जिस प्रकार स्थूल शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म प्राण की शक्ति अधिक मानी जाती है उसी प्रकार स्थूल यज्ञों की अपेक्षा सूक्ष्म यज्ञ की महत्ता असंख्य गुनी अधिक होती हैं। घी, सामग्री, समिधा आदि के द्वारा सम्पन्न होने वाले यज्ञ ‘स्थूल’ कहलाते हैं और ज्ञान-यज्ञ को ‘सूक्ष्म’ कहा गया है। यों स्थूल यज्ञों की महिमा भी कम नहीं है, पर ज्ञान यज्ञ तो सर्वोपरि है। गीता में भगवान ने कहा है कि ज्ञान से बढ़कर इस संसार में पवित्र और कुछ नहीं। निस्संदेह आत्मा को प्रकाश से परिपूर्ण बनाने के लिए ज्ञान ही एक मात्र आधार होता है। अज्ञान को ही माया एवं भव बन्धन के नाम से पुकारते हैं और ज्ञान को मुक्ति का आधार माना गया है।