बारह वर्ष तक तप करने के उपरान्त साधक घर लौटा तो जिज्ञासुओं की भीड़ एकत्रित हो गई। सभी जानना चाहते थे कि इतने दिन में उन्हें क्या-क्या सिद्धि मिली।
‘सिद्धि!’ साधक ने कहा- “अभी दिखाता हूँ।” यह कहकर उसने जल लेकर मन्त्र पढ़ा और एक हाथी के ऊपर छिड़क दिया। बात की बात में हाथी की मृत्यु हो गई।
साधे ने दुबारा जल लिया और फिर मंत्र पढ़कर मृत हाथी के शरीर में जल छिड़क दिया। अभिमंत्रित जल के छींटे पड़ते ही हाथी पुनः जी उठा। यह देखते ही लोगों ने करतल ध्वनि की और साधक की खूब जय-जयकार हुई।
साधक का पिता भी वहीं उपस्थित था, उसने कहा-वत्स! अच्छा अब यह तो बताओ इस सिद्धि से तुम्हें क्या मिला?
साधक चुप था। उससे कोई उत्तर देते न बन पड़ रहा था। पिता ने कहा- बेटा! जितने दिन चमत्कार के चक्कर में रहे, अगर अपने परिवार और संसार की सेवा करते तो उससे अपना भी भला होता और संसार का भी।