सन्त दाऊद को बाप की विरासत में तीस दीनार मिले। उन्होंने उसी से जिन्दगी के तीस वर्ष काटे और उतने से ही अपना खर्च चलाया। लोगों ने सहायता करनी चाही तो उन्होंने सदा इनकार किया और कहा- गुजारे के लिए जो मिला हुआ मौजूद है तो ज्यादा की हविस क्यों करूं?
वे सत्तू घोल कर पीते थे। किसी ने पूछा- रोटी क्यों नहीं बना लेते? जवाब दिया जितनी देर में रोटी बनाऊँ उतनी देर में पचास आयतों का पाठ क्यों न करूं?
पीने का पानी धूप में रखा था। किसी ने कहा-इसे छाया में क्यों नहीं रख लेते। दाऊद ने कहा-इतनी सुविधा के लिए भगवान् के लिए लगने वाला समय अपने लिये खर्च करूं?