देश, काल और पात्र की आवश्यकताओं को देखते हुए मानव जीवन की सार्थकता के लिए हमें आज क्या कार्यक्रम अपनाना चाहिये? गंभीरतापूर्वक यह विचार करने पर एक ही निष्कर्ष निकलता है कि दुर्भावना एवं दुष्प्रवृत्ति के बढ़े हुए प्रकोप के उन्मूलन के लिए हमें प्राण-पण से जुट पड़ना चाहिए। आज इसी ताड़का का उपद्रव इस ऋषि-भूमि में सबसे अधिक हो रहा है। जब तक सद्भावनाओं की प्रवृत्ति बढ़ेगी नहीं तब तक सुधार के सारे प्रयत्न निष्फल होते रहेंगे। ऊसर भूमि में बहुत वर्षा होने पर भी घास नहीं जमती, उसी प्रकार दुर्बुद्धि भरे हुए व्यक्ति बहुत उपकार करने एवं सहयोग देने से भी ऊँचे नहीं उठ सकते।