मन का अभ्यास

March 1970

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भिखारी ने हाथ आगे बढ़ाया पर जेब में कुछ न निकला। अश्वपति कुछ दुखी से होकर घर गये और एक बर्तन उठाकर ले आये और भिखारी को दे दिया।

थोड़ी देर में अश्वपति की पत्नी आई और वह बर्तन न पाकर चिल्लाई अरे चाँदी का बर्तन भिखारी को दे दिया। दौड़ो-दौड़ो उसे वापिस लेकर आओ।

अश्वपति ने आगे बढ़कर भिखारी को रोककर कहा-भाई! मेरी पत्नी ने बताया है कि यह गिलास चाँदी का है, उसे सस्ता मत बेच देना।

एक पड़ौसी ने पूछा-अश्वपति! जब तुम्हें पता हो गया था कि गिलास चाँदी का है तो भी उसे गिलास क्यों ले जाने दिया।

अश्वपति ने हँसकर कहा-मन को इस बात का अभ्यास बनाने के लिये कि वह बड़ी वे बड़ी हानि से भी दुखी और निराश न हो।


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