दूरदर्शी और विवेकवान बेंत

April 1963

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नदी में बाढ़ आई। फुफकारती हुई सर्पिणी की तरह लहरें तट की मर्यादा को तोड़ती हुईं चारों और फैलने लगीं।

प्रवाह में भारी प्रचंडता थी। तटवर्ती वृक्ष और भूखण्ड उसकी लपेट में आकर धराशायी होने लगे।

किनारे पर शमी का एक विशाल वृक्ष मुद्दतों से अकड़ा खड़ा था। वह सोचता था मेरी जड़ें गहरी हैं मैं परिपक्व भी हूँ और सुदृढ़ भी, इन लहरों की क्यों परवा करूं ?

उसका सोचना चल ही रहा था कि लहरों ने जड़ के नीचे की मिट्टी काटनी शुरू कर दी। हर लहर के साथ मिट्टी खिसकने लगी। मजबूत तने से प्रवाह टकराया तो वहाँ एक नया संघर्ष होने लगा। वृक्ष की निश्चितता काम न आई। देखते-देखते वह उखड़ गया। देखने वालों ने आश्चर्य से देखा कि नदी तट का पुरातन शमी लहरों पर उतराता हुआ लुढ़कता-पुढ़कता बहा चला जा रहा है।

पास ही एक बेंत का छोटा सा गुल्म खड़ा था। उसने सोचा विपत्ति आने से पूर्व सुरक्षा का उपाय कर लेना चाहिए। वह झुका और मिट्टी के सतह पर लेट गया। गरजती हुई पानी की लहरें उसके ऊपर होकर गुजरती रहीं। बाढ़ उतरी तो देखने वालों ने देखा कि बेंत का पौधा सुरक्षित है और खतरा टलते ही अपना मस्तक उठाने की तैयारी कर रहा है।

पूछने वालों ने पूछा—विशाल शमी वृक्ष क्यों उखड़ गया और बेंत का छोटा पौधा बाढ़ से बचा रहा?

बताने वाले ने बताया—अहंकारी अक्खड़ और अदूरदर्शी समय की गति को नहीं पहचानते और ढिठाई उन्हें ले बैठती है। किन्तु जो नम्र हैं, दूरदर्शी और विवेकवान हैं, वे झुकते हैं, टकराने से बचते हैं और सज्जनता का सुफल देर तक प्राप्त करते रहते हैं।


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