विश्वव्यापी परिवर्तन की यथार्थता का एक प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि युग-निर्माण परिवार का उत्साह अब समुद्र की तरह हिलोरें ले रहा है। हर सदस्य सक्रिय हो उठा है और हर कार्यकर्त्ता में कर्मठता का असाधारण समावेश हुआ है। जिसके लिए बार-बार आग्रह अनुरोध किया जाता था अब वह इतना स्वाभाविक, इतना सरल और इतना अभ्यस्त हो गया है कि उसे बिना किये किसी को चैन नहीं पड़ता। यह शुभ चिह्न है। थर्मामीटर में पारे की रेखा चढ़ी हुई देखकर रोगी के शरीर का तापमान जान लिया जाता है। समाज में कितना परिवर्तन आ रहा है- नव निर्माण की कितनी सुनिश्चित पृष्ठभूमि बन रही है इसका अनुमान परिवार के सदस्यों और कार्यकर्त्ताओं में फूटी पड़ रही उमंगों और हिलोरों को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है।
जिस प्रकार नशा, जुआ आदि व्यसनों में ग्रस्त लोगों को अपनी लत पूरी किये बिना चैन नहीं पड़ता, उससे भी अधिक बेचैनी इन नव निर्माण कल्पवृक्ष के ‘अमर फलों’ में दीख पड़ रही है। पचास वर्ष से अधिक आयु के अपने बच्चों के उत्तरदायित्व पूरे करके अब वानप्रस्थ परम्परा को मूर्तिमान करने के ला आगे बढ़ते चले आ रहे हैं। स्वजन सेना की बढ़ती हुई संख्या एवं तत्परता को देखकर यह सुनिश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब युग-निर्माण योजना एक यथार्थता बनकर युग परिवर्तन के रूप में सामने खड़ी दिखाई देगी।
इस सृजन सेना को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। बन्दूक चलाने, कवायद करने और पोजीशन लेने की शिक्षा पाये बिना बहादुर सैनिक भी युद्ध मोर्चे पर जौहर नहीं दिखा सकते। रेल मोटर जैसे यन्त्र चलाने की ट्रेनिंग लेनी पड़ती है। फिर सृजन सेना का काम बिना साँगोपाँग शिक्षण के कैसे चलेगा। अब यह आवश्यकता इतनी प्रचण्ड हो गई है कि उसकी पूर्ति किये बिना और कोई चारा नहीं।
बाल-विवाह, अनमेल विवाह, कन्या विक्रय, वर विक्रय जैसे सामाजिक अनाचारों का उन्मूलन करने के लिए प्रचण्ड संघर्ष करना होगा और उनके स्थान पर आदर्श विवाहों की - सामूहिक विवाहों की व्यापक लहर चलानी होगी। मृत्यु भोज, पशु बलि जैसी कुप्रथायें हिन्दू धर्म को कलंकित करती हैं। भिक्षा व्यवसाय से यह पुरुषार्थियों की कर्मभूमि भिखमंगों से भर गई है। नारी के रूप में भारत की आधी जनता पिंजड़े में बन्द कैदी की तरह अपंग और असहाय बनी हुई है। जाति-पाति ने राष्ट्र को खण्ड-खण्ड करके रख दिया है। छुआछूत ने मनुष्य के जन्मजात नागरिक अधिकारों का हनन करके एक बहुत बड़े वर्ग को पिछड़ी पददलित स्थिति में पटक दिया है। अस्वच्छता हमारी आदत बन गई है। बेईमानी, भ्रष्टाचार, अनाचार का हर क्षेत्र में बोलबाला है। राजनीति, धर्म, व्यापार, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों में अन्धेर मचा हुआ है। इस व्यापक असुरता के विरुद्ध लोहा लेने वाली ‘सृजन सेना’ खड़ी तो हो गई पर उसको शस्त्र संचालन और मोर्चा सँभालना भी तो सिखाना ही पड़ेगा। अब इसी की व्यवस्था की जा रही है।
प्रचारात्मक, रचनात्मक एवं संघर्षात्मक त्रिविधि क्रिया कलापों की शत सूत्री योजनाओं को कार्यान्वित करने नव निर्माण के मार्ग में आने वाले व्यवधानों से निपटने का क्रिया कलाप पूरी तरह सैन्य शिक्षा स्तर का है। इसके लिए कार्यकर्त्ताओं के व्यक्तित्व को उभारना भी शामिल है ताकि वे अपने चुम्बकत्व से जन मानस को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो सकें। यह प्रशिक्षण सुविस्तृत, गम्भीर तथ्यों से परिपूर्ण है। इसके लिये सामान्यतया एक वर्ष की शिक्षा होनी चाहिए। बच्चों को पढ़ाने वाले अध्यापकों तक की ट्रेनिंग एक दो वर्ष की होती है तब जन मानस को प्रशिक्षित करने-लोक नेतृत्व का उत्तरदायित्व वहन करने वालों की शिक्षा भी कम से कम एक वर्ष की होनी चाहिए। तैयारी उसी के लिए करनी होगी। पर समय की माँग इतनी विकट है और - शिक्षार्थियों की संख्या इतनी अधिक है एवं शिक्षण साधन इतने कम हैं कि उस प्रशिक्षण काल में फिलहाल भारी कटौती करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रहा। आपत्ति कालीन स्थिति में सैन्य शिक्षा की अवधि भी घटा दी जाती है। फिलहाल हमें भी इसी मार्ग को अपनाना होगा। निश्चय यह किया गया है कि कार्यकर्त्ताओं के शिक्षण शिविर वर्ष में चार बार हुआ करेंगे। प्रत्येक की अवधि तीन-तीन महीना होगी। पहला शिविर जुलाई, अगस्त, सितम्बर। दूसरा अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर। तीसरा जनवरी, फरवरी, मार्च। चौथा अप्रैल, मई, जून। इस प्रकार तीन-तीन महीने के चार शिविर गायत्री तपोभूमि में चला करेंगे। एक वर्षीय पाठ्य-क्रम की व्यवस्था पीछे की जायगी फिलहाल शिविर पद्धति अपनाकर तात्कालिक आवश्यकता ही पूरी करनी पड़ेगी।
हर कार्यकर्त्ता को बहुत कुछ करना है। हर शाखा को अपना समीपवर्ती क्षेत्र सँभालना है। हर कार्यकर्त्ता को जन नेतृत्व का भार उठाना है। सृजन सेना के हर सैनिक को असुरता के विरुद्ध हर मोर्चे पर लड़ना है। यह सब कैसे हो इसकी सैद्धान्तिक शिक्षा समय-समय पर मौखिक और लिखित रूप से छुट-पुट करके ही दी जाती रही है।
अब समय की माँग है वह सब क्रमबद्ध रूप से-व्यावहारिक एवं प्रत्यक्ष क्रिया कलाप के साथ सिखाया समझाया और अभ्यस्त कराया जाय। प्रस्तुत योजना के अनुसार इसी आवश्यकता की पूर्ति की जायगी।
इस तीन मास के प्रशिक्षण में शिक्षार्थियों को अतिव्यस्त रहकर लगभग उसी स्तर का श्रम करना पड़ेगा जिस तरह का कि विद्यार्थी परीक्षा के दिनों में करते हैं। इसी तत्परता को लेकर शिक्षार्थियों को आना चाहिए अन्यथा एक वर्ष वाली शिक्षा वे तीन मास जितने स्वल्प काल में कैसे हृदयंगम कर सकेंगे।
शिक्षण प्रक्रिया में प्रायः सभी महत्व पूर्ण विषयों का समावेश किया गया है। जहाँ विश्व सम्पदाओं के स्वरूप उनके परिणाम और प्रभाव का परिचय कराया जायगा वहाँ उनके समाधान का व्यापक हल भी समझाया जायगा ताकि वे अन्य लोगों को प्रस्तुत योजना से प्रभावित एवं आकर्षित कर सकें। नव निर्माण के जो आधार युग परिवर्तन के लिए प्रयुक्त किये जा रहे हैं वे ही क्यों सर्वोपरि महत्व के समझे गये इसकी तात्विक जानकारी शिक्षार्थियों को मिलेगी, बौद्धिक दृष्टि से परिपक्व होकर ही लोक नेतृत्व के क्षेत्र में सफल प्रवेश किया जा सकता है।
जन मानस को प्रभावित करने के लिए आवश्यक उपकरणों के प्रयोग की आवश्यक शिक्षा दी जायगी। प्रकाश चित्र यन्त्र (स्लाइड प्रोजेक्टर) लोक रञ्जन के साथ लोक शिक्षण का सस्ता अति प्रभावशाली एवं आकर्षक माध्यम सिद्ध हो चुका है। इसे किस प्रकार प्रयोग किया जाय यह इस शिक्षा का महत्व पूर्ण विषय है। लाउडस्पीकर प्रायः हर सम्मेलन आयोजन की आवश्यकता बन गये हैं उनका प्रयोग-टेपरिकार्डरों के माध्यम से गुरु देव का सन्देश जन-जन तक पहुँचाना, ग्रामोफोन रिकार्डों से प्रेरक संगीत की धारा प्रवाहित करना-आवश्यक है। इसके लिये इन कार्यों में प्रयोग होने वाले (1) स्लाइड प्रोजेक्टर (2) लाउडस्पीकर (3) टेप रिकॉर्डर (4) रिकार्ड प्लेयर यन्त्रों के प्रयोग करने की यान्त्रिक जानकारी दी जायेगी साथ ही गीता-कथा, रामायण कथा, कीर्तन तथा युग-निर्माण योजना के चुने हुए प्रमुख गीतों की धुनें बजा सकने योग्य संगीत सिखाया जायगा।
भाषण कला की प्रवीणता, इन्हीं दिनों के अभ्यास से उत्पन्न की जायगी। अगले दिनों युग-निर्माण सम्मेलनों की, पर्व आयोजनों की, विचार गोष्ठियों की बाढ़ आने वाली है, इन माध्यमों का उपयोग करके प्रभावशाली लोक शिक्षण कैसे किया जाय इसकी महत्वपूर्ण बारीकियाँ इन्हीं दिनों समझा दी जायेंगी 7-7 दिन के रामायण सप्ताह गीता सप्ताह समारोह मनाये जाने हैं उनका आयोजन कैसे किया जाये इससे शिक्षार्थियों में प्रवीणता उत्पन्न की जायगी। युग-निर्माण विद्यालय का संचालन, महत्ता, संगठन, व्यायामशालायें, पुस्तकालय बोलती दीवारें, हस्ताक्षर अभियान, हरियाली उत्पादन से लेकर विचार क्रान्ति—नैतिक क्रान्ति एवं बौद्धिक क्रान्ति के प्रायः सभी पक्ष किस प्रकार व्यवहार में लाये जायें यह इन शिविरों में सिखा दिया जायगा।
हर सक्रिय कार्यकर्त्ता को इसमें सम्मिलित होने की तैयारी करनी चाहिए। शाखाओं को अपने प्रतिनिधि भेजने चाहिएं। जिन्हें 1 जुलाई से आरम्भ होने वाले प्रशिक्षण शिविर में सम्मिलित होना हो उन्हें गायत्री तपोभूमि, मथुरा के पते पर पत्र व्यवहार करके स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए। भोजन व्यय जो लगभग 40 रु0 मासिक होगा। शिक्षार्थियों को स्वयं ही वहन करना होगा।