तत्वबोध (kavita)

April 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

सिंधु है परमात्मसत्ता, आत्मसत्ता बिंदु है। किंतु तात्विक दृष्टि से तो बिंदु भी तो सिंधु है॥

‘जीव’ उसका अंश है, जो ‘चेतना’ आनंदमय। चेतनावत् आत्मा भी अमर है व है अभय। आत्म है रश्मियां, परमात्मसत्ता इंदु है। सिंधु है परमात्मसत्ता, आत्मसत्ता बिंदु है॥

‘महाप्राण’ समा रहा है विश्व में ब्रह्माँड में। समाया है वही तो, हर ‘प्राण’ के देहांग में। तत्वतः अद्वैत ही है, द्वैत भ्रमजन्य-द्वंद्व है। और तात्विक दृष्टि से तो, बिंदु भी तो सिंधु है॥

प्रकृतिजन्य बादलों ने, सूर्य को ज्यों ढक लिया। विकृतिजन्य ‘माया’ के द्वारा ‘जीव’ आच्छादित हुआ। खिलाता गुरुज्ञान-रवि ही, अमल-आत्म-अरविंद है। सिंधु है परमात्मसत्ता, आत्मसत्ता बिंदु है॥

आत्मा का बोध कर, निष्काम-कर्म करते चलो। द्वैतजन्य विकार, दुख, भव सिंधु से तरते चलो। आत्मा, परमात्मा का अंश आनंद कंद है। और तात्विक दृष्टि से तो, बिंदु भी तो सिंधु है॥

वास है सब प्राणियों में एक ही परमात्म का। इसलिए ही ‘लोकसेवा’ श्रेष्ठ कर्म है आत्म का। विश्व रूप परमात्मा के प्रेम का यह छंद है। सिंधु है परमात्मसत्ता, आत्मसत्ता बिंदु है॥

-मंगलविजय ‘विजयवर्गीय’

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118