अपने को बदले बिना दूसरों का बदला जा सकना संभव नहीं। युग-निर्माण का शुभारम्भ—श्रीगणेश अपने आपका निर्माण करने की प्रक्रिया के साथ होना चाहिए। वाणी और लेखनी की शक्ति अब धीरे-धीरे घटती जा रही है। क्योंकि वक्ता और लेखक स्वयं वैसा आचरण नहीं करते जैसा कि दूसरों से कराना चाहते हैं। चारित्रिक शिक्षा के लिए यह आवश्यक है कि उपदेशक दूसरों के सामने अपना आदर्श उपस्थित करें, यदि सद्भावनाओं की सम्पत्ति का संसार में बढ़ाया जाना उचित और आवश्यक है तो उसका प्रथम प्रयोग अपने आप पर ही आरम्भ करना चाहिए, जो वस्तु लाभदायक है उसका उपभोग सबसे पहले हम स्वयं ही क्यों न करें?