पूर्वाभास की कुछ सच्ची घटनाएँ

April 2001

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भविष्य के पूर्वानुमान का आधार क्या है? संभाव्य का ज्ञान व्यक्ति को, समूहों को पूर्व चेतावनी अथवा संदेशों के रूप में किस प्रकार मिल जाता है, इसका उल्लेख करने से पूर्व हमें कालचक्र और उसकी संरचना को समझना होगा। उसे प्रायः तीन भागों में बाँटा जा सकता है, भूत, वर्तमान एवं भविष्य। तीनों का संयुक्त स्वरूप ही समग्र और अखंड काल है। तीनों का ही अपना-अपना महत्व है।

सामान्यतया मनुष्य का, घटनाओं का वर्तमान ही सबके परिचय में आता है। भूतकाल की उपयोगिता इतनी भर है कि उन स्मृतियों, घटनाक्रमों और अनुभूतियों के आधार पर वर्तमान को बनाया, सुधारा, सँवारा जा सकता है। किंतु भविष्य में क्या होना है? कैसे संभव होना है? इसको तो मात्र कल्पना के आधार पर आज के क्रिया कलापों को देखते हुए ही जाना जा सकता है। चिंतन क्षेत्र का अधिकाँश हिस्सा भविष्य की कल्पनाओं में ही सदैव निरत रहता है। इसे यों कहना ठीक रहेगा कि भावी निर्धारणों का स्वरूप ही चिंतन क्षेत्र की सबसे बहुमूल्य संपदा है। प्रत्यक्षतः भविष्य दिखाई न पड़ने पर भी शक्ति उन काल्पनिक निर्धारणों में सर्वाधिक खरच होती है, पर सत्य है कि जो जैसा सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है। समूहगत चिंतन प्रवाह जिस दशा में बहने लगता है, तदनुरूप ही उसकी नियति बन जाती है। इसी को कहते हैं, भविष्य निर्धारण।

भविष्य निर्धारण में सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग है- पूर्वाभास, पूर्वकथन या भविष्यवाणी। घटनाक्रम घटने के पूर्व ही उसके स्वरूप की, घटने के समय की लगभग सही भविष्यवाणी कर देना, यही भविष्य कथन या प्रोफेसी है। समय को, कालखंड को बहुआयामी मानने वाले मनीषीगण कहते हैं कि भविष्य के बीजाँकुर वर्तमान में निहित होते हैं एवं इन्हें प्रस्फुटित कर उस भावी परिणति को जान पाना तथा वाँछित परिवर्तन कर पाना मनुष्य के लिए संभव है। एक माली बीज का पर्यवेक्षण कर बता सकता है कि वृक्ष का स्वरूप कैसा होगा? कैसे फल देगा? कब फल देगा? इंजीनियर्स कल्पना शक्ति के आधार पर भव्य रचनाओं की, अट्टालिकाओं की आकृति अंकित कर एक प्रकार से संभाव्य को मूर्त रूप दे देते हैं। ऋतु बदलती है, लोग परिवर्तन के पूर्वानुमान के सहारे अपनी तैयारी कर पाना भविष्य ज्ञान तो वह है, जो व्यक्ति को चिर संचित अनुभवों के आधार पर अपनी पूर्व तैयारी की दिशा देता है।

लीवरपूल विश्वविद्यालय के भौतिकीविद् डॉ. अरनोल्ड ओटवे का कथन है कि मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता रहता है कि विभिन्न घटनाक्रम ‘टाइम लेस मेंटल पैटर्न’ चिंतन क्षेत्र के निर्धारणों के रूप में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्माँड का हर घटक इन घटनाक्रमों से जुड़ा होता है, चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन।

स्वामी प्रतयग्यात्मानंद का मत है कि यूनीवर्स यह सृष्टि जिसे ‘मेक्रोकॉम्स’ नाम से जाना जाता है, अपने गर्भ में अगणित माइक्रोकॉम्स व्यष्टि घटकों को समाहित किए है। ये विभिन्न घटनाक्रमों एवं चलते फिरते जीवों मानवों के रूप में भी हैं तथा जड़ समझे जाने वाले पादप, वृक्ष वनस्पति एवं अन्य घटकों के रूप में भी। अणु में विभु, लघु में महान क्षुद्र में विराट के रूप में इसी संज्ञा को वर्णित किया जाता है। इन व्यष्टि घटकों में समष्टि से सम्बन्ध स्थापित करने, तादात्म्य बिठाने की अभूतपूर्व सामर्थ्य होती है। यही भविष्य विज्ञान को कुछ भी घटित होने वाला है, उसकी झलक झाँकी अपने मन मस्तिष्क में देखने पाने का मूलभूत आधार है।

मूर्द्धन्य दार्शनिक लिबनिज का कथन था कि हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह अपनी अंतर्प्रज्ञा करे जगाकर भविष्य काल को वर्तमान की तरह दर्पण में देते ले। जो भी दिव्य द्रष्टा मनीषी हुए हैं, वे इसी क्षमता का जगाकर भविष्य की संभावनाएँ व्यक्त कर सके एवं उनका आधार पर वर्तमान के ढाँचे को बदलने की, परिष्कृत की सम्मति दे सके। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के भौतिकीविद् प्रोफेसर एड्रियन डॉब्स ने भविष्य कथन सम्बन्धी अपना प्रतिपादन एक सेमीनार में सन 1965 में प्रस्तुत करते हुए कहा था कि भविष्य में घटने वाली हलचलें मानव की वर्तमान में एक प्रकार की तरंगें पैदा करती हैं, जिन्हें ‘साइट्रोनिकवेवफ्रंट’ कहा जा सकता है। इन तरंगों की स्फुरणाओं को मानवी मस्तिष्क के घटक न्यूरॉन्स पकड़ लेते हैं एवं इस प्रकार व्यक्ति भविष्य का अनुमान लगा पाने की स्थिति में आ जाता है। मस्तिष्क की अल्फा तरंगों तथा साइट्रोनिक वेव्स की फ्रीक्वेन्सी एक ही होने से यह एक बड़ी सरल प्रक्रिया है। मात्र मस्तिष्क को सचेतन स्तर पर जाग्रत बनाए रहने की आवश्यकता है, ताकि संभावित घटनाक्रमों का खाका समझा जा सकें।

अपने ग्रंथ ‘सुपरनेचर’ में लायल वाअसन ने ‘प्रिकागनीशन’ शब्द का अर्थ ‘ पूर्वानुमान’ किया है। अर्थात् जो कुछ घटित होने वाला हो, उसकी पहले से जानकारी हो जाना। वे एक पुस्तक ‘आइचिंग‘ अर्थात् ‘दि बुक ऑफ चेंजेज’ जो अब से प्रायः 3 वर्ष पूर्व लिखी गई थी, का हवाला देते हुए लिखते हैं कि भाव निर्धारण एवं वर्तमान में जो किया जा रहा है, उसमें क्या कुछ परिवर्तन कर भविष्य को स्वयं व अन्यों के लिए उज्ज्वल बनाया जा सकता है, यह पूर्णतः ज्यामितीय आधार पर गणना करके जाना जा सकता है। मानवी मस्तिष्क में वे सभी समाधान तथा संभावनाएँ एवं उनके विकल्प विद्यमान है। क्रिस्टल बॉल के द्वारा श्रीमती जीन डिक्सन इसी आधार पर अपनी अंतप्रा को जाग्रत का भविष्य के गर्भ में झाँका करती थी। वे लिखते हैं कि हर मनुष्य भविष्यवक्ता बन सकता है। किंतु कुछ व्यक्ति कभी-कभी शत-प्रतिशत सही भविष्यवाणी बिना किसी पुरुषार्थ के करने की जो योग्यता रखते हैं, वह या तो दैवी अंतः स्फुरणा के आधार पर अथवा व्यष्टि चेतना का समष्टि से सीधे संपर्क होने पर व्यक्ति विशेष, समय विशेष अथवा परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त हो जाने की क्षमता के कारण उनमें विकसित होती है। यह पूर्व जन्मों के आधार पर विशेषता भी हो सकती है। नोस्ट्राडेमस, काँट लुई हेमन (कीरो) तथा महर्षि अरविंद ऐसे ही दिव्यदृष्टि संपन्न व्यक्तियों में गिने जाते हैं।

विलियम काक्स नामक एक अमेरिकी गणितज्ञ एवं दार्शनिक ने एक रोचक सर्वेक्षण कर यह जानने का प्रयास किया है कि क्यों विभिन्न स्थानों पर बैठे व्यक्ति अचानक उन यात्राओं को, जो रेल या हवाई जहाज से की जाने वाली थीं, स्थगित कर देते हैं। पीछे पता चलता है कि वे किसी दैवी प्रेरणा अथवा पूर्वाभास के कारण एक ऐसी अभिशप्त यात्रा से बच गए, जो उन्हें सीधे मौत के मुँह में ले जाती। उन्होंने दुर्घटनाग्रस्त वाहनों का सर्वे करके पाया कि उस दिन उस विशेष यान अथवा रेल से यात्रा करने वालों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम रही एवं कइयों ने अपने रिजर्वेशन निरस्त कराए। दुर्घटनाग्रस्त यान या रेल डिब्बे में बैठने से पूर्व ही उन्हें पूर्व ज्ञान हो जाने से जान-बूझकर उनने यात्रा का स्थगित कर दिया। काक्स कहते हैं कि दुर्घटनाग्रस्त हुई टेऊन अथवा वायुयान में यात्रा करने वालों एवं इनके पूर्व तथा बाद में यात्रा करने वालों की संख्या में इतना बड़ा अंतर था कि इसे मात्र संयोग नहीं कहा जा सकता। आसन्न संकट की यह एक समष्टिगत चेतावनी मानी जा सकती है, जो संभव है, सबको मिली हो, पर जो काल के ग्रास हो गए, ने उसकी अवमानना करके उस ‘डूम्ड’ (अभिशप्त) वाहन में बैठे तथा जो बच गए, उनने उसे गंभीरता से लिया, उसकी उपेक्षा नहीं की और बच गए। इसे वे ‘कलेक्टिव अवेयरनेस’ कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है, आसन्न भवितव्यता के विषय में समूहगत जागरुकता एवं भावार्थ हुआ, दैवी प्रेरणा, अंतःस्फुरणा, पूर्वाभास। ‘जरनल आुँडडडडड अमेरिकन सोसायटी फॉर साइकिकल रिसर्च’ (1956) में प्रकाशित विलियम काक्स के विवरणानुसार 15 जून 1952 को शिकागो एवं इलिनायस के बीच यात्रा करने ली ‘जार्जियन’ नामक दुर्घटनाग्रस्त हुई टेऊन के यात्री उस विशेष दिन मात्र नौ थे, जबकि उस घटना के 14 दिन पूर्व तथा बाद के 14 दिनों में उनकी संख्या औसतन बासठ से अड़सठ के बीच थी। संख्या का वह विरोधाभास उनने 15 दिसंबर 1952 को दुर्घटनाग्रस्त हुई शिकागो मिलवाऊकी के बीच चलने वाली टेऊन में भी पाया। ऐसी लगभग 10 घटनाओं में से 9 से अधिक में यात्रा करने वालों को, जो जीवित बच गए, घटना का पूर्वाभास हो चुका था।

सन 1966 शुक्रवार 12 अक्टूबर के दिन रात्रि एक बजकर पंद्रह मिनट पर इंग्लैंड के वेल्श खदानों के क्षेत्र में एक भयंकर दुर्घटना हुई। इसमें अबरफान नामक एक गाँव पूरी तरह बर्बाद हो गया। कारण कि भूस्खलन था, जिसमें 5 लाख टन कोयला तथा मिट्टी ने खिसककर घरों को पूर्णरूपेण ढक दिया और वहाँ के एक सौ चालीस ग्रामवासियों को असमय काल का ग्रास बना दिया। कइयों ने इस समाचार को अखबार में पढ़ा। इस दुर्घटना के सम्बन्ध में पूरे इंग्लैंड में अगणित व्यक्तियों को पूर्वाभास कुछ क्षणों से कुछ दिन पूर्व तक सतत होता रहा था। एक व्यक्ति जिसने गाँव का नाम भी नहीं सुना था, स्वप्न में देखी गई स्पेलिंग के आधार पर स्थानीय पेपर को उसका नाम लिख भेजा और स्वप्न का पूरा वृत्तांत भी बताया कि ऐसा कुछ घटित होने वाला है। इसके बारे में दिवंग एरिल जोन्स नामक 9 वर्षीया एक लड़की ने अपनी माँ को एक दिन पूर्व ही बताया था कि उसके स्कूल पर काला पहाड़ गिर पड़ा है एवं स्कूल नष्ट हो गया है, यह स्वप्न उसने देखा है। माँ बच गई, किंतु वह लड़की अपना पूर्वाभास बताकर मौत के मुँह में चली गई। किसी ने लोगों की चीख-पुकार, किसी ने पहाड़ टूटने, किसी ने जमीन में बड़ा गड्ढा होने, ऐसे स्वप्न लगभग दो सप्ताह पूर्व से घटना के दिन तक प्रतिदिन देखे। केंट का एक व्यक्ति, जिसने इस घटनाक्रम को यथावत् देखा, दो दिन पूर्व अपने सहकर्मियों को यह कहता पाया कि शुक्रवार को कुछ भयंकर वेल्श में घटित होने जा रहा है। बाद में किए सर्वेक्षण में भी काफी लोगों ने अपने पूर्वाभास की सूचना दी। यह समूहगत पूर्वाभास की साक्षी देने वाली एक महत्वपूर्ण घटना है।

डेविड बूथ नामक व्यक्ति ओहियो, अमेरिका का रहने वाला था। वह बिजली का सामान बनाने वाली एक कम्पनी में मैनेजर था। मई 1979 में दस दिन तक लगातार उसे यह पूर्वाभास होता रहा कि अमेरिकन एयरलाइंस का एक विमान आकाश में फट पड़ा तथा जलते यान के मलबे में, लपटों में कई शव पड़े है। वे कहते हैं कि यह स्वप्न नहीं था, बैठे-बैठे उन्हें कई बार रोमाँचित कर देने वाली यह लोमहर्षक अनुभूति हुई जैसे वेटी देख रहे हों। 22 मई 1979 को उन्होंने फेडरल एविएशन अथॉरिटी एवं सिनसिनाटी एयरपोर्ट के कार्यालयों में फोन पर यह सूचना भी दी एवं एक मनः चिकित्सक से संपर्क कर उसे भी सारा प्रसंग सुनाया। 26 मई को 4 दिन बाद शिकागो के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अमेरिकन एयरलाइंस का एक डी. सी. 1 जेट विमान जब दुर्घटनाग्रस्त हुआ, तो यह अमेरिका के इतिहास में भयंकरतम घटनाओं में से एक था। इसमें सभी 274 यात्री मारे गए। दुर्घटना के बाद ही सभी ने डेविड बूथ के पूर्वाभास को याद किया। यह पूर्वाभास इतना सही था कि फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन जो इस एयरलाइंस को चलाता था, हैरान हो गया। क्योंकि डेविड बूथ ने उसे भी इस सम्बन्ध में सूचित किया था और आग्रह किया था कि संभावित दुर्घटना को हर हाल में रोका जाना चाहिए। ‘दि अनएक्सप्लेंड मिस्ट्रीज ऑफ माइंड एंड स्पेस’ नामक ग्रंथ में इसका विस्तारपूर्वक उल्लेख है।

अचेतन के ऐसे पूर्वाभास इनमें से अनेकों को होते रहते हैं। कुछ उन्हें गंभीरतापूर्वक लेते और याद रखते हैं, तो कुछ मन की स्वाभाविक उधेड़बुन समझकर उसकी उपेक्षा कर देते हैं। यदि समष्टि चेतना की व्यापकता को समझा जा सके और वह स्मरण रखा जा सके। कि व्यष्टि चेतना कोई स्वतंत्र इकाई नहीं, वरन् उसी का एक घटक है तो इस प्रकार के सामूहिक पूर्वाभास की घटनाओं को अधिक सरलतापूर्वक हृदयंगम किया जा सकेगा। इससे जहाँ अशुभ-अनिष्टों से बचा जा सकना आसान होगा, वही सुखद संभावनाओं से लाभ उठा पाना भी कठिन न रह जाएगा।


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