यमराज द्वारा नचिकेता की निष्ठा पर प्रसन्न होकर तीन वर दिए गए। उन्होंने मृत्यु भय से मुक्त होने के स्थान पर पिता के क्रोध की शांति का पहला वर माँगा। परलोक के लिए स्वर्ग के साधन रूप अग्नि विज्ञान का दूसरा वर प्राप्त करके उसने तीसरा वर आत्मा के यथार्थ स्वरूप और उसकी प्राप्ति का उपाय जानना चाहा। यमराज द्वारा वचनबद्ध होते हुए भी तीसरे वर का उसे पात्र न मानने के कारण आत्मतत्व तथा आत्मा के मरणोपराँत अस्तित्व संबंधी अनुभूत ज्ञान के अतिरिक्त उसने कुछ न माँगा।
चयन की स्वतंत्रता सामने होते हुए भी नचिकेता ने सुखोपभोग, मुक्ति, पुनरुज्जीवन जैसे लाभ एक ओर होते हुए भी ब्रह्मविद्या व आत्मविद्या के ज्ञान को जानने की प्राथमिकता दी। पंचाग्नि विद्या को आत्मसात् कर साधना पथ का मार्गदर्शन मानव मात्र के लिए कर सकने में वे सफल हुए। ऐसे सौभाग्यशाली बिरले ही होते हैं।