कौवे ने हंस से कहा- “मित्र! कुछ भी हो तुम मुझे भी साथ ले चलो, मैं भी मान सरोवर के दर्शन करूंगा” हंस ने बताया-दूरी लम्बी है तुम उतनी दूर उड़ नहीं सकोगे? पर कौवे ने एक न मानी वह बराबर चलने की जिद करता रहा।
आखिर कौवे को लेकर हंस उड़ा पर थोड़ी ही दूर में कौवे के पंख ढीले पड़ गये। थके कौवे ने कहा- मित्र! तुम तो मुझे वहीं पहुँचा दो जहाँ से लाये थे। हंस ने बहुतेरा कहा कि हम तुम्हें अपने पंखों से ले चलेंगे पर कौवा भ्रमित था, शायद इतनी दूर पर मुझे अपनी जीवन यापन की वस्तुयें मिलें भी या नहीं, सो वह आगे बढ़ने को राजी नहीं ही हुआ।
हंस उसे लेकर फिर वहीं लौटा- “अपात्र को ज्ञान देने से तो ज्ञान का ही अपमान है यह कहकर वह फिर वहाँ से उड़ गया। कौवा तो जहाँ था वहीं पड़ा रहा।”