एक व्यक्ति को महात्मा जी के आशीर्वाद से सात दिन के लिए पारस पत्थर तो मिल गया, पर अब वह व्यक्ति सस्ते लोहे की तलाश में शहर-शहर भटकने लगा। एक जगह नहीं मिला, तो दूसरी जगह दौड़ा। इसी दौड़-धूप में सारा समय गुजर गया और वह रत्तीभर भी सोना न बना सका। सातवें दिन महात्मा ने मणि वापस ले ली।
यह जीवन भी पारसमणि हैं। जो इसे आत्मिक संपदा में बदलना चाहता है वह अवसर नहीं गंवाता। आकर्षणों में भटककर समय नष्ट नहीं करता। आत्मावलंबनजन्य विभूतियाँ उसे जो संतोष-परितृप्ति देती हैं, उनकी तुलना में उसे सारा वैभव अर्थहीन नजर आता है।