पुराने जमाने में ईश्वर पर विश्वास नहीं करने वाला नास्तिक होता था और नए धर्म में स्वयं पर विश्वास न करने वाला नास्तिक कहलाता है।
-विवेकानंद
सुँदरता चेहरे की बनावट एवं साज-सज्जा पर टिकी हुई नहीं है। वह तो अच्छे स्वभाव और सज्जनोचित व्यवहार से उभरती है।
घृणा को घृणा से और बैर को बैर से जीत सकना कठिन है। आग में ईंधन डालने से वह भड़कती भर है। बुझाने के लिए प्यार की सजलता चाहिए।
लोग धर्म के लिए कहते हैं, सुनते हैं, झगड़ते और मरते-मारते हैं। पर ऐसे कुछ ही लोग हैं, जो धर्म के लिए जीवन जीते हैं।