जी खोलकर रोयें

April 2001

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आंसुओं का मनोभावों से सीधा रिश्ता है। कभी खुशी में तो कभी गम में आँसू बरबस आंखों से टपक ही पड़ते हैं। किंतु प्रचलित मान्यताओं के प्रभाव में हम आँसुओं को छलकने से प्रायः रोक देते हैं कि कही लोग हमें बचकाना, भावुक या दुर्बल न समझ बैठें। आँसुओं के रूप में भावों का यह दमन विशेषज्ञों के अनुसार स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। उनके अनुसार आँखों से आँसुओं का सहज एवं मुक्त बहाव शारीरिक एवं मानसिक हर दृष्टि से स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम है।

मिनिसोटा विश्वविद्यालय के डॉ. विलियम फ्रे ने सबसे पहले यह सुझाव दिया था कि भावनात्मक दमन शरीर में विषाक्त तत्वों का उत्पादन करता है और रोना चिल्लाना इसके निष्कासन में सहायक होता है। आँसुओं को रोकने से दमित भाव कई रूपों में विकृत होकर अधिक गंभीर रूप लेने है। इसी संदर्भ में डॉ. राबर्ट प्लचिक अपनी पुस्तक ‘इमोशन ए साइको इवोल्यूसरी सिंथेसिस’ में लिखते हैं कि आँसुओं के साथ रोना या चिल्लाना मदद की पुकार का एक संकेत होता है, जो प्रायः सुना जाता है। इसका दमन अन्य आहत क्षणों में भय, क्रोध, या उद्विग्नता जैसे मनोभावों के दमन की ओर ले जाता है, जिससे अवसाद, कुँठा, द्वंद्व तनाव व अन्य दिमागी विकृतियाँ पैदा होती हैं। आँसुओं के जबरन रोकने से दिल व दिमाग पर बोझ पड़ने लगता है और शरीर में अल्सर एवं कोलाइटिस जैसी व्याधियों का कारण बन सकता है।

घोर विपत्ति या दुख के समय यदि किसी व्यक्ति की आँखों में आंसू न आएँ, तो चिकित्सकों के अनुसार व्यक्ति अस्वस्थ माना जाता है। यदि किसी महिला की आँखों में घोर शोक अथवा संकट की घड़ी में आँसू न आएँ, तो वह शुष्काग्नि रोग से ग्रसित होती है, जिसे असाध्य माना जाता है। अभी हाल में ही बच्चों में ‘फेमिलियल डिसटोनिया’ नामक एक वंशानुगत रोग की खोज हुई है। इसमें बच्चे रोते हैं तो उनके आँसू नहीं निकलते या बहुत कम निकलते हैं। इसे एक घातक रोग माना गया है। इसके कारण बच्चों को समुचित विकास नहीं हो पाता है और वे बड़े होने पर प्रायः आक्रामक वृत्ति के होते हैं।

आँखों से आँसू न आने के कारण कई तरह की विकृतियाँ आँखों में चुभन या जलन, दिखने में कठिनाई होना, जोड़ो में दर्द, श्वासनली में खुश्की, मुँह फटना, नाक का सूखा रहना, सरदर्द आदि हो सकते हैं। इसी कारण आयुर्वेद एवं यूनानी चिकित्सकों का मत है कि आँसुओं के बहने से रुका हुआ जुकाम, गरदन की अकड़ आँख व सिर के दर्द से छुटकारा मिलता है।

नवीन अनुसंधान के अनुसार आँसू भी असली और नकली होते हैं। अलग-अलग स्थिति में निकलने वाले आँसुओं की संरचना अलग-अलग होती है। अमेरिकी नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जेम्स के अनुसार धुँआ लगने, प्याज काटने या आँखों में कुछ गिर जाने से निकलने वाले आँसू नकली तथा दुख दर्द में बहने वाले आँसू असली होते

संत अरिष्टनेमि की भक्ति से प्रसन्न होकर इंद्र ने देवदूत को उन्हें सादर स्वर्ग में लाने के लिए भेजा। देवदूत संत के पास आकर बोला, “महाभाग! मुझे सुरपति इंद्र ने भेजा है। उनका आग्रह है कि आप मेरे साथ स्वर्ग चलें और वही निवास करें।”

‘स्वर्ग!” संत ने तो परमार्थ से आत्मकल्याण की बात सुनी थी, जब स्वर्ग बीच में आ टपका तो उनको कहना ही पड़ा, “भाई अपना स्वर्ग तो मैंने यही बना रखा है। मैं क्या करूंगा, उन सुविधाओं का? हो आनंद मुझे उन उपभोगों में मिलता, वही यहाँ धरती पर जन-जन की सेवा करने में मुझे प्राप्त होता है। इसके समक्ष तुम्हारा स्वर्ग मेरे लिए फीका है।”


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