हमारी आज की कार्य-पद्धति यह हो

April 1963

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जिस प्रकार आक्रमणकारी चीन से निपटने के लिए हम अपने सैन्य साधन तेजी से बढ़ाने में संलग्न है जिस प्रकार गरीबी और अशिक्षा को दूर करने के लिए देश में अनेकों प्रवृत्तियाँ चल रही हैं उसी प्रकार सद्भावनाओं का अकाल दूर करने के लिए विशाल परिमाण में यह प्रयत्न करना होगा कि जन-मानस में उत्कृष्टता एवं आदर्शवाद के लिए उत्साह उत्पन्न हो, लोग उसका महत्व समझें और इस दिशा में अग्रसर होने के लिए आवश्यक धैर्य और शौर्य की वृत्ति को परिपक्व बनावें।

जिस प्रकार कृषि का एक बड़ा फार्म बनाने के लिए विशिष्ट उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिस प्रकार कोई बड़ा कारखाना या मिल लगाने के लिए अनेकों यंत्र एवं उपकरण अभीष्ट होते हैं इसी प्रकार सद्भावनाओं का उत्पादन विशाल परिमाण में करने के लिए बड़े उपकरणों की आवश्यकता होगी। यह उपकरण हो सकते हैं वे व्यक्ति जो अपने साथ कुछ जन्मजात सुसंस्कार लेकर जन्मे हों। मजबूत लोहे की बनी हुई मशीनें ही देर तक ठीक काम कर सकती हैं। कच्चे लोहे से बने हुए यन्त्र या पुर्जे थोड़ा-सा दबाव पड़ने पर बिगड़ जाते हैं। तत्काल उत्साह देकर या आवेश उत्पन्न करके किसी से तत्काल कुछ सत्कर्म कराया तो जा सकता है पर मनोभूमि की कच्चाई के कारण वह उत्साह देर तक ठहरता नहीं, आवेश ठण्डा होते ही लोग पुनः अपने पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं।

दृढ़ चरित्र, दृढ़ प्रतिज्ञ और प्रकाशवान् व्यक्तित्व ही युग-निर्माण का उद्देश्य पूर्ण कर सकते हैं, अब उन्हीं को ढूँढ़ा और पकाया जाना चाहिए। प्रारंभिक प्रयत्न यह होना चाहिए कि जिन लोगों में, धैर्य नीति के सदाचार के बीजाँकुर किसी रूप में उगे हुए दिखाई पड़ें पहले उन्हें प्रभावित किया जाय। खाद और पानी पाकर मुरझाये हुए पौधे भी हरे भरे होते और तेजी से बढ़ते हैं। जिनमें थोड़ी भी अभिरुचि सत्प्रवृत्तियों की ओर है उन्हें यदि सत्संग का खाद और स्वाध्याय का पानी मिलने लगे तो वे अवश्य ही सुविकसित होंगे।

युग निर्माण की प्रौढ़ विचार धारा वर्षा के जल के समान उपयोगी सिद्ध होती है। हम लोग अपने छोटे-छोटे व्यक्तित्वों के द्वारा भी उन नव विकसित अंकुरों के लिए खाद की आवश्यकता पूरी कर सकते हैं। विद्वानों और दिग्गजों से शास्त्रार्थ करने की शक्ति भले ही न हो पर अभिनव बीजाँकुरों को प्रेरणा देने के लिए कोई भी ईमानदार और भावनाशील व्यक्ति कुछ न कुछ प्रेरणा देने वाला मार्ग दर्शन अवश्य कर सकता है। देखना यह चाहिए कि हमारे परिवार, पड़ौस में, स्वजन सहयोगियों में और परिचित प्रियजनों में कौन-कौन व्यक्ति ऐसे हैं जिनके गुण-कर्म-स्वभाव में सज्जनता और विचारशीलता का अंश समुचित मात्रा में विद्यमान है। जो लोग ऐसे दीख पड़े उनके नाम नोट कर लेने


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