दिव्य आत्मा कौन?
‘परमार्थ प्रयोजनों के लिए बहुत कुछ कर गुजरने की अभिलाषा’ एक ऐसा तत्व है, जिसे ईश्वरीय प्रकाश एवं पूर्व जन्मों के संचित उत्कृष्ट संस्कारों का प्रवाह कह सकते हैं। जिसके भीतर जितनी ईश्वरीय प्रयोजनों में सहयोगी बनने की तड़पन हैं, वह उतना ही दिव्य आत्मा है। तड़पन पानी के स्रोतों की तरह है, जो पहाड़ जैसी कठोरता को चीरकर बाहर निकल आती है। साधारण परिस्थिति के लोग भी उपयुक्त अवसर पर अपनी तड़पन क्रियान्वित करने का साहस कर बैठते हैं, तब वह साहस ही ईश्वरीय अवतरण के रूप में उन्हें सूर्य चंद्रमा की तरह चमका देता है। तड़पन का फूट पड़ना, इसी का नाम अवतरण है।
-वाङ्मय 28, पृ. 2.87