अब तक स्थापित विधा है परामनोविज्ञान

April 2001

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

इंद्रियों की सामर्थ्य सीमित होती है। इनकी पहुँच स्थूल जगत् के कुछ क्षेत्रों तक ही है। इससे परे भी कई अज्ञात लोक है। यह ज्ञान अतींद्रिय सामर्थ्य द्वारा जाना जाता है। इसी के माध्यम से देवों का दर्शन, स्वप्न द्वारा पूर्वाभ्यास आदि अलौकिक अनुभूति प्राप्त होती हैं। साधक-तपस्वियों का जीवन इसी तरह अलौकिक घटनाओं से भरा होता है। सामान्यजन भी अपनी मनःस्थिति को सात्विक रखकर इस तरह की अनुभूतियों से साक्षात्कार कर सकते हैं। आजकल इसे मात्र कल्पना नहीं माना जाता, वरन् यह विषय आधुनिक परामनोविज्ञान के अंतर्गत आता है, जिसमें कई प्रकार के अनुसंधान-अन्वेषण हो रहे है।

इस क्षेत्र में कई प्रमाणित शोध ग्रंथ भी उपलब्ध है, जिसमें अगणित सच्ची घटनाओं का वर्णन किया है। इस परिप्रेक्ष्य में सीजर डी वेस्मी की पुस्तक ‘ल हिस्टारि एंड स्पिरिट्स इन एनशिएंट वर्ल्ड’ काफी महत्वपूर्ण है। इन पुस्तकों से प्राप्त उद्धरणों से पता चलता है कि इंद्रियों से परे भी एक ज्ञान है, जिसे अतींद्रिय बोध आदि कहा जा सकता है।

यूनानी दार्शनिक प्लूटार्क ने अपनी कृति ‘द जोनियो सोक्रेटिस’ में सुकरात के जीवन से सम्बन्धित कई घटनाओं का जिक्र किया है। इस पुस्तक से पता चलता है कि सुकरात के अंदर एक डेमन रहता था। यह डेमन उन्हें समय-समय पर आगामी घटनाओं की पूर्व सूचनाएँ देता रहता था। प्लेटो की ‘थीसीज’ में सुकरात के डेमन का रोचक प्रसंग है। एक शाम सुकरात तिमार्कस नामक एक व्यक्ति व अपने कुछ अन्य साथियों के साथ बैठे खाना खा रहे थे। कुछ समय बाद तिमार्कस कही जाने को अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ। “अपने स्थान से तनिक भी नहीं उठना,” सुकरात तुरंत बोल पड़े। सुकरात ने इसे और स्पष्ट करते हुए बस इतना कहा, मुझे अभी-अभी खतरे की सूचना मिली है। तिमार्कस बैठ गया। थोड़ी-थोड़ी देर बाद जब-जब भी तिमार्कस उठने लगता, सुकरात उसे पुनः बिठा दिया करते। आखिरकार तिमार्कस से नहीं रहा गया और वह चुपचाप उठकर चल दिया। वहाँ से चलने के बाद वह षड्यंत्रकारियों के दल से मुठभेड़ के कारण मारा गया। पूर्वाभास स्वप्न में माध्यम से भी होते हैं। कइयों ने इसे माना और लाभान्वित हुए और जो इसे मात्र कल्पना लोक की उड़ान समझे, खतरे में पड़े। एक ऐतिहासिक प्रसंग में स्वप्न के माध्यम से पूर्वाभास का वर्णन है। जूलियस सीजर की पत्नी को एक रात स्वप्न आया कि उसके पति की प्रतिमा में खून टपक रहा है। दूसरे दिन उसने सीजर को सीनेट में जाने से बहुत रोका। सीजर ने अपनी पत्नी को इतना विचलित कभी नहीं देखा था। वह स्वप्न के प्रभाव के कारण अत्यंत क्षुब्ध थी और एक बार तो सीजर जाने से रुक भी गया था। किंतु आखिर वह चला भी गया अपने अदृष्ट की ओर। वहाँ से भारी हानि उठानी पड़ी।

विश्व के महान इतिहासकार हिरोडोट्स ले लाडा के राजा कोशस का उल्लेख किया है, जिसमें अतींद्रिय प्रत्यक्षण का वर्णन है। 56-546 ई. पू.र्व अपने शासनकाल के दौरान जब राजा अपने शत्रुओं की बढ़ती हुई ताकत से आतंकित होने लगा, तो इसके उचित समाधान हेतु किसी भविष्यवक्ता की इच्छा की। इसके लिए सात भविष्यवक्ता जाँच के लिए चुने गए। सातों में से डेल्फी की भविष्यवाणी ही सही निकली। जिसका विवरण सुनकर राजा अत्यंत प्रभावित हुआ। डेल्फी के पास आए राजा के संदेशवाहक को उसने कहा, “तुम्हारा राजा पीतल के बड़े बरतन में जिस पर पीतल का ही ढक्कन था, एक कछुए व भेड़ को साथ-साथ भून रहा था।” यह एक आश्चर्यजनक सत्य था। इसके पश्चात डेल्फी ने अपने प्रति विश्वस्त राजा को अपनी अतींद्रिय सामर्थ्य के माध्यम से बहुत लाभ पहुँचाया।

भविष्यज्ञाता एलेशा के बारे में कहा गया है कि वह सीरिया के सैनिक भेद जानने हेतु इसी अतींद्रिय ज्ञान का प्रयोग करते थे। इसी ज्ञान को जानने के कारण महाभारत में संजय धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र में लड़े जा रहे युद्ध का समाचार इस तरह सुना रहे थे मानो वह प्रत्यक्ष देख रहे हों। स्वीडन बोर्ग ने भी अपने मित्रों को सैकड़ों मील दूरस्थ अपने गाँव में हो रहे भीषण अग्निकाँड का विवरण इसी प्रकार दिया, मानो सभी कुछ उसकी आँखों के सामने हो रहा है।

दार्शनिक काँट अतींद्रिय प्रत्यक्षण को सत्य मानते थे। इस बारे में उन्होंने अपनी पुस्तक ‘ड्रीम ऑफ ए बिलीवर’ में सुविख्यात गणितज्ञ विद्वान वैज्ञानिक स्वीडन बोर्ग के एक अनुभव का जिक्र किया है। उनके अनुसार, एक शनिवार की शाम को करीब चार बजे स्वीडन बोर्ग इंग्लैंड से गोहनर्ब पहुँचे ही थे कि एकदम बेचैन हो गए। अपने सहपाठियों को छोड़कर वे बाहर जाकर घूमने लगे। लौटने पर उन्होंने बतलाया कि अभी अभी स्टाक होम में उनके मकान के निकट भीषण अग्निकाँड हुआ और आग की लपटें बड़ी तीव्र गति से बढ़ती जा रही हैं। स्वीडन बोर्ग उस समय अत्यंत उद्विग्न व परेशान रहे। करीब आठ बजे वे कुछ शाँत हुए और बोले, ईश्वर का धन्यवाद है कि आग हमारे मकान से बीस मकान पूर्व ही बुझा दी गई। काँट इस घटना से अत्यंत प्रभावित हुए।

बोकाकियो द्वारा रचित दाँते की जीवनी में भी ऐसा ही एक रोचक प्रसंग मिलता है। इसमें दाँते की मृतात्मा ने अपनी पुस्तक के रुके हुए भाग को पूरा करने में सहायता प्रदान की थी। ‘द डिवाइन कॉमेडी’ के महान रचनाकार की मृत्यु के बाद यह पाया गया कि उसके अंतिम भाग पेराडिसों के कई अंतिम छंद नहीं मिल रहे हैं। बहुत खोजने पर भी जब वह छंद नहीं मिले, तो उनके सुपुत्रों ने स्वयं लिखकर कृति को पूरा करने का निश्चय किया। इस दौरान दाँते के एक पुत्र जाकोया ने रात में दाँते को स्वप्न में देखा चिंतित जाकोया ने तुरंत पिता से छंदों के बारे में पूछा। दाँते उसे पुराने मकान के एक कमरे में ले गए और उसकी दीवार को स्पर्श करते हुए बोले, जिसके लिए तुम इतने परेशान हो, वह इसमें विद्यमान है। जाकोया तुरंत उठा और अन्य व्यक्तियों को साथ लेकर उस मकान में गया, जहाँ मृत्यु के पूर्व उसके पिता रहते थे। दाँते द्वारा इंगित दीवार पर एक चित्र टँगा हुआ था। जब उसे हटाया गया तो पीछे तेरह छंद मिले, जिनसे कि वह अधूरी पड़ी कृति पूर्ण हो सकी। इस पाँडुलिपि की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि यदि वे कुछ दिन वही पड़े रह गए होते, तो पूर्णतः सड़-गल जाते।

स्वप्न द्वारा प्राप्त इस तरह की जानकारी सचमुच में अद्भुत और आलौकिक है। ऐसी और भी कई घटनाएँ हैं।1956 की एक घटना में एम राँवेल नामक एक व्यक्ति ने ‘एलेन कोर्डेक’ के नाम से अदृश्य प्रेतात्माओं द्वारा लिखाई गई एक पुस्तक ‘द बुक ऑफ द स्पिरिट्स’ प्रकाशित की। इस पुस्तक का विश्व की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। इसी तरह शिवरामिकंकर योगत्रयानंद के बारे में कहावत है कि पाणिनि की आत्मा ने स्वयं आकर उन्हें व्याकरण के सूत्र सिखाए थे।

अतींद्रिय सामर्थ्य से पूर्वी पूर्णतः परिचित है, बल्कि यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह ज्ञान यही की देन है। पाश्चात्य जगत् भी इससे अछूता नहीं है। काँट, गेटे, शैलिंग, हीगल, शोपेनहावर, सदृश दार्शनिकों ने भी इस सत्य को हृदयंगम किया है। 1816 में डॉ. वलूग व डॉ. वाँलफाँट ने अपनी पुस्तक ‘डेर मेग्नेटिज्मस’ में इसके अनोखे विवरण प्रस्तुत किए हैं। 1829 में डॉ. करनर ने एक लेख ‘टू सीअर ऑफ प्रोवोर्स्ट’ में अतींद्रिय क्षमतासंपन्न फ्रेडरिका हाफे नामक महिला का उल्लेख किया है। फ्रेडरिका बचपन से ही होने वाली घटनाओं की पूर्व सूचना दे देती थी। ईसा के जीवनी लेखन डेविड स्ट्राँस ने भी इस सत्यता की पुष्टि की है।

उपर्युक्त विवरणों एवं वर्णनों को मात्र कौतुक -कल्पना नहीं कहा जा सकता है। यह प्रक्रिया सच्ची है। इसका संपूर्ण आधार मन है। मन यदि सात्विकता से ओत-प्रोत है। तो स्वप्न में भावी जीवन एवं घटनाओं की पूर्व सूचना मिल सकती है। सच्चे मन से साधना करने पर भी इन अनुभूतियों से एकाकार हुआ जा सकता है। यह पूर्वाभास जाग्रत अवस्था में भी प्राप्त हो सकता है। यदि साधना, पुण्य एवं संकल्प प्रगाढ़ और प्रबल हो तो सचेतन व जाग्रत अवस्था में भी दिव्य दर्शन संभव है। मनुष्य जिस मनःस्थिति में रहता है, उसी के अनुरूप से आभास मिलते हैं। शरीर एवं मन को सात्विकता का आगार बनाकर साधना द्वारा अनेकों अलौकिक अनुभूतियों से साक्षात्कार किया जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118