अपनो से अपनी बात - 1 - इस प्रतिकूल वेला में किए जाने वाले कुछ अनिवार्य कार्य

April 2001

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नई सहस्राब्दी की शुरुआत ही महाकाल द्वारा सभी की, मानव मात्र की एक परीक्षा से हुई है। जिन दैवी आपदाओं से कहर बरसने एवं प्रलय जैसा वातावरण बनने की बात गुरुसत्ता द्वारा 1987 से 199 तक सतत कही जाती रही, लगभग वैसा ही कुछ स्वरूप पिछले दिनों देखने को मिला है। भचाऊ एक बड़ा समृद्ध शहर कच्छ जिले ही नहीं, पूरे गुजरात में माना जाता रहा है। किंतु 26 जनवरी 12 की प्रातः 8 5 से पूर्व तक ही। इसके तीन मिनट बाद वहाँ एक भी सबूत दीवार नहीं बची, सब कुछ जमींदोज जो हो गया था। हमारे आधार शिविर से कुछ पीछे मलबे की सफाई के दौरान एक मृत व्यक्ति की जेब से पूज्यवर का लिखा एक पर्चा मिला, जो गायत्री परिवार के कार्यकर्त्ताओं ने वितरित किया होगा। उसमें युग बदलने, महाविनाश की परिस्थितियों से सँभलने की स्पष्ट चेतावनी दी गई थी। यह पर्चा हमने 22 2 1 को प्रातः गुजरात भर के कार्यकर्त्ताओं की एक गोष्ठी में भचाऊ शिविर में पढ़कर सुनाया। जो छपा था, जो हो चुका था, उसमें कितना गजब का साम्य था। सब दहलकर रह गए। (राजकोट) के पीपल्या चौक के पास छह कैंप लगा दिए गए। अपने विभिन्न जिलों से कार्यकर्त्ता पहुँचने लगे। प्रायः डेढ़ हजार कार्यकर्त्ताओं ने नगरों-कस्बों-गाँवों में जाकर भोजन, राशन, कंबल, दवाओं का वितरण आरंभ कर दिया था। स्वयं श्री गौरीशंकर शर्मा 1 फरवरी से सतत वही बने रह अस्थायी-स्थायी आवास एवं विद्यालयों के निर्माण तथा राहत सामग्री के वितरण का कार्य देख रहे हैं। लाइफ लाइन एक्सप्रेस एवं यूक्रेन के अस्पतालों के समीप होने से सुदूर गांवों से बारह वाहनों, 4 एंबुलेंसों द्वारा मरीजों को लाकर उन्हें स्थायी राहत दी जाने लगी थी। स्वयं डॉ. प्रणव पण्ड्या 18 से 24 फरवरी की अवधि में छह दिन भचाऊ आधार शिविर रुके। उनने भुज व आसपास के क्षेत्र का, जामनगर के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र जोडिया एवं आमरण का, मोरबी व मालिया में क्षतिग्रस्त गाँवों का, सुरेंद्रनगर में पाटडी तथा लिंबड़ी क्षेत्र का निरीक्षण किया। लौटने से 2 दिन पूर्व 22 2 1 को पूरे गुजरात के सभी कार्यकर्त्ताओं को आपातकालीन मीटिंग में बुलाकर उस क्षेत्र में पुनर्निर्माण की जिम्मेदारियाँ सौंपी गई। लौटते में मुख्यमंत्री

शाँतिकुँज गायत्री तीर्थ की अपनी ओर से पहल एवं सभी से अनुरोध

शाँतिकुँज गायत्री तीर्थ से इस त्रासदी में 26 जनवरी को वापस रवाना हो रहे जयंती भाई, वासंती बेन पटेल को राजकोट से तुरंत भूकंप के केंद्र कच्छ पहुँचने को कहा गया। बड़ौदा एवं अहमदाबाद जहाँ भी टेलीफोन से संपर्क हो पाया, वस्तुस्थिति बताने एवं तुरंत राहत कार्य आरंभ करने को कहा गया। 27 जनवरी की प्रातः पचास से अधिक कार्यकर्त्ता शाम तक लगभग तीन सौ तथा 28 जनवरी की प्रातः तक शाँतिकुँज से वरिष्ठ कार्यकर्त्ताओं का चार सदस्यीय दल श्री वीरेश्वर उपाध्याय, डॉ. अमलकुमार दत्ता, ब्रजमोहन गौड़ एवं शिवप्रसाद मिश्रा के नेतृत्व में आधार शिविर पहुँचकर बारह ट्रक राहत सामग्री से अपना कार्य आरंभ कर चुका था।

स्वयं टेली कम्यूनिकेशन विभाग भी प्रभावित होने व उसका असर दिल्ली के एक्सचेंज होने के कारण कहीं भी संपर्क न हो पा रहा था। 12 जनवरी वसंत पर्व के प्रातः गुरुसत्ता के संदेश देने के पश्चात् डॉ. प्रणव पण्ड्या एवं श्रीमती शैलबाला भी 12 जनवरी की शाम ही अहमदाबाद पहुँचकर सीधे आधार शिविर पहुँच गए। 3, 31 जनवरी एवं 1 फरवरी को सारे क्षेत्र का निरीक्षण कर आधार नीति बनाई गई। इस बीच राहत दलों का, सामग्रियों का आगमन आरंभ हो गया था। तुरंत भुज शक्तिपीठ, कलेक्टेऊट, अंजार शक्तिपीठ, गाँधीधाम शक्तिपीठ, भचाऊ बेस एवं मालिया सहित वरिष्ठ मंत्रियों एवं वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा कर कुछ निर्धारण किए गए।

पूरे भारत व विश्वभर से आ रही सहायता को देखते हुए शांतिकुंज द्वारा प्रायः पाँच करोड़ रुपये की राशि से तात्कालिक एवं स्थायी राहत कार्य चलाते रहने की बात कही गई। जितनी राशि इस फंड में आती जाएगी, उसे इसी कार्य में लगा दिया जाएगा। निर्णय लिए गए कि (1) कच्छ जिले में 2, जामनगर में दो, राजकोट में दो तथा सुरेंद्र नगर में एक इस प्रकार पच्चीस गांवों के पुनर्निर्माण में शाँतिकुँज पूरा सहयोग करेगा। अभी तक प्रायः चालीस अस्थायी स्कूल खोले जा चुके हैं, जिनमें दस हजार विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। इसी तरह अस्थायी आवास प्रायः पाँच हजार परिवारों को दिए जा चुके हैं। प्रत्येक चुने गए गाँव में एक प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर एवं एक प्राथमिक पाठशाला का निर्माण हम करेंगे। इनमें प्रायः चार करोड़ राशि लगने की संभावना है।

(2) इसके अतिरिक्त कच्छ क्षेत्र की मूल विरासत वहाँ की दस्तकारी-हैण्डीक्राफ्ट को जिंदा बनाए रखने के लिए प्रायः चार हजार तकनीकी आर्टीजन्स को प्राथमिक आश्रय स्थल, कच्चा सामान व उनके उत्पादों की खपत का तंत्र खड़ा करने का निर्णय भुजौड़ी गाँव की ‘सृजन’ शाखा के सहयोग से किया गया है। लगभग एक लाख व्यक्ति परिवार के सदस्यों सहित प्रभावित हुए हैं। सरकार अपने स्तर पर इनके लिए कर रही है। हम यह चाहेंगे कि कच्छ की मूल संस्कृति जिंदा रहे। आजीविका का आधार जिंदा रहेगा, तो हुनर के आधार पर ये सभी कारीगर दस्तकार पुनः अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे। कच्छ के रण के बन्नी क्षेत्र से लेकर भुज के उत्तर में बड़ी संख्या में ऐसे कारीगर हैं, जिनकी बनाई शालें, स्कार्फ, तकिया, खद्दर आदि विश्वभर में जाते हैं। इस आधार तंत्र को खड़ा करने का मूलभूत कार्य किया जाए, तो यह दस्तकारी जिंदा बनी रह सकती है। (3) इस क्षेत्र में गौधन 11 लाख से अधिक है। प्रायः सभी जीवित है। उन्हें जिंदा बचाए रखने, इनके लिए कैटल शैड्स की व्यवस्था करने, इनके लिए पानी व चारे की व्यवस्था बनाने, गोमूत्र-गोबर से औषधि बनाकर उनसे आधार खड़ा करने की आवश्यकता है। अभी अपने स्तर पर तीन ऐसी बड़ी गौशालाओं के निर्माण का तंत्र शांतिकुंज खड़ा करने पर विचार कर रहा है। गौधन जिंदा रहा, तो ग्रामीण कच्छ एवं सौराष्ट्र पुनः अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा। अकाल की परिस्थितियाँ अप्रैल से ही सामने दिखाई दे रही है।

(4) भुज, गाँधीधाम, भद्रेष्वर एवं भचाऊ के गायत्री शक्तिपीठ आंशिक या पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हैं। कई परिजन प्रभावित हुए हैं। शक्तिपीठों के नवनिर्माण का तंत्र खड़ा किया जा रहा है एवं परिजनों को प्राथमिक आधार खड़ा करने हेतु सहायता दी जा रही है। भूकंप ने किसी को भी नहीं छोड़ा, फिर भी आश्चर्यजनक रूप से गायत्री परिवार से जुड़े तीन परिवारों को छोड़कर शेष प्रायः एक लाख परिजन सुरक्षित बच गए हैं। भचाऊ आधार शिविर पर नियमित तर्पण-यज्ञ की एवं गाँव-गाँव में, घरों-घरों में शांतिपाठ की व्यवस्था की गई हैं। इससे लोगों का विश्वास लौटा है एवं दग्ध अंतःकरण को शांति मिली हैं।

(भ्) बड़े व्यापक स्तर पर साधना महापुरुषार्थ को गति देने एवं जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन समिति केंद्र शांतिकुंज के मार्गदर्शन में बनाने हेतु परिजनों से कहा गया है। फरवरी 12 के अंक में साधनप्रधान, साधनाप्रधान, श्रमप्रधान तीन उपायों की चर्चा की गई थी। साधनप्रधान में सभी से सप्ताह में न्यूनतम एक बार का भोजन न लेने, उसकी राशि बचाने का अनुग्रह किया गया था। यह भी आँकड़ा दिया गया था कि यदि यह दुगनी हो सके, तो इस निधि से सरकार के समानाँतर एक तंत्र खड़ा कर न जाने कितना बड़ा आधार बन सकता है। मात्र आत्मसंयम की, राशि को बचाने की एवं व्यवस्थित रूप में केंद्र के परामर्श से उसके नियोजन की आवश्यकता है। यदि मात्र ‘अखण्ड ज्योति’ व अन्य सहयोगी पत्रिका के पाठक भी पचास रुपया प्रति सदस्य एकत्र करें, तो पाँच करोड़ की राशि एक माह में एकत्र कर सकते हैं। परिवार के सदस्य जुड़ जाएं, तो यह मात्रा कितनी भी बढ़ सकती है। इस राशि को ‘श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट भूकंप राहत कोष’ के नाम भेजा जा सकता है।

साधना अभियान में सभी से अपनी साधना के अतिरिक्त अनिष्ट निवारण हेतु, विशिष्ट पुरुषार्थ हेतु कहा जा रहा है। वरुण गायत्री एवं पृथ्वी गायत्री के मंत्रों से यज्ञों में आहुतियाँ देने को कहा जा रहा है। सामान्य यज्ञ जो हो रहे हैं, उन्हीं में इन्हें जोड़ लेने से भावी विपत्तियाँ कम हो सकती हैं। श्रम प्रधान कार्यक्रमों में सभी से पुनर्निर्माण के कार्यों में भागीदारी, जलागम क्षेत्रों में श्रमदान, पानी की खेती स्थान-स्थान पर करने, कुएँ व तालाबों को गहरा करने हेतु सामूहिक पुरुषार्थ का आह्वान किया गया है। दुर्भिक्ष इससे कम में नहीं टलेगा एवं एक बार जलस्तर ऊँचा उठने लगे, हरीतिमा का कवच बनने लगे, तो अन्य विपत्तियाँ भी टलेंगी।

(6) पूरे भारत में एक आपदा प्रबंधन वाहिनी खड़ी करने की बात सोची गई हैं। इसमें एक लाख कार्यकर्ताओं को रिस्क्यू एवं रिलीफ कार्य तथा पुनर्निर्माण के कार्य में प्रशिक्षित किया जाएगा। ये चार स्थानों नागपुर या हैदराबाद, अहमदाबाद या जयपुर, देहरादून या दिल्ली तथा भुवनेश्वर या रायपुर क्षेत्र में बने केंद्रों से जुड़े रहेंगे। कभी भी कोई भी प्राकृतिक आपदा आने पर पूर्णतः प्रशिक्षित ये कार्यकर्ता तुरंत वहाँ पहुँचेंगे एवं कुछ ही घंटों में अपना कार्य प्रारंभ कर देंगे। इन्हें केंद्र के मार्गदर्शन में फर्स्ट एड से लेकर प्राथमिक राहत सामग्री के वितरण, एक चलते-फिरते अस्पताल के साथ पहुँचकर प्रारंभिक कार्य करने, बाढ़, भूकंप, दुर्भिक्ष एवं तूफान की स्थिति में निपटने हेतु तैयार किया जाएगा। निर्माण विशेषज्ञों, इंजीनियर्स की एक टीम सबके साथ जुड़ी रहेगी, जो तुरंत तात्कालिक कार्य करने लगेगी। आपदाओं की भविष्यवाणियाँ तो नहीं की जा सकतीं, पर उनसे मोर्चा लेने हेतु सतत उद्यत रहने को यदि विशेषज्ञ बल हमारे पास होगा, तो हम समाज की, पीड़ित मानवता की विशेष सेवा कर पाएँगे। इच्छुक परिजनों से इसके लिए शांतिकुंज से संपर्क करने को कहा जा रहा है।

संगठनों के संगतिकरण का एक महायज्ञ पिछले दिनों आपदा की स्थिति में देखने को मिला। यदि यह भावना वस्तुतः जीवित बनी रहे, तो किसी भी प्रतिकूलता से जूझने की, मानव मात्र के प्रति संवेदना के जागरण की, राष्ट्र-धर्म के प्रति समर्पित होने की मनःस्थिति स्थायी बनाई जा सकती है। कुछ दिनों में लोग भूल जायेंगे और फिर कहीं कोई बाढ़, कोई अकाल या समुद्री तूफान आकर हमें चेताएगा। हम यदि पूर्व से सचेत जाएं, तो न केवल हम स्वयं को प्रभावित होने से बचा पायेंगे, औरों के लिए कुछ करके पुण्य-परमार्थ भी कमा जायेंगे। यही आज का युगधर्म है एवं 26 जनवरी 12 की चुनौती भी है। राष्ट्रीय आपदा की कड़ी में हम गुरुसत्ता को परमात्मसत्ता को आश्वासन दें कि पीड़ा-पतन-पराभव से मानव जाति को बचाने हेतु हम यथासंभव पुरुषार्थ करेंगे, करते रहेंगे।


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