श्रमदेवता की उपासना से ही मिटेगा राष्ट्र का दारिद्रय

November 1998

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कहते हैं कि लक्ष्मी सदा पुरुषार्थियों का वरण करती है, इसलिए कभी लक्ष्मी को परिश्रम का प्रतीक माना जाता था। आजकल समय के साथ साथ परिस्थितियाँ बदली है। इस बदले परिवेश में उपर्युक्त सत्य में एक तथ्य यह भी जुड़ जाता है कि सर्वथा श्रम एवं पुरुषार्थहीन लोग भी सम्पन्न हो सकते हैं, पर यह असामान्य परिस्थितियों में तो यही देख जाता है कि जो श्रमशील हैं, वे संपन्न नहीं, तो अभाव ग्रस्त भी नहीं होते।

उस दिन इसके अनेकों उदाहरण देखने को मिलते रहे हैं डब्ल्यू. क्लीमेण्ट स्टोन का प्रसंग उन्हीं में से एक है। उसके प्रयास और पुरुषार्थ में कहीं-न कहीं कोई कमी अवश्य रह गई, अन्यथा आदमी अपना तो क्या, समाज और संसार तक के भाग्य को पलटने में समर्थ है।

वे कहते है कि जब उनका जन्म हुआ, उसके पूर्व ही पिता गुजर चुके थे। घर की आर्थिक स्थिति बहुत बुरी थी। पिता एक सामान्य क्लर्क थे, इसलिए जो कुछ धनोपार्जन करते, सब खान में ही चुक जाता, संग्रह की कोई गुंजाइश थी नहीं, सो उनके देहांत के बाद घर में फूटी कौड़ी तक न थी। माँ किसी तरह अपना पेट पाल लेता।

छोटी वय में अक्सर बच्चे खेलने कूदने में व्यस्त रहते हैं, पर घर की कठिनाइयों ने उन्हें दार्शनिकों की तरह गंभीर बना दिया। अब वे दिन भर अख़बार बेचते और शाम को कुछ विश्राम के बाद पढ़ने बैठ जाते इसमें माँ सहयोग करती।

अठारह वर्ष की उम्र तक क्लीमेण्ट काम करते रहे। इस समय तक उनके पास इतना पैसा इकट्ठा हो गया था कि वे स्वयं एजेन्सी ले सके। इसके साथ साथ बीमा पॉलिसियाँ भी बेचने लगे। जिस इमारत में उनने इन्श्योरेन्स कंपनी खोली थीं, वे उसे विश्वसनीय मानने गलते है। क्लीमेण्ट की इन्श्योरेन्स कंपनी के साथ यही हुआ। काम अधिक बढ़ जाने के कारण उनने कई कर्मचारी नियुक्त कर लिए। अब उनके सामान अनेक देशों में जाने लगे। कार्य विस्तार को देख उनने अख़बार का धंधा बंद कर दिया।

अब उनके पास सिर्फ दो व्यवसाय रह गए- बीमा कंपनी एवं कम्प्यूटर पुर्जों का निर्माण यह यत्र रक्तवाहिनियों में अथवा आहारनाल जैसे अवयवों में रेंगते हुए उन अवरोधों और तकलीफों का पता लगा और चित्र उतार सकेगा, जो अन्य उपायों से ज्ञात नहीं सकेगा, जो अन्य उपायों से ज्ञात नहीं हो पाते। इसके अतिरिक्त एक ऐसा रोबोट विकसित किया है, जो मरीज की सर्जरी कर सके।

इसके लिए एक ही कार्य करना पड़ेगा - हम श्रमदेवता की उपासना शुरू करें, साधन-सम्पदा मिलते चले जायेंगे। श्रम का लक्ष्मी से अटूट रिश्ता है। दरिद्र और कंगाल बने रहे या लक्ष्मी का आवाहन कर अपने कोठा भरे? फैसला हमें करना है, निर्णय हमें लेना है।


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