लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीड्यन्।
पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दितः॥
कदाचिदपि पर्यटञ्छशविषाणमा सादयेद्।
न तु प्रतिनिविष्टमूर्ख जन चित्तमाराधर्यत॥
—भर्तृहरि
“यत्नपूर्वक पेरने से कदाचित बालू में से तेल निकल आवे, मृग तृष्णा से प्यास बुझ जाय, ढूँढ़ने से खरगोश का सींग मिल जाय—चाहे ये सब असंभव कार्य किसी प्रकार संभव हो जायें, परन्तु मूर्ख का मन जिस तरफ झुक गया है उसे हटा सकना किसी प्रकार संभव नहीं।”
चाहिए और उन्हें प्रेरणा देने का कार्य अपने जिम्मे ले लेना चाहिए।
सत्साहित्य पढ़ने में रुचि उत्पन्न करना पहला काम है। आमतौर से लोग आत्मनिर्माण जैसे रूखे