बसरा का व्यापारी रेगिस्तान में भटक गया। कई दिनों तक मरुस्थल में मारा-मारा फिरा। भूख के मारे उसका बुरा हाल हो गया।
भगवान् ने पुकार सुन ली लगता था। उस दिन शाम होते-होते नखलिस्तान दिखाई दे गया। व्यापारी वहाँ पहुँचा तो प्रसन्नता से बाँछे खिल गई। वहाँ एक पोटली पड़ी थी। व्यापारी ने उसे लिया। सोचा इतने सारे चनों से तो दो दिन का काम चलेगा।
किन्तु अगले क्षण कितनी निराशा के थे जब उसने पोटली खोली। उसमें चने नहीं मोती बंधे पड़े थे। जीवन के आखिरी क्षण व्यापारी जान पाया कि धन जीवन की मूल आवश्यकता नहीं, वह तो कंकड़-पत्थर है, यदि उसका कुछ सदुपयोग न हो