कर्मफल विधान जानकर हुआ कायाकल्प

April 2001

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दिल्ली में सेठ हरभजन वणिकों में अग्रगण्य थे। उन्होंने दिल्ली में अपना एक नया आलीशान भवन बनवाना शुरू किया। इस भवन की चर्चा चारों ओर फैली। सेठ हरभजन शाह के प्रतिद्वंद्वी व्यापारी श्रीचंद को जब इस निर्माण का समाचार मिला, तो उन्होंने कटाक्ष किया,”पितरों की नगरी तो उजड़ रही है और सेठजी यष के लिए यहाँ संपत्ति पानी की तरह बहा रहे हैं।”

सेठ हरभजन को इस कथन का पता चला। उन्होंने हवेली का निर्माण रुकवा दिया और सारी धन-संपदा लेकर अग्रोहा को चल दिए। सेठजी ने अग्रोहा पहुँचकर चारों ओर खबर फैला दी, अग्रोहा में आकर बसने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सेठ हरभजन सभी आवश्यक साधन एवं सुविधाएँ प्रदान करेंगे। लखी नामक बनजारा भी अग्रोहा पहुँचा। उसने व्यापार करने के लिए सेठ हरभजन शाह से रुपया माँगा। सेठ ने पूछा,”किस जन्म में इस कर्ज को चुकाओगे?”

लखी सेठजी के इस प्रश्न पर चौंका और बोला,”मैं आपका आशय नहीं समझा, सेठजी।” “भाई इस जन्म में चुकाने का वायदा करते हो तो हिसाब करके रोकड़िया से रुपये ले लो और अगले जन्म में चुकाना हो तो ऊपर वाले खंड में चले जाओ और जितना चाहे ले लो। हम उस रुपये की कोई लिखा-पढ़ी नहीं करते।”

लखी ने सोचा, अगले जन्म में कौन किससे मिलेगा? नई मंडी हैं, व्यापार में घाटा हुआ, तो सेठजी को रुपये कैसे लौटाऊँगा? उसने कहा, मुझे तो अगले जन्म में चुकाना है।

सेठजी ने उसे हवेली के ऊपर वाले खंड पर भेज दिया। वहाँ से उसने एक लाख रुपया लिया और अपने डेरे पर आया। वह मन-ही-मन प्रफुल्लित हो रहा था कि सेठ भी कैसा मूर्ख एवं नासमझ है। अगले जन्म में उसे कौन चुकाएगा? वह तो यूँ ही अपना रुपया बर्बाद कर रहा है।

अपने डेरे के बाहर बैठा वह यही सब कुछ सोच रहा था कि सामने से एक संत निकले। महात्माजी को देखते ही वह उठ खड़ा हुआ और बोला, महाराज! आप आज मेरे यहाँ विश्राम कर मुझे सेवा का मौका प्रदान करें। संत लखी के इस निश्छल आग्रह को ठुकरा न सके, स्नेहपूर्वक बोले, क्या बात है लखी! आज कोई विशेष बात है क्या?

लखी ने अपना सारा वृत्तांत कह सुनाया और बोला, महाराज अब आप ही बताइए कि क्या अगले जन्म में मुझे और सेठ हरभजन शाह को मानव चोला ही मिलेगा? क्या यह भी निश्चित है कि हम दोनों एक ही जगह पैदा होंगे और हम दोनों की स्मृतियाँ भी अक्षुण्ण रहेंगी?

महात्मा जी ने उसे पुनर्जन्म का विधान बताया और कहा, कर्म अविनाशी है, ये कभी नष्ट नहीं होते। जन्म-जन्मान्तर तक अच्छी-बुरी परिस्थितियों के रूप में इन्हें भुगतना पड़ता है। अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए उन्होंने कुछ पौराणिक प्रसंग बताते हुए कहा कि तुम्हें बैल बनकर यह कर्जा चुकाना पड़ेगा। महात्मा जी की बात सुनकर वह घबराया और रुपया लेकर वापस हरभजन शाह की हवेली पर पहुँचा।

वहाँ जाकर उसने सारा धन सेठ के समक्ष रखा और बोला,”सेठजी अगले जन्म में यहां रुपया चुकाने की क्षमता मेरे पास नहीं है। इसे आप वापस ले लें।”

सेठजी ने रुपया लेने से इन्कार कर दिया। लखी ने बहुत अनुनय-विनय की, लेकिन वे नहीं मानें। लखी वापस महात्माजी के पास आया और उन्हें सारी बात बताई।

महात्माजी ने उसे सुझाव दिया कि अग्रोहा में कोई सरोवर नहीं है। अतः तुम इन रुपयों से एक सरोवर का निर्माण शुरू कर दिया। सरोवर देखकर सारे नगरवासी प्रशंसा करने लगे। लखी ने वहाँ दो चौकीदार नियुक्त कर दिए और आदेश दिया कि इस सरोवर में किसी को जाने न दें।

नगरवासी लखी के पास गए। लखी ने कहा, सरोवर तो सेठ हरभजन शाह का है, वे ही उसको खुलवा सकते हैं। सेठजी तक बात पहुँची तो उन्होंने कहा, एक निताँत असत्य बात है। सरोवर मेरा नहीं है।

सेठजी तत्काल लखी के पास पहुँचे। लखी से कहा, लखी! यह सरोवर तुम्हारा है। तुम्हें इसे जनता के उपयोग के लिए खोल देना चाहिए। लखी बोला, सेठजी अपराध के लिए क्षमा चाहूँगा। आपसे अगले जनम में चुकाने के लिए एक लाख रुपया उधार लिया था। आपको रुपया वापस लौटाना चाहा, तो आपने लेने में असमर्थता दिखाई। उसी रकम से मैंने यह सरोवर बनवाया है। आपकी संपदा हैं, आप ही इसके स्वामी है। सेठजी बात समझ गए। उन्होंने उसी क्षण शेष रुपयों की भरपाई कर दी।

सेठजी ने उस सरोवर का नाम ‘लखी सरोवर’ रखा और कहा, जब तक यह सरोवर रहेगा, लखी के कायाकल्प की कहानी लोगों को प्रेरणा देती रहेगी कि कर्मफल विधान सृष्टि का एक अनिवार्य सच है।


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