Quotation

April 1963

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

तदलं प्रतिपक्षमुन्नतेरवलम्व्य व्यवसाय वन्ध्यता।

निवसन्ति पराक्रमा श्रया न निवादेन समं समृद्धयः॥

—भारवि

“उन्नति-मार्ग में बाधक अनुत्साह का अवलम्बन करके पड़े रहना अनुचित है, क्योंकि सब प्रकार की समृद्धियाँ पराक्रमी-उत्साही पुरुष को ही प्राप्त होती हैं और उत्साह हीन को त्याग देती हैं।”

गुण्डागर्दी मिटाने के लिए, अपराधियों को दण्ड दिलाने के लिए संघर्षात्मक जो प्रयोग किये जाते हैं, उनसे भी दुष्टता घटती नहीं, बढ़ती है। चोर-ठग जेल में जाकर अन्य साथियों के सान्निध्य में अपनी कला में और भी अधिक पारंगत बन कर निकलते हैं। यदि उनका हृदय परिवर्तन न हुआ तो हर जेल जीवन के बाद अपराधी प्रवृत्ति के लोग और भी अधिक खतरनाक बन कर निकलते हैं। भावना बदलने से वाल्मीकि और अंगुलिमाल जैसे डाकू, अम्बपाली और गणिका जैसे शील रहित, सूर और तुलसी जैसे कामुक बदल कर कुछ से कुछ हो सकते हैं। यह उद्देश्य दण्ड मात्र से पूरा नहीं होता। संसार से अपराधों को जड़ से काटने के लिए जेल पर्याप्त नहीं, सुधारात्मक शिक्षण की उपयोगिता अधिक है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118