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April 2001

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यज्ञेषु देवास्तुष्यन्ति यज्ञे सर्व प्रतिष्ठितम्। यज्ञेन ध्रियते पृथ्वी यज्ञस्तारयति प्रजाः॥ अन्नेन भूता जीवन्ति यज्ञे सर्व प्रतिष्ठिम। पर्जन्यें जायते यज्ञात सर्व यज्ञमयं ततः॥

यज्ञों से देवता संतुष्ट होते हैं, यज्ञ ही समस्त चराचर जगत् का प्रतिष्ठापक है। यज्ञ पृथ्वी को धारण किए हुए है, यज्ञ ही प्रजा को पापों से बचाता है। अन्न से प्राणी जीवित रहते हैं। वह अन्न बादलों द्वारा उत्पन्न होता है और बादलों की उत्पत्ति यज्ञ से होती है। अतः यह संपूर्ण जगत् यज्ञमय है।

-कालिकापुराण 23-7-8


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