जिस राष्ट्र मन्दिर का निर्माण इतने दिनों से अनेक आत्म विजयी, ऋषि−मुनि दिग्विजयी सम्राट, कवि, कलाकार, साहित्यकार, स्मृतिकार, पुराणों के रचयिता तथा धर्म शास्त्रों के प्रणेता करते चले आ रहे हैं, आज उस मन्दिर में राष्ट्र पुरुष की मूर्ति स्थापित करके उसे अभिमन्त्रित करना है। भगवान को धन्यवाद दें कि यह सौभाग्य हमको प्राप्त हुआ। इस मंदिर के प्रथम पुजारी बने। ऐसा प्रबन्ध कर चलें कि पीछे आने वाली पीढ़ियाँ इस मन्दिर में अनन्त काल तक पूजा कर सकें ।
—दीनदयाल उपाध्याय