा में आशावान् ही नहीं, प्रयत्नशील भी हैं।

शाँति कुञ्ज इस दिशा में कुछ महत्व पूर्ण भूमिका सम्पन्न कर सके इसी का श्रीगणेश कन्याओं द्वारा अखण्ड जप के माध्यम से किया गया है। अब इस बीज में अंकुर-प्रशिक्षण व्यवस्था के रूप में फूट रहा है। आशा की जानी चाहिए यह प्रगति क्रमशः अग्रगामी होगी और वट वृक्ष की तरह नारी जागृति का अभियान निरन्तर सुविस्तृत होता चला जायगा। ‘शाँति कुञ्ज’ अगले दिनों ‘शक्ति पुञ्ज’ के रूप में परिणत होगा और वह नव निर्माण की महान भूमिका सम्पादित करेगा। गुरु देव का ‘डाक बंगला’ यह स्थान अगले पाँच वर्ष तक अभी और भी बना रहेगा इसका कारण परिजनों का मार्ग दर्शन एवं शक्ति प्रत्यावर्तन ही नहीं, ‘शाँति कुञ्ज’ को ‘शक्ति पुञ्ज’ के रूप में परिणत करने की भव्य योजना का सूत्रपात आरम्भिक मार्ग दर्शन एवं गति प्रदान करना भी है। आशा की जानी चाहिए कि वह संस्थान अगले दिनों नारी जागरण की अभिनव भूमिका सम्पादित करेगा।

महिला जागरण के महान अभियान में यों पुरुष भी सहयोग देंगे पर प्रधान रूप से यह भार महिलाओं को अपने ही कन्धों पर उठाना पड़ेगा। आगे उन्हें ही आना होगा। अपने क्षेत्र में तो गृहस्थ महिलाएं ही थोड़ा-थोड़ा समय बचाकर यह कार्य करेंगी, पर कुछ संचालिका वर्ग की प्रभावशाली महिलाएं भी अपने को इस कार्य में पूरी तरह खपा दें तभी यह आन्दोलन गति पकड़ेगा और देशव्यापी तथा विश्वव्यापी बनेगा। जिनके ऊपर गृहस्थ की जिम्मेदारियाँ न हों तथा जिन्होंने लोभ-मोह एवं तृष्णा लालसा पर काबू पा लिया हो ऐसी शिक्षित महिलाओं को अपना पूरा जीवन ही इस कार्य के लिए अर्पण करना चाहिए ऐसी महिलाएं शाँति कुञ्ज हरिद्वार के पते पर पत्र व्यवहार कर लें।

शाँति कुञ्ज के भविष्य के बारे में ऐसी ही चर्चा गुरु देव से होती रही और लगा कि वे इस संदर्भ में गंभीर हैं। वर्तमान जप साधना, कन्या शिक्षण, शक्ति प्रत्यावर्तन तो मात्र पाँच वर्ष ही आगे और चलना है। उसके बाद शान्ति कुञ्ज को शक्ति केन्द्र के रूप में ही परिणत कर दिया जायगा। लगा कि गुरु देव इसी दिशा में सोच रहे हैं। कहना न होगा कि उनके संकल्प न तो अवास्तविक होते हैं और न अधूरे रहते हैं।


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