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April 1963

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नात्युच्चशिखरो मेरुः नातिनीचं रसातलम्।

व्यवसायद्वितीयानाँ नाप्यापारो महोदधिः॥

—अज्ञात

“उद्योगी पुरुष के लिये सुमेरु पर्वत की चोटी भी अधिक ऊँची नहीं है, उसके लिये रसातल भी अधिक गहरा नहीं है और न वह समुद्र को ही अथाह और अपार समझता है।

यदि विचार बदल जायेंगे तो कार्यों का बदलना सुनिश्चित है। कार्य बदलने पर भी विचारों का न बदलना संभव है, पर विचार बदल जाने पर उनसे विपरीत कार्य देर तक नहीं होते रह सकते। विचार बीज है, कार्य अंकुर। विचार पिता है, कार्य पुत्र। इसलिए जीवन परिवर्तन का कार्य विचार परिवर्तन से ही आरम्भ होता है। जीवन निर्माण का-आत्म-निर्माण का अर्थ है—”विचार निर्माण।”

लोहे से लोहा काटा जाता है, काँटे से काँटा निकलता है, विष को विष मारता है, सशस्त्र सेना का मुकाबला करने के लिए वैसी ही सेना चाहिए। कुविचारों का शमन सद्विचारों से ही संभव है। इसलिए यह नितान्त आवश्यक है कि अपने गुण, कर्म स्वभाव में जो त्रुटियाँ एवं बुराइयाँ दिखाई दें उनके विरोधी विचारों को पर्याप्त मात्रा में जुटा कर रखा जाय और उन्हें बार-बार मस्तिष्क में स्थान मिलते रहने का प्रबन्ध किया जाय। जब आलस्य घेर रहा हो तब परिश्रम, उत्साह स्फूर्ति और तत्परता को प्रोत्साहन देने वाले विचारों पर देर तक मनन चिन्तन करना चाहिए, आलस्य हट जायगा। जब कामुकता जग रही हो तो ब्रह्मचर्य, मातृ-भावना एवं चारित्रिक पवित्रता की विचारधारा को मन में स्थान देना चाहिए वासना शाँत हो जायगी।

क्रोध का आवेश चढ़ रहा हो तो शान्ति, प्रेम, क्षमा, मैत्री, सहानुभूति, उदारता की दृष्टि से विचार करना शुरू कर देना चाहिए, गुस्सा ठंडा हो जायगा। शोक, निराशा और चिन्ता घेरने लगे तब साहस, आशा, पुरुषार्थ और पुनर्निर्माण की बात सोचनी चाहिए, मन सन्तुलित होने लगेगा। यदि निकृष्ट विचार मनुष्य को गिरा सकते हैं तो उत्कृष्ट विचार उसे ऊँचा भी उठा सकते हैं।


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