शब्द की सामर्थ्य-मंत्र का विज्ञान (1)

March 1970

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‘स्टार्ट’- एस, टी, ए, आर, टी कुल पाँच अक्षरों का उच्चारण करना भर था कि पाँच-सात मन भार की कार धड़-धड़-धड़-धड़ करने लगी। ‘गो’ अगला शब्द एक व्यक्ति के मुख से निकला और जी तथा ओ इन दो शब्दों ने न जाने क्या चमत्कार दिखाया कि स्वामिभक्त सेवक की भाँति कार सड़क पर चल पड़ी। देखते ही देखते कार पूरी स्पीड में थी। बिना किसी ड्राइवर के कार यों खुली सड़क पर जा रही थी, तभी सामने से कोई वाहन आता दिखाई दिया और तभी एकान्त में बैठे उन्हीं सज्जन ने आदेश दिया ‘हाल्ट’- एच,ए,एल,टी, कुल चार अक्षरों से एक कोई जादू निकला और कार जहाँ थी, वहीं जाम होकर खड़ी की खड़ी रह गई।

यह पंक्तियाँ पढ़ने तक किसी भी पाठक को भ्रम हो सकता है कि कहीं किसी जादू या हाथ की सफाई का खेल दिखाया जा रहा होगा, यह वर्णन उसी समय का होगा पर वस्तुस्थिति यह नहीं। यह एक विधिवत् सम्पन्न कार्यक्रम था, जिसे ग्राहम और नील नामक दो आविष्कारकों ने प्रस्तुत किया था। प्रदर्शन आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न नगर की एक भारी भीड़ वाली सड़क पर हुआ था। शब्द में कितनी सामर्थ्य है, यह देखने के लिये लाखों की भीड़ एकत्रित थी।

एक व्यक्ति के शब्दों और संकेतों पर निर्जीव कार काम कर रही थी, उसके पीछे विज्ञान का एक सिद्धान्त काम कर रहा था। शब्द की सामर्थ्य काम कर रही थी। प्रदर्शनकारी के हाथ में एक माचिस की तरह की डिब्बी जैसी ट्राँजिस्टर था। इस ट्राँजिस्टर का काम इतना था कि वह कार स्वामी की आवाज को एक निश्चित फ्रीक्वेन्सी पर विद्युत शक्ति के माध्यम से कार में ‘डैशबोर्ड’ के नीचे लगे नियन्त्रण-कक्ष (कन्ट्रोल यूनिट) तक पहुँचा देता था। उसी के आगे ‘कार-रेडियो’ नामक एक दूसरा यन्त्र लगा था, जब शब्द की विद्युत चुम्बकीय तरंगें उसमें टकरातीं तो कार के सब कल-पुर्जे अपने आप काम करने लगते। इंजन की नहीं, हॉर्न, बत्तियाँ, वाइपर आदि यन्त्र भी इशारे पर काम करते। लोगों ने देखा और आश्चर्य भी व्यक्त किया पर जो जानते थे, उन्होंने इस वाक् शक्ति के अकूत भण्डार का स्फुल्लिंग मात्र माना।

शब्द की सामर्थ्य सभी भौतिक शक्तियों से बढ़कर सूक्ष्म और विभेदन क्षमता वाली है, इस बात की निश्चित जानकारी होने के बाद ही मन्त्र-विद्या का विकास भारतीय तत्त्व-दर्शियों ने किया। यों हम जो कुछ भी बोलते हैं, उसका प्रभाव व्यक्तिगत और समष्टिगत रूप से सारे ब्रह्मांड पर पड़ता है तालाब के जल में फेंके गये एक छोटे से कंपन की लहरें भी दूर तक जाती हैं, उसी प्रकार हमारे मुख से निकला हुआ, प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कम्पन उत्पन्न करता है, उस कम्पन से लोगों में अदृश्य प्रेरणायें जागृत होती हैं, हमारे मस्तिष्क में विचार न जाने कहाँ से आते हैं, हम समझ नहीं पाते पर मंत्र-विद जानते हैं कि मस्तिष्क में विचारों की उपज कोई आकस्मिक घटना नहीं वरन् शक्ति की पर्तों में आदिकाल से एकत्रित सूक्ष्म कम्पन हैं, जो मस्तिष्क के ज्ञान-कोषों में टकरा कर विचार के रूप में प्रकट हो उठते हैं, तथापि अपने मस्तिष्क में एक तरह के विचारों की लगातार धारा को पकड़ने या प्रवाहित करने की क्षमता है। एक ही धारा में मनोगति के द्वारा एक सी विचार-धारा निरन्तर प्रवाहित करके सारे ब्रह्मांड के विचार जगत् में क्राँति उत्पन्न की जा सकती है, उसके लिये यह आवश्यक नहीं कि उन विचारों को वाणी या सम्भाषण के द्वारा व्यक्त ही किया जाये।

एक दिन महर्षि रमण के आश्रम में बहुत से सम्भ्रान्त लोग एकत्रित थे। अरुणाचलम् का वह स्थान जहाँ महर्षि का आश्रम था, पर्वतीय भाग से जुड़ा हुआ था। वहाँ अनेक तरह के जीव-जन्तु रहा करते थे। एक बन्दरिया वहाँ आकर खों-खों करने लगी। बड़ी देर तक वह ऐसे ही करती रही, किसी के मना करने और भागने पर भी वह भागी नहीं, तब महर्षि रमण ने हँसकर बताया- “इसका पति दल का राजा है, बन्दरों के मुखिया को यह अधिकार होता है कि वह एक से अधिक रानियाँ भी रखे। उसने किसी और बन्दरिया को भी रानी चुन लिया है, यह बात इस पहली रानी को पसन्द नहीं। बन्दरिया वही शिकायत करने आई है।” इसके बाद महर्षि थोड़ा ध्यानावस्थित हुये फिर थोड़ी देर में राजा-बन्दर वहाँ आया और ऐसा लगा मानो किसी ने उसे जबर्दस्ती समझा दिया हो, वह अपनी पहली रूठी हुई रानी को वहाँ से मना ले गया।

मूक सत्संग और प्रेरणाओं की ऐसी अनेक घटनायें वहाँ आये दिन घटती रहती थीं। उसका लाभ बिना वाणी सैकड़ों लोगों ने प्राप्त किया। ऐसे सूक्ष्म प्रेरणा प्रवाहों का लाभ केवल अति-साँसारिक व्यक्ति ही नहीं ले पाते अन्यथा अपने मस्तिष्क को थोड़ा भी विचार-शून्य करके ध्यानावस्थित हुआ जाये तो अभी भी पूर्व पुरुषों के अदृश्य और अपने काम के विचार आकर्षित किये जा सकते हैं।

यों कहने को स्वतन्त्रता संग्राम में विजय का श्रेय कुछ थोड़े से काँग्रेसी नेताओं को है पर एक समय वह आयेगा, जब विज्ञान बताएगा कि उन नेताओं में से एक भी ऐसा नहीं था, जो महर्षि अरविन्द जैसी महान् आत्माओं द्वारा सूक्ष्म रूप से प्रेरित और अनुप्राणित न किया गया हो।

विचारों की सूक्ष्म सामर्थ्य से मनोमय जगत् में क्रांतिकारी परिवर्तन किये जा सकते हैं तो शब्द की सामर्थ्य से स्थूल जगत् में ,पदार्थ और आकाश स्थित पिण्डों में जबर्दस्त विस्फोट किया जा सकता है। यही नहीं ग्रह नक्षत्रों में पाई जाने वाली सूक्ष्म-प्राण, विद्युत-प्रकाश, गर्मी आदि को आकर्षित किया जा सकता है पर उसके लिये इस कार में लगे नियन्त्रण कक्ष और ट्राँजिस्टर की तरह शब्दों का चयन एवं उनका नियंत्रित प्रयोग आवश्यक है, इस बात की गहनतम जानकारी के आधार पर ही मन्त्र और वैदिक ऋचाओं का निर्माण हुआ है। देखने में शब्द और प्रार्थनायें लगने वाले मन्त्र और ऋचायें एक प्रकार के यंत्र हैं, जिन का विधिवत् प्रयोग यदि कोई कर सके तो वह सारे संसार का स्वामित्व प्राप्त कर सकता है। आज इस बात को भौतिक विज्ञान अच्छी तरह जानता चला जा रहा है।

पचास वर्ष पूर्व तक रेडियो, टेलीफोन, जैसे यंत्रों को ही शब्द शक्ति के चमत्कार रूप में माना जाता था पर जब कैलीफोर्निया विश्व-विद्यालय के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री डॉ. हर्बर्ट हूबर ने शब्द के सूक्ष्म कम्पनों द्वारा एक ऐसी बारीक और नाजुक हड्डी पर लगे मैल और मिट्टी को साफ करके दिखा दिया, जिस पर कैसा भी हल्का ब्लेड चलाया जाता तो हड्डी टूटे बिना न रहती। पीछे तो शब्द शक्ति का ऐसा विकास हुआ कि औद्योगिक जगत में एक नई क्राँति मच गई। इन दिनों बड़ी-बड़ी मोटी इस्पात की चादरों को काटने, कपड़ों की धुलाई करने, शहर की आवाज से शहर के लिये विद्युत शक्ति तैयार कर लेने जैसे भारी कामों में भी शब्द शक्ति का उपयोग होने लगा है। अभी तक एक्स-रे को ही ऐसा सूक्ष्म यन्त्र समझा जाता था, जो शरीर के भीतरी हिस्सों की स्थिति का भी पता दे देता है पर उसके द्वारा खींचे गये फोटोग्राफ इतने स्पष्ट नहीं आते कि स्थिति का पूर्णतया सही अनुमान लगाया जा सके, शब्द की सामर्थ्य ने अब इस कार्य को भी अति आसान बना दिया है। यह कार्य अब ‘अल्ट्रा साउण्ड’ द्वारा सम्पन्न होने लगा है।

‘अल्ट्रासाउण्ड’ उस ध्वनि को कहते हैं, जो मनुष्य के कान से किसी भी स्थिति में न सुनी जा सके। अति सूक्ष्म कम्पनों को जब विद्युत-आवेश प्रदान किया जाता है तो उनकी भेदन क्षमता इतनी बढ़ जाती है कि सघन से सघन वस्तु के परमाणुओं का भी भेदन करके उसकी आन्तरिक रचना का स्पष्ट फोटोग्राफ प्रस्तुत कर देती है।

उदाहरण के लिए शिकागो की एक महिला की डाक्टरी परीक्षा की गई पर डॉक्टर यह नहीं निश्चय कर पाये कि इसके पेट में ट्यूमर की गाँठ है अथवा गर्भ। एक्सरे पर एक्सरे खींचे गये पर स्थिति का सही पता नहीं चल सका। तब अल्ट्रा साउण्ड का प्रयोग किया गया और यह साफ प्रकट हो गया कि महिला के पेट में गर्भ विकसित हो रहा है। यूटा (अमेरिका) में एक व्यक्ति से धोखे में गोली चल गई। छर्रा एक छोटे बच्चे की आँख में धंस गया। डाक्टरों ने पचासों प्रयत्न किये पर यह पता नहीं चल पाया कि कारतूस का टुकड़ा किस स्थान पर डट गया है।

आखिरकार बच्चे को वाशिंगटन के सरकारी अस्पताल में भेजा गया। वहाँ ‘अल्ट्रासाउण्ड’ का प्रयोग किया गया तो पीतल के टुकड़े का साफ चित्र आ गया और बात की बात में डाक्टरों ने उसे निकालकर बाहर कर दिया।

अभी तक किसी ऐसी विधि का आविष्कार नहीं हो पाया था, जो शरीर के अति कोमल ‘ऊतकों’ की जाँच कर सके। शरीर छोटे-छोटे कोश (सेल्स) से बना है। बहुत से कोश मिलकर ऊतक बनते हैं, जिनसे शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है पर अमेरिका के कोलोरेडो विश्व-विद्यालय के चिकित्सा शास्त्री डॉ. जोऐफ होम्स ने अल्ट्रासाउण्ड के प्रयोग द्वारा ऊतकों के साफ अध्ययन की सफलता भी प्राप्त कर ली। यह कार्य जिस यन्त्र से सम्पन्न होते हैं, उसे ‘ट्राँस्डूसर’ कहते हैं, इस यन्त्र में विद्युत-ऊर्जा को ध्वनि-ऊर्जा में बदला जाता है। एक सेकिंड में बीस हजार से भी अधिक की गति से ध्वनि-तरंगें प्रसारित करता है, यह तरंगें आगे जाकर जिस माध्यम से टकराती हैं उस वस्तु का परावर्तित कम्पनों से चित्र तैयार कर देती हैं। कम्पन की गतियों के नियन्त्रण और विस्तार की प्रणाली हर कार्य में अलग होती है। पर अन्ततः सिद्धान्त एक ध्वनि-तरंगों के अति सूक्ष्म प्रसारण का है।

विज्ञान की उपलब्धियाँ यह बताती हैं, क्रमबद्ध ध्वनि-कम्पनों में जबर्दस्त सामर्थ्य है, यन्त्रों में इन्हीं सिद्धान्तों का समावेश है। मनोगति के सम्मिश्रण के द्वारा यह शक्ति और भी बढ़ जाती है और जब मनुष्य उस पर पूरा-पूरा नियन्त्रण-मन्त्र सिद्धि प्राप्त कर लेता है तो वह ऐसे ही आश्चर्यजनक प्रयोग कर सकता है, जैसे इस लेख में ऊपर बताये गये हैं।


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