मृत्यु की शरण (Kahani)

November 1998

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देवकन्या  को ब्रह्मा जी ने सृष्टि संतुलन बनाये रखने के लिये मनुष्यों को मार मार कर परलोक भिजवाते रहने का काम सौंपा। इस क्रूर कर्म को करने के लिये दयालू देवकन्या सहमत न थी। वह दुखी होकर धेनु का श्रम तप करने चली गई। तप पूर्ण हुआ तो विष्णु भगवान ने उसे वर माँगने के लिये कहा। देवकन्या ने प्राणियों को मारने के क्रूर कर्म वाली विधि व्यवस्था से छुटकारा दिलाने का अनुरोध किया। प्रजापति का विधान और निर्माण भी आवश्यक था तथा मृत्यु के करुण भरे इंकार का भी महत्व था सो उनने मध्यवर्ती मार्ग निकाला पाँच दूत मनुष्य लोक में भेजे १. असंयम २. आवेश ३.आलस्य ४. तृष्णा ५.अविवेक। उनने कहा तुम लोगों के भीतर घुसकर लोगों को खोखला करते रहना। धीरे धीरे वे स्वयं मरणासन्न स्थिति में पहुँच जाया करेंगे। देवकन्या मृत्यु से विष्णु भगवान ने कहा जब आत्मघात से दुखी लोग की शरण न पा सकें तब तुम उन्हें दयावश अपनी गोद में सुला लिया करना मृत्यु इस दया धर्म को अपनाने के लिये सहमत हो गई। तब से अब तक लोग अपने कुकर्मों से अकाल मृत्यु मरते रहते हैं। मृत्यु तो उन्हें कष्ट से छुटकारा दिलाने की दया भर दिखाती रहती है।


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