निष्ठुरता से बढ़कर कुरूपता और कहीं कोई नहीं।
जाग्रत आत्माओं एवं महापुरुषों का एक ही चिन्ह है कि वे संकीर्ण क्षेत्र में सीमित नहीं रहते। शरीर, घर और धन इतना ही सब कुछ है, ऐसा वे नहीं मानते और उसके अतिरिक्त और कुछ कर्तव्य भी उनका है, ऐसा वे सोचते हैं। अपने समय की, देश धर्म, संस्कृति एवं समाज की जिम्मेदारियाँ वे समझते हैं और उनकी सामयिक आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए वे कुछ करते भी हैं।