बिना पतवार-सिद्धि के द्वार (1)

March 1970

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1947 की बात है, लिम्बर्ग में वान टासिंग नामक एक युवक की हत्या कर दी गई। हत्यारे ऐसा कोई चिन्ह नहीं छोड़ गये थे, जिससे उनका रत्ती भर सुराग मिलता। पुलिस ने कोई भी प्रयत्न छोड़ा नहीं, किन्तु उसे किसी तरह की सफलता हाथ न लगी।

अन्त में एक ऐसे व्यक्ति की सहायता ली गई, जिसके बारे में उन दिनों न केवल हालैण्ड वरन् सारे विश्व में यह कहा जाता था कि उसे किसी की वस्तु या शरीर का कोई अंग स्पर्श करते ही उसके सम्बन्ध में अनेक रहस्यों का पता फिल्म में दिखाये गये दृश्यों की भाँति चल जाता है। उसे विलक्षण सिद्धि प्राप्त थी। उसे लोग सर्वदर्शी मानते थे।

उस व्यक्ति ने पुलिस कार्यालय में आते ही बताया कि इससे पूर्व कि मैं आप लोगों की कुछ सहायता करूं, मुझे टासिंग के शरीर से लगी किसी वस्तु या वस्त्र की आवश्यकता पड़ेगी। आप उसका प्रबन्ध करा दें, उस वस्तु की गन्ध के आधार पर ही यह बताया जाना संभव होगा कि उसकी किसने हत्या की है? वस्त्र धुला न हो यह भी आवश्यक है।

टासिंग का कोट उपलब्ध था, वह उसे दिया गया। उसे हाथ में लेते ही एक विचित्र प्रकार की स्थिति उसने अनुभव की। अनेक दृश्य अपने आप मस्तिष्क में उतरने लगे। उसने कहा- “टासिंग की हत्या जिस व्यक्ति ने की है, वह अधेड़ आयु का है, उसकी बड़ी-बड़ी मूँछें हैं और मैं स्पष्ट देख रहा हूँ कि उस व्यक्ति का एक पाँव लकड़ी का है। वह चश्मा भी लगाता है।

इतना बताने तक पुलिस अधिकारियों ने न कोई उत्सुकता दिखाई, न रुचि क्योंकि इस हुलिए का व्यक्ति जो जेल में पहले ही बन्द था। यह मृतक का पिता ही था पर अब उसने दूसरा विवाह कर लिया था। पुलिस को भी उस पर सन्देह था पर जब तक कोई प्रमाण न मिले मुकदमा कैसे चलाया जा सकता था।

उस सर्वदर्शी व्यक्ति ने आगे कहना प्रारम्भ किया- “व्यक्ति का स्वार्थ जब इतना प्रबल हो जाता है कि उसका नियन्त्रण नहीं हो पाता तो मनुष्य कोई भी पाप कर सकता है, उस व्यक्ति की कुदृष्टि एक दिन टासिंग की पत्नी पर ही चली गई। कुछ दिन तक तो वह इस बात को टालता रहा पर जब वासना अनियन्त्रित हो उठी तो उसने टासिंग की हत्या कर दी।” इतना बताने पर भी पुलिस इंस्पेक्टर को कोई विशेष दिलचस्पी न जगी। उसने कहा- “आपने जो कुछ बताया वह तो सारा लिम्बर्ग शहर जानता है। इसमें नया क्या है।

तब वह व्यक्ति कुछ रुका और इंस्पेक्टर की ओर देखता हुआ बोला- “अच्छा तो जो बात आप नहीं जानते वह बताते हैं। उस व्यक्ति ने जिस हथियार से हत्या की है, वह एक बन्दूक है और उसी मकान की छत पर है। उसमें उस व्यक्ति की उँगलियों के निशान भी हैं।” इतनी जानकारी वरदान सिद्ध हुई। इंस्पेक्टर ने तलाशी ली और वह बन्दूक ठीक वहीं मिली। अभियुक्त को उसी के आधार पर दंडित किया जा सका।

कोई वस्तु देखकर उस व्यक्ति से सम्बन्धित अदृश्य बातें और मनोभाव तक बता देने की यह क्षमता जिस व्यक्ति में थी, उसे पीटर हरकौस के नाम से आज सारा संसार जानता है। उसका वास्तविक नाम पीटर वान डेर हर्क था। 21 मई 1911 को उसका जन्म हालैंड में हुआ। यह नाम तो उसने जर्मनी आक्रमणकारियों से रक्षा के लिये बदल लिया था।

हमारे देश में ऐसे सिद्ध-महात्माओं का आज भी अभाव नहीं है, जो योग साधनाओं द्वारा अपने शरीर के मर्मों में सुरक्षित सूक्ष्म यन्त्र, चक्र, उपत्यिकाओं, नाड़ी-गुच्छकों और कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर लेते हैं, और उनसे ऐसी सामर्थ्य प्राप्त कर लेते हैं, जो साधारण व्यक्तियों के लिये चमत्कार जैसी लगती हैं। यह साधनायें कुछ कष्ट साध्य, समय साध्य और जीवन-प्रवाह से विपरीत दिशाओं पर चलकर साहसपूर्वक सिद्ध होती हैं, कुछ उनका सम्बन्ध आध्यात्मिक श्रद्धा और विश्वास से भी होता है, इसलिये बहुत कम लोग उन पर विश्वास कर पाते हैं, जो विश्वास कर भी लेते हैं, वे इतनी मूल्यवान् वस्तु के लिये उतना ही परिश्रम और परित्याग नहीं करना चाहते, इसीलिये भारतीय तत्व दर्शन का यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अध्याय उपेक्षित ही होता चला जा रहा है। पर इस एक आकस्मिक घटना ने एक बार फिर से सारे भारतवर्ष वरन् समूचे विश्व को यह सोचने के लिये विवश किया कि शरीर में कोई एक अतीन्द्रिय सत्ता अवश्य है, जो सर्वदर्शन, दूरदर्शन, दूरानुभूति आदि सूक्ष्म गुणों से सम्पन्न है। यह शक्ति सूक्ष्म होकर भी वैज्ञानिक है और उसे विभिन्न योगिक क्रियाओं के द्वारा जागृत भी किया जा सकता है। इस शक्ति का एक साधारण यन्त्र दोनों भौंहों के बीच जहाँ देखने वाली नाड़ियाँ (आप्टिक नर्ब्स) आप्टिक कैजमा बनाती हैं, वहाँ है और उसका नाम ‘आज्ञा चक्र’ रखा गया है। साधारण मनुष्यों में कभी गर्म नाड़ी (इड़ा), कभी ठंडी नाड़ी (पिंगला) चलती रहती है, इसीलिये उस सूक्ष्म संस्थान का बोध नहीं होता पर कुछ प्राणायाम और योग क्रियाओं से दोनों नाड़ियों को ‘समवात’ कर लिया जाता है तो एक तीसरी विद्युत-चुम्बकीय शक्ति ‘भ्रूमध्य में दिव्य प्रकाश के रूप में चमक उठती है, यह चैतन्य विद्युत ही उन तमाम जानकारियों का आधार है, जो दूसरों के लिये रहस्य जैसी होती है पर उस योगी के लिये वह नितान्त साधारण बात होती है। ‘योग चूडामण्युपनिषत्’ तथा दूसरे योग उपनिषदों शिव संहिता, घेरण्ड संहिता आदि आर्ष-ग्रन्थों में उसका विस्तार से वर्णन मिलता है।

पीटर हरकौस के साथ तो जो कुछ हुआ, वह सब अकल्पित और अनायास ही हो गया। उसने इसके लिये किसी प्रकार अभ्यास नहीं किया था। एक दिन की बात है-पीटर हरकौस अपने पिता के साथ हालैंड की सेनाओं की बैरिकों की पुताई कर रहा था, यह उसका पैतृक धन्धा था। पीटर की बहुत इच्छा थी कि वह पढ़-लिखकर कोई बड़ा कार्य करे पर परिवार के उत्तरदायित्वों से विवश पीटर को पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी पड़ी। कुछ दिन वह चीन में नाविक बनकर भी रहा पर वहाँ से छुट्टी मिली जो उसने फिर अपना सारा ध्यान इस एक ही कला में लगाया। दीवार की पुताई करते समय एकाएक उस दिन उसका हाथ छूट गया और वह 30 फुट नीचे एसफाल्ट की सड़क पर जा गिरा। उसे सख्त चोटें आईं कपाल फट गया, अस्पताल पहुँचाया गया, वहाँ किसी प्रकार जीवन रक्षा हुई।

पाड़ से गिरने की घटना सन् 1943 में घटी। अस्पताल में जब उसे होश आया तो उसने अपने में विलक्षण क्षमता अनुभव की। उसे ऐसा लगा कि कपाल के उस भाग में जहाँ चोट आई है, एक विशेष प्रकार की विद्युत तरंग-उभर उठी है, जब कोई अन्य वस्तु संपर्क में आती है तो उसके प्रभाव से उस व्यक्ति की अज्ञात बातों का भी उसके मन में अनायास प्राकट्य होने लगता है। हरकौस के बगल में ही एक दूसरा रोगी पड़ा था। उसे देखते ही हरकौस ने कहा- “तुम बड़े बुरे व्यक्ति हो।” वह व्यक्ति इस अयाचित प्रसंग के लिये बिलकुल तैयार न था पर जब छेड़खानी हो ही गई तो उसने भी आखिर पूछ लिया- “मैं क्यों खराब हूँ?”

पीटर हरकौस ऐसे बोले जैसे कोई चित्र वह स्पष्ट रूप से देख रहे हों-उन्होंने कहा- “तुम्हारे पिता ने कितने आदर और भावना के साथ तुम्हें सोने की घड़ी दी थी पर तुम ऐसे उड़ाऊ प्रकृति के व्यक्ति हो कि उसे बेच डाला और वह धन किसी सत्कार्य में लगाने की अपेक्षा यों ही आवारागर्दी में उड़ा दिया।”

यह सबसे प्रारम्भिक घटना थी, जिसने किसी दूसरे आदमी को प्रकट होने दिया कि पीटर हरकौस विलक्षण शक्ति का स्वामी बन चुका है। वह रोगी आश्चर्यचकित था कि जो बात मेरे अतिरिक्त दूसरा कोई व्यक्ति नहीं जानता वह इसने कैसे जान ली। उसने पूछा- “आपने यह कैसे जान लिया?” पर इसका कोई निश्चित उत्तर देने की क्षमता पीटर हरकौस में नहीं थी। जैसे कोई व्यक्ति उत्तराधिकार में पाये बहुत से धन को पाकर प्रसन्न तो होता है पर वह यह नहीं समझ पाता, इसका उपयोग कैसे करें? अपना पसीना न लगा होने से उसे उस धन के प्रति दर्द भी नहीं होता, इसलिये वह उसका अपव्यय ही करता है, उसी प्रकार हरकौस यह नहीं समझ पा रहा था कि वह क्या शक्ति है और उसका उपयोग किस प्रकार किया जाना चाहिये।

अनुभव के अभाव में दुरुपयोग की आशंका से ही भारतीय योगी अपने किसी भी शिष्य को चाहे जब अपनी शक्ति नहीं दे देते। रामकृष्ण परमहंस ने जिस तरह स्वामी विवेकानन्द को अच्छी तरह तौल लिया था कि वह इस शक्ति का उपयोग केवल लोक-कल्याण में करेंगे, तब शक्ति-दान दिया था, उसी प्रकार अन्य योगी भी शिष्य के पात्रत्व की परख करके ही उसे अपनी इन अलौकिक क्षमताओं का अनुदान देते हैं। पुरुषार्थ वाला रास्ता वे हर किसी के लिए खुला रखते हैं, कोई भी साहसी, शूरवीर साधक उसे अपने पुरुषार्थ और तप से प्राप्त कर सकता है। अपने पराक्रम से अर्जित शक्ति के प्रति दर्द भी होता है। अनायास उपलब्ध शक्ति का अपव्यय पीटर हरकौस की तरह ही निरर्थक होता है। जिस शक्ति से लोक-जीवन की दूषित दिशायें मोड़ी जा सकती थीं, वह कुछ लोगों को कौतुक और चमत्कार दिखाने में ही बीतीं।

थोड़ी देर हुई थी कि एक नर्स मरीजों का चार्ट देखती हुई पीटर हरकौस के पास पहुँची। उसे देखते ही उन्मादी की तरह पीटर बड़बड़ाया- “मैं देख रहा हूँ तुम रेलगाड़ी में यात्रा कर रही हो, इस यात्रा में तुम्हारी सहेली का सन्दूक खोने वाला है।”

नर्स अवाक् रह गई। वह स्टेशन से सीधे हास्पिटल पहुँची थी। इस बात का किसी और को पता भी नहीं था। सूटकेस सचमुच रेल में ही छूट गया था, वह स्टेशन को भागी। लौटकर उसने डाक्टरों को बताया कि पीटर हरकौस नामक रोगी के पास विलक्षण इन्द्रियातीत शक्ति है, वह किसी भी व्यक्ति के भूत और भविष्य को पढ़ने की अभूतपूर्व क्षमता से ओत-प्रोत है। डाक्टरों ने यह खबर मानस रोग विशेषज्ञ डॉ0 पीटर्स को भेजी। डॉ0 पीटर्स ने हरकौस की अनेक प्रकार से जाँच की। इस सूक्ष्म शक्ति का निश्चित विवेचन तो वे नहीं कर सके पर उन्होंने स्वीकार किया कि मस्तिष्क में कोई अति सूक्ष्म विद्युत-चुम्बकीय चेतना होनी चाहिये, जिसके परमाणुओं में अतिवाहिकता का यह गुण हो सकता है। पर प्रत्येक व्यक्ति के परमाणु किस प्रकार अलग-अलग होते हैं और यह मानस शक्ति उन्हें छाँटकर किन्हीं घटनाओं का दूर और पूर्वाभास कैसे पा लेती है, इस बात का कोई निश्चित पता वे नहीं लगा सके।

इसी शोध परीक्षण में तीन-चार दिन और बीते। एक दिन एक पुराना रोगी अस्पताल से छूटा। चलते समय वह रोगियों से हाथ मिलाने गया। पीटर के हाथ में उसका हाथ गया ही था कि वही अतीन्द्रिय बोध पुनः कौंचा। इधर वह अस्पताल से बाहर निकला उधर हरकौस चिल्लाये- “इसे रोको-यह तो अँग्रेजों का गुप्तचर है। जर्मन सी0 आई॰ डी0 इसके पीछे लगे हैं उन्हें इसकी असलियत मालूम पड़ गई है, ऐसा लगता है कि ‘कलचर स्ट्रीट’ में उसकी हत्या कर दी जायेगी।”

पीटर हरकौस और भी कुछ चिल्लाए इससे पहले ही डॉक्टर और नर्सों ने उसे आ सम्हाला। उन्होंने आते ही उसे चुप किया। उनका अनुमान था, वह विक्षिप्त अवस्था में प्रलाप कर रहा है, किन्तु दो दिन पीछे सचमुच ‘कलचर स्ट्रीट में उसकी हत्या हो गई, तब लोगों को पता चला कि पीटर हरकौस ने जो कुछ कहा था, वह प्रलाप न होकर एक ऐसी सच्चाई थी, जो उसके अन्तःकरण से निकली थी। वह शक्ति क्या थी, क्यों थी-अब भी यह कोई नहीं समझ पा रहा था।


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