यदि परमेश्वर की इच्छा होती तो उसने कुछ लोगों को हाथ ही हाथ दिये ओर कुछ लोगों के सिर ही सिर होते। कुछ राहू और कुछ केतू निर्माण होते। किन्तु भगवान् ने प्रत्येक मनुष्य को सिर और हाथ दोनों दिए हैं। इसका अर्थ है कि अग्नि में जो कर्म की आहुतियाँ देता चलता है, वही सच्चा यजमान है, उसी के जीवन में यज्ञ जैसी तेज स्थित होती है।
-स्वामी विवेकानन्द