विज्ञान के युग में करें अब इलेक्ट्रॉनिक ध्यान’

November 1998

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मानवी काया से सतत् विविध प्रकार के विद्युतीय संकेत निकलकर बाह्य वातावरण में विसर्जित होते रहते है, जिन्हें विभिन्न उपकरणों के माध्यम से जाँचा-मापा और उनसे उत्पन्न संकेतों को सुना तथा देखा जा सकता है। तदुपरान्त यह ज्ञात किया जा सकता है। कि शरीर स्वस्थ है अथवा अस्वस्थ। हृदय से निस्सृत विद्युतीय तरंगें सबसे अधिक सशक्त होती हैं। इनके कमजोर पड़ने अथवा अधिक बढ़ जाने पर जीवन संकट का सामना करना पड़ता है और धड़कन बंद होते ही व्यक्ति को मृतक घोषित कर दिया जाता है।

मस्तिष्क से भी लगातार विद्युत तरंगें मानसिक स्थिति के अनुरूप विविध रूपों में निकलती रहती है, परंतु हृदय से निकलने वाली तरंगें की तुलना में ये अपेक्षाकृत कमजोर और जटिल होती है। इसके अतिरिक्त त्वचा एवं माँसपेशियों से निस्सृत संकेतों की आवृत्ति उच्च होती हैं। ये सभी संकेत यह बताते हैं कि मनुष्य की वास्तविक मनःस्थिति एवं उससे संचालित शारीरिक स्थिति कैसी है। मानसिक स्थिति के अनुसार ही व्यक्तित्व का निर्धारण होता है।

इस संदर्भ में प्रख्यात अमेरिकी मनोवैज्ञानिक जे. कमिया तथा डॉ. बारबरा ब्राउन ने गहन अनुसंधान करने के उपरांत बताया कि यदि शरीर से निकलने वाले विभिन्न विद्युतीय संकेतों में किसी तरह आवश्यक परिवर्तन या परिवर्धन किया जा सके। तो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को अक्षुण्ण रखा जा सकता है, वरन् मानसिक चेतना को भी परिष्कृत किया एवं उच्चस्तरीय बनाया जा सकता है। इनका मत है कि जब तक हम अपने अंतर बाह्य प्रक्रियाओं तथा उन पर पड़ने वाले विचारों एवं संकल्पों के प्रभाव को अच्छी तरह समझ नहीं लेते, तब तक चेतना के क्षेत्र में वाँछित परिवर्तन कर सकने में समर्थ नहीं हो सकते, क्रिया–कलापों के प्रति जागरूकता न होने पर उनको नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसके लिए बायोफीडबैक पद्धति को बहुत उपयोगी पाया गया है।

योगविद्या के निष्णात जानते हैं कि योगाभ्यास की विविध प्रक्रियाएँ शारीरिक एवं मानसिक क्रिया–कलापों के नियंत्रण में प्रभावकारी भूमिका निभाती हैं। उनके साथ विचारणाओं -भावनाओं के परिष्कार का उपक्रम भी जुड़ा रहता है। इसके बिना समाधिस्तर का सुख एवं चेतना के उच्च आयामों की उपलब्धि नहीं होती, परन्तु यह एक समय एवं श्रमसाध्य प्रक्रिया है। आधुनिक विज्ञानवेत्ताओं ने योगाभ्यास कर प्रथम आवश्यकतापूर्ति के निमित्त बायोफीडबैक पद्धति को सर्वोत्तम पाया है। इसके द्वारा उपलब्ध परिणामों को मशीन पर चर्मचक्षुओं द्वारा सीधे देखा जा सकता है, जबकि पूर्ववर्ती प्रक्रिया अनुभूतिमूलक है। सामने चलते हुए संकेतों अथवा कौंधते हुए विभिन्न लाइटबार को देखकर साधक सकता है और तद्नुरूप उसमें हेर-फेर कर सकता है। इतना नहीं, इनके द्वारा समस्त शारीरिक हलचलों, हृदय, माँसपेशियों, त्वचा, रक्त के अतिरिक्त प्रत्येक कोशिका की गतिविधि को जाना और स्वसंकेत द्वारा उन पर नियंत्रण साधा जा सकता हैं।

सुप्रसिद्ध मनोवेत्ता एल्मरग्रीन का कहना है कि काया पर मन का आधिपत्य है, अतः उसे प्रशिक्षित करके समस्त कायिक अंग-अवयवों कोशिकाओं को वशवर्ती बनाया जा सकता हैं। क्योंकि यह सभी मन से संचालित है, अतएव माँसपेशियों में उत्पन्न तनाव एवं सिरदर्द जैसी सामान्य बीमारियों को बायोफीडबैक द्वारा सरलतापूर्वक दूर किया जा सकता है। इससे संबद्ध व्यक्ति इलेक्ट्रोमायोग्राफ पर अपनी पेशियों द्वारा छोड़े गये विद्युत चुम्बकीय विकिरण को देखता और इच्छाशक्ति का प्रयोग कर उन्हें इच्छित तरीके से सिकुड़ने फैलाने का निर्देश देता हैं। अभ्यास द्वारा इससे उसी तरह के सुखद परिणाम निकलते है, जिस तरह से प्रशिक्षित मस्तिष्क से शान्तिदायक अल्प तरंगों के निर्माण से मिलते है। इस उपचार में किसी बाह्य चिकित्सक की आवश्यकता नहीं पड़ती, वरन् विशेषज्ञ द्वारा इलेक्ट्रोड आदि लगाने की प्रक्रिया ज्ञात हो जाने पर अकेले भी किया जा सकता है। यह पूर्णतया ’ऑटोसजेशन’ प्रक्रिया पर आधारित है। रॉकफेलर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञानी डॉ. एडमण्ड डेवन ने इस विधि द्वारा विकलाँग व्यक्तियों की संकल्पशक्ति को जगाकर बेकार बने अंगों को सक्रिय बनाने में आशातीत सफलता पायी है उनके अनुसार इससे माँसपेशियों की निष्क्रियता एवं तनाव को भी सफलता पूर्वक दूर किया जा सकता है।

हृदय की गति विधियों पर सामान्य मनुष्यों का कोई नियंत्रण नहीं होता, किंतु योगाभ्यासियों के लिए नाड़ी की गति, हृदय की धड़कन आदि को इच्छानुसार घटा-बढ़ा लेना, लयबद्धता को सुस्थिर बना देना एक सामान्य क्रिया होती हैं। अभ्यास द्वारा अनैच्छिक पेशियों को भी नियंत्रित कर लेने में वे अनियमितता ’सायनस टैकिकार्डिया’ से लेकर हृदय गति रुकने (हार्टब्लॉक) तक का निमित्त कारण बनती हैं। इसे असामयिक मरण से छुटकारा पाया जा सकता है, वरन् दीर्घजीवन की उपलब्धि भी संभव है। अनुसंधानकर्ता डॉ. एल्मरग्रीन ने हृदय रोगियों पर किए गये बायोफीडबैक अध्ययनों में पाया है कि जिन व्यक्तियों की हृदयगति ११. प्रति मिनट थी, तीन माह के अभ्यास से वे ७. प्रति मिनट तक गति को कम करने में सफल हुए। उनके अनुसार इस तरह के बाह्य उद्दीपन, जो यंत्र पर लाल-हरे आदि प्रकाश के रूप में दीखते रहते है, व्यक्ति को अपने संकल्पबल को प्रखर बनने एवं अधिकाधिक कुशलता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करते है। इच्छाशक्ति के विकास के साथ ही अंतः प्रक्रियाओं पर नियंत्रण सधता जाता है।

'हाइपरटेन्शन' अर्थात् उच्च रक्तचाप इस शताब्दी की सबसे बड़ी बीमारी है। विश्व में ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है, जिन्हें उच्च रक्तदाब की शिकायत है। अकेले भारत में प्रायः पाँच करोड़ से अधिक व्यक्ति इस रोग से पीड़ित है। इस श्रेणी में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में नये रोगी जुड़ते जाते है। चिकित्सक एवं दवाइयाँ भी इसमें कोई स्थायी राहत नहीं दिला पाते। वस्तुतः यह एक मनोशारीरिक रोग है, जो चिंतनक्षेत्र की विषमता एवं तनाव के कारण पनपता है। इसका उपचार भी तद्नुरूप ही ढूँढ़ा जाना चाहिए। विशेषज्ञों ने अल्फा ई. ई. बायोफीडबैक को इसके लिए बहुत उपयुक्त पाया है। एक ओर इस उपक्रम में जहाँ मन को विधेयात्मक विचारणाओं से परिपूरित करने का अवसर मिलता है। वहीं भावना क्षेत्र का परिशोधन कर संकल्पबल को बढ़ाया जाता है। हृदय की गतिविधियों एवं ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने में यह युक्ति बहुत कारगर सिद्ध हुई है।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि वर्तमान समय की अधिकांश बीमारियों का जनक दैनिक जीवन में बढ़ता जा रहा तनाव है। इससे शरीर की ऊपरी त्वचा से लेकर रक्तवाही शिराओं की आंतरिक संवेदनशील माँसपेशियाँ तक प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। शवासन, शिथिलासन जैसी योगाभ्यास परक प्रक्रियाओं द्वारा इसे दूर कर लिए जाने का विधान योगशास्त्र में है, फिर भी अब नये आविष्कारों के साथ ही मस्तिष्कीय शक्ति एवं यांत्रिक सुविधाओं के सम्मिलित प्रयोग से कम समय में सरलतापूर्वक इसे सम्पन्न किया जा सकता है। इसी प्रकार थर्मलसेन्सर द्वारा शारीरिक तापमान के उतार-चढ़ावों को निरखा-परखा जा सकता है और स्वसंकेत द्वारा उसे नियमित स्तर पर लाया जा सकता है।

इसी प्रकार जी.एस.आर. बायोफीडबैक द्वारा त्वचा की विद्युतीय प्रतिरोधी क्षमता को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। बढ़ी हुई त्वचा प्रतिरोधी क्षमता तनाव शिथिल्य एवं सक्रियता का चिह्न है। मन की उत्तेजना, व्यग्रता सबसे पहले त्वचा प्रतिरोध में ही परिलक्षित होती हैं। शरीर की प्रतिरोधी सामर्थ्य को शक्तिशाली बनाने हेतु स्वसंवेदन, ध्यान प्रक्रिया का प्रयोग किया जा सकता है। एवं विधेयात्मक प्रतिक्रिया का संकेत यह उपकरण देता रह सकता है। इसे इक्कीसवीं सदी के इलेक्ट्रॉनिक मेडीटेशन की उपमा दी गयी है।

इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे उपकरण भी है, जिनसे मनोकायिक विद्युतीय संकेतों को पकड़ पाना तो संभव नहीं पर उस अवस्था का अनुमान लगाना सरल है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि शरीर मन कितने सक्रिय निष्क्रिय है। मन की उत्साहहीनता शरीर पर बोझ बनकर सवार रहती है। जो कार्य के परिणाम को बड़े स्तर पर प्रभावित करती है। मनुष्य इन दिनों अपने ही कारणों को लेकर उधेड़बुन में इस कदर फंसा हुआ है कि इससे उसकी मानसिक सजगता और तत्परता कुंद पड़ गई हैं। नतीजा यह होता है कि व्यक्ति को कई बार भारी हानि उठानी पड़ती है, लाभ की संभावना कम हो जाती, असफलता के आसार बढ़ जाते है एवं सफल लोगों का स्तर घट जाता है, अनेक मौकों पर जीवनसंकट भी उपस्थिति हो जाता है।

बर्लिन यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञानी जे.ए.जेड का अभिमत है कि वर्तमान में विश्वभर में सड़क दुर्घटनाओं में जो अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, उसका एक प्रमुख कारण औसत आदमी की मानसिक सजगता में संव्याप्त कमी है। जैसे-जैसे जीवन की जटिलता बढ़ी है, वैसे ही वैसी मानसिक जागरूकता में ह्वास हुआ है और आज वह इस बिन्दु पर पहुँच चुकी है। जिसे चरम नहीं तो कम भी नहीं कहा जा सकता। इस कमी को ’ऑडियो विजुअल रिएक्शन टाइम’ द्वारा मापा जा सकता है।

मानवी मस्तिष्क सम्पूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है। उसके विभिन्न केन्द्रों और हिस्सों में जितना अधिक संतुलन, सक्रियता और प्रमुखता होगी, व्यक्तित्व भी उसी के अनुरूप संतुलित, सफल या असफल होगा। अधिकांश व्यक्तियों में देखा गया कि मस्तिष्क के दायें-बायें दोनों गोलार्धों के मध्य सामंजस्य का अभाव है। इस अभाव के कारण व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयों और परेशानियाँ पैदा होती है। विशेषज्ञ बताते है कि मस्तिष्क का बायाँ हिस्सा अनुभूति अंतर्ज्ञान, भावना, समझ के लिए जिम्मेदार है, जबकि दांया भाग तर्क, बुद्धि, विचार एवं विश्लेषण जैसी भूमिकाओं का निर्वाह करता है। इनमें परस्पर तालमेल न हो, तो स्थिति वैसी ही पैदा हो जाती है, जैसी परिवार के सदस्यों के बीच उक्त गुणों के अभाव में होती हैं इस अभाव को जानने और नापने के लिए जो यंत्र उपयोग में लाया जाता है, उसे ‘मिरर इल्यूजन’ कहते है उपयुक्त दोनों स्थितियों में सामंजस्य के लिए जप और ध्यान का अभ्यास काफी कारगर सिद्ध हुआ है।

‘न्यू माइण्ड न्यू बॉडी’ नामक अपनी पुस्तक में मनोचिकित्सक डॉ. बारगरा ग्राउन कहती है कि ‘बायोफीडबैक’ द्वारा मनःस्थिति की उत्तेजना की शिथिलीकरण में बदलना तथा मानसिक सजगता और मस्तिष्कीय सामंजस्य को आँकना इस युग की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं। सचमुच यदि मनःचेतना पर यंत्रों के माध्यम से ही सही, मनुष्य को योग साधना द्वारा नियंत्रण करने की विद्या सिखायी जा सके, तो इसे चिकित्सा विज्ञान का मानव जगत को अद्भुत कहा जाएगा।


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