परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - संकल्पशक्ति की महिमा एवं गरिमा

November 1998

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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों, भाइयों! प्रकृति का कुछ ऐसा विलक्षण नियम है कि पतन स्वाभाविक है। उत्थान को कष्टसाध्य बनाया गया है। पानी की आप छोड़ दीजिए, नीचे की ओर बहता हुआ चला जाएगा, उसमें आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। ऊपर से आप एक ढेला जमीन पर फेंक दीजिए, वह बड़ी तेजी के साथ गिरता हुआ चला आएगा, आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। नीचे गिरने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती, कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। ऐसे ही संसार का कुछ ऐसा विलक्षण नियम है कि पतन के लिए, बुरे कर्मों के लिए आपको ढेरों साधन मिल जाएँगे, किताबें मिल जाएँगी और कोई नहीं मिलेगा तो आपके पिछले इन मामलों में बहुत मदद करेंगे। वे आपको गिराने के लिए बराबर प्रोत्साहित करते रहेंगे। पाप−पंक में घसीटने के लिए बराबर आपका मन चलता रहेगा। इसके लिए न किसी अध्यात्म की जरूरत है, न किसी की सहायता की जरूरत है। यह तो अपनी प्रकृति ‘नेचर’ ऐसी हो गयी है।

ग्रेविटी-गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी में है। ग्रेविटी क्या करती है? ग्रेविटी ऊपर की चीजों को नीचे की ओर खींचती है। न्यूटन ने देखा कि सेब का फल जमीन पर गिरा। जमीन पर क्यों गिरा? जमीन की एक विशेषता है, कशिश है कि ऊपर की चीज को वह नीचे की ओर खींच लेती है। नीचे की तरफ गिराने वाली कशिश इस संसार में इतनी भरी पड़ी है कि उससे अगर आप बचाव न करें, उसका विरोध अगर आप न करें, उसका मुकाबला अगर आप न करें, तो विश्वास रखिए आप निरंतर गिरेंगे, पतन की ओर गिरेंगे। आज हारा सारा समाज इसी तरफ चल रहा है। आप नजर उठकर देखिए, कहाँ ऐसे आदमी मिलेंगे, जो सिद्धान्तों को ग्रहण करते हों और आदर्शों की अपनाते हों। आप जिन्हें भी देखे, अधिकांश लोग बुराई की ओर चलते हुए दिखाई पड़ेंगे। पाप और पतन के रास्ते पर उनका चिंतन और मनन काम कर रहा होगा। उनका चरित्र भी गिरावट की ओर और उनका चिंतन भी गिरावट की ओर जाता हुआ दिखायी देगा। सारे जमाने में यही भरा हुआ पड़ा है।

ऐसी स्थिति में आपको क्या करना चाहिए? आपको अगर ऊँचा उठना है, तो आपको अपने भीतर से हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए। क्या हिम्मत करें? यह हिम्मत करें कि ऊँचे उठे वाले जिस तरीके से संकल्पबल का सहारा लेते रहे है और हिम्मत से काम लेते रहे है, व्रतशील बनते रहे है, आपको भी उसी तरीके से संकल्पवान और व्रतशील बनना चाहिए। आपने देखा होगा, जब जमीन पर से ऊपर चढ़ते है तो जीने का इंतजाम करते है, सीढ़ी का इंतजाम करते है, तब मुश्किल से धीरे-धीरे चढ़ते है। गिरने में क्या देर लगती है? आपको कोई ढेला ताकत लगानी पड़ती है? ओर गिराने में? गिराने में क्या देर लगेगी? अंतरिक्ष से उल्काएँ अपने आप गिरती रहती है जमीन की ओर। रॉकेट अगर ऊपर फेंकना हो? आपने देखा होगा कि करोड़ों रुपया खर्च करते है तब कहीं जाकर रॉकेट अंतरिक्ष में फेंकना संभव होता है। किन्तु गिरावट में? गिरावट में तो पत्थर के टुकड़े और उल्काएँ अपने आप जमीन पर आ जाती है, बिना किसी के बुलाये और बिना कुछ खर्च किए। पानी को कुएँ में से निकालने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है और कुएँ, में डालना हो, तो कोई मेहनत नहीं, डाल दीजिए। आपको यही करना पड़ेगा।

चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए आपने ढेरों-के ढेरों जो कुसंस्कार इकट्ठे कर लिए है, अब इन कुसंस्कारों के खिलाफ बगावत शुरू कर दीजिए। कैसे करें? अपने को मजबूत बनाइए। अगर मजबूत नहीं बनाएँगे तो पुराने कुसंस्कार फिर आ जाएँगे। मन को समझाएँ तो जरा-सी देर के लिए तो समझ जाएगा, परन्तु फिर उसी रास्ते पर आ जाएगा। अतः अपने मनोबल को मजबूत करने के लिए आपको कोई संकल्प ले लेना चाहिए। आपको संकल्प लेना चाहिए। आपको संकल्प-शक्ति का विकास कर लेना चाहिए। संकल्प शक्ति किसे कहते है? संकल्पशक्ति उसे कहते है, जिसमें यह फैसला कर लिया जाता है कि हमें यह तो करना ही है और हर हालत में करना है। हम करेंगे या मरेंगे। इस तरह का संकल्प अगर आप किसी तरीके से कर लें, तब आप विश्वास रखिए, आपका जो मानसिक निश्चय है वह आपकी आगे बढ़ा देगा। अगर आपका मनोबल और निश्चय दृढ़ नहीं है तो फिर आप जैसे ख्वाब देखते रहते है कि यह करेंगे वह करेंगे, तो आप कल्पना ही करते रहेंगे, परंतु कभी कुछ कर नहीं पाएँगे। कल्पनाएँ आज तक किसी की सफल नहीं हुई है और संकल्प किसी के अधूरे नहीं रहे।

इसलिए मित्रो संकल्पशक्ति का सहारा ने के लिए आपको व्रतशील बनना चाहिए आप व्रतशील बने। बस निश्चय कर लीजिए कि अच्छा काम करेंगे, जो भी हो चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो, यह कार्य अवश्य करेंगे। बुराइयों को छोड़ने के लिए संकल्प करने पड़ते है। जैसे आज से हम बीड़ी नहीं पीएँगे अब यह बहाना नहीं करेंगे कि नहीं साहब अगर बीड़ी नहीं पीयेंगे तो हमारा पेट साफ नहीं होगा। अरे पेट साफ नहीं होगा तो उसके लिए कोई दवा ले लो, पर संकल्प कर ली कि हम बीड़ी नहीं पीएँगे। अगर आपका मन कच्चा बना रहा कि हम बीड़ी पीना छोड़े या न छोड़े, आज और पी लें फिर कल छोड़ देंगे, परसों से छोड़ देंगे, इस तरह आप कभी नहीं छोड़ सकते। श्रेष्ठ काम करने के लिए, उन्नति की दिशा में आगे बढ़ने के लिए आपको संकल्प जल्दी-से-जल्दी लेना चाहिए कि हम ये काम करेंगे। संकल्प में बहुत बड़ी शक्ति है। जब कोई व्यक्ति यह संकल्प कर लेता है कि हम यह काम करेंगे, तब वह उस काम को कर लेता है। संकल्पवान व्यक्ति अच्छा काम जब तक पूरा नहीं कर लेते, तब तक कोई और काम नहीं करेंगे, ऐसा दृढ़ निश्चय कर लेते है। इसके लिए वे कोई-न-कोई व्रत निर्धारित कर लेते है जैसे नमक नहीं खाएँगे, भी नहीं खाएँगे, भी नहीं खाएँगे आदि। देखने में तो यह कोई खास बात नहीं है। आपके अन्य काम करने से नमक का क्या ताल्लुक है? अगर आप शक्कर नहीं खाएँगे तो क्या बात बन जाएगी। घी खान बंद कर दिया तो कौन-सी बड़ी बात हो गयी और इससे कौन-सी बाहरी तौर पर इन चीजों में तो दम नहीं है, लेकिन दम उस बात में है कि आपने इतना कठोर निश्चय कर लिया है और अपने सुनिश्चित योजना कना ली है कि इस कार्य की तो हम को करना ही करना है, तब आप बिल्कुल विश्वास रखिए, आपका काम पूरा हो करके रहेगा।

मित्रो, चाणक्य की बात आपको नहीं मालूम? चाणक्य ने यह निश्चय कर लिया था कि जब तक नन्दवंश का नाश न कर लूँगा, चोटी नहीं बांधूंगा और बाल बिखेर लिए थे। यह अपने व्रत या प्रतिज्ञा को याद रखने का एक प्रतीक है। लोग प्रतिज्ञा को याद रखने का एक प्रतीक है। लोग प्रतिज्ञाएँ भूल जाते है, लेकिन अपने अंदर अगर कोई ऐसा अनुशासन धारण कर ले तो आदमी भूलता नहीं, इसलिए कोई-न-कोई अनुशासन मान ले तो अच्छा है। जैसे एक बार ऐसा हुआ भगवान महावीर के पास एक बहेलिया गया। उसने कहा-हमें अध्यात्म की दीक्षा लेनी है आप से तो भगवान ने कहा-आपको दक्षिणा में अहिंसा का पालन करना पड़ेगा और माँस खाना छोड़ना पड़ेगा। तो उसने कहा कि हम तो बहेलिए है, यह सब तो हम नहीं कर पाएँगे। बच्चों को कहाँ से खिलायेंगे पशु-पक्षी नहीं मारेंगे तो? महावीर ने उसको सलाह दी कि कम से कम एक जीव का माँस खान छोड़ दे, चाहे वह किसी का भी हो। कम से कम एक प्राणी को न मारने का संकल्प ले, तब भी तेरा अहिंसा का प्रण मान लिया जाएगा। बहुत विचार करता रहा बहेलिया, फिर उसने एक जीव का पाया, जिसके ऊपर वह दया करने को तैयार हो गया और उसको न मारने की कसम खाने को तैयार हो गया। उसका नाम था कौआ। कौए को नहीं मारूँगा, कभी नहीं मारूँगा, कौए पर दया करूँगा बस उसने यह संकल्प ले लिया और गुरुदीक्षा ले ली। रोज विचार करने लगा कि कौए पर दया करनी चाहिए। कौआ बेचारा क्यों कष्ट दे, उसके भी तो बाल-बच्चे होंगे, उसको भी तो भगवान ने रचा है। हम अपने छोटे-से लोभ के लिए कौवे को क्यों मार डाले? बस यह विचार जब जड़ जमाता हुआ चला गया, तो धीरे-धीरे बहेलिया ऐसा ही गया कि वह सब प्राणियों पर दया करने लगा और अंततः जैन धर्म का एक बहुत बड़ा तीर्थंकर बन गया। कैसे? दिशा जो मिल गयी।

बुरे कर्म छोड़ेंगे और अच्छे कर्म करेंगे, इसके लिए मन का संकल्प कमजोर न पड़ने पाये और हम भूल-भुलैयों में न पड़ने पायें, इस लिए कोई-न-काई व्रत लेना बहुत जरूरी है। अनुष्ठान में यही होता है। अनुष्ठान में जप की संख्या तो उतनी ही होती है, परन्तु उसके साथ-साथ व्रत और संकल्प लेने पड़ते है। जैसे उपवास का एक, ब्रह्मचर्य का दो, मौन का तीन, जमीन पर सोने का चार, अपनी सेवाएँ अपने आप करने का पाँच आदि। ऐसा क्यों करते है? ये बातें मनोबल को बढ़ाने की प्रक्रियाएँ है। इससे आदमी का संकल्प है। संकल्प को जीवन में से अगर आप निकल दे तो फिर क्या काम बनेगा? राणा प्रताप ने निश्चय कर लिया था कि वह थाली में भोजन नहीं करेंगे। उन्होंने संकल्प किया था कि जब तक आजादी प्राप्त न कर लेंगे तब तक पत्तल में रखकर भोजन करेंगे। आपने कभी गाड़ी वाले लुहार देखे है? गाड़ी वाले लुहार अब भी पत्तल पर भोजन करते है, थालों में नहीं करते। वे अपने आपको राणाप्रताप का वंशज बताते है और यह कहते है कि महाराणा ने प्रतिज्ञा ली थी कि हम घर में नहीं घुसेंगे, बाहर जंगल में घूमेंगे और पत्तल में भोजन करेंगे, इसलिए हम भी घर में नहीं घुसेंगे, बाहर ही घूमते रहेंगे। जब उन्हें आजादी नहीं मिली, फिर हम क्यों सुखों का भोग करेंगे। इस तरीके से संकल्प कर लेना, व्रतधारण कर लेना कई बार बहुत उपयोगी और बहुत अच्छा होता है। अनुष्ठानकाल में नमक का त्याग कर देने वाली बात शक्कर का त्याग कर देने वाली बात, हजामत न बनाने वाली बाज, चमड़े के जूते-चप्पल न पहनने वाली बात ये कई बातें ऐसी है, जो आदमी के संकल्प को और मजबूत कर देती है। आपको आपने संकल्प मजबूत बनाने चाहिए।

संकल्प को पूरा करने में कई बातें, कठिनाइयाँ सामने आती है, तो कोई बड़ी बात नहीं। ये बातें संकल्प को और मजबूत बना देती है। संकल्पबल जब न हो तब? हिम्मत न हो तब? तब आदमी बिना पैंदी के लोटे की तरह इधर-उधर भटकता फिरता है। मनोबल बढ़ाने के लिए कोई-न-कोई अनुशासन जीवन में रखना बहुत जरूरी है। गाँधीजी ने तैंतीस वर्ष की उम्र में ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली थी और यह कहा था कि हम तो यह निभाएँगे। उस महामानव में भी कुछ-न-कुछ तो सच्चाइयाँ रही होंगी।

दूसरों की तरह से शायद उनका मन भी भीतर-ही-भीतर डगमग-डगमग करता रहा होगा, लेकिन उनके संकल्पबल ने कहा नहीं हमने यह निश्चय कर लिया है कि “रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाएँ पर वचन न जाई।” इस तरह का संकल्प जब उन्होंने ले लिया, तब उसे निभाया भी। कमजोरियों से लड़ा भी गया। जब संकल्प न लिया होता तब? व्रत न लिया होता तब? निश्चय न किया होता तब? तब फिर कुछ भी संभव नहीं था। संकल्प धारण करने के बाद तो आदमी की आधी मंजिल पार हो जाती है। आपको भी अपने मनोबल की वृद्धि के लिए आत्मानुशासन वह लाठी है, जिसे बरसात में फिसलने वाले और पहाड़ पर चढ़ने वाले लेकर चलते है और उससे जहाँ पर फिसलन होती है, अपने आपको बचा लेते है, सहारा मिल जाता है। संकल्प उस लाठी की तरह है, जो आपको गिरने से बचा लेती है और आपको ऊँचाई पर चढ़ने, आगे बढ़ाने के लिए हिम्मत प्रदान करती है।

मित्रो, शीरी-फरहाद की बात सुनी है न आपने? राजा ने फरहाद से यह कहा कि अगर आप बत्तीस मील लम्बी नहर खोदकर यहाँ तक ला सकें, तो फिर आपकी शादी शीरी से हो सकती है। पहाड़ पर ऊँचाई पर एक तालाब तो था, पर वह शहर से इतनी दूरी कि जिससे पानी के लिए बड़ी किल्लत रहती थी। फरहाद ने भी कह दिया कि हम “करेंगे या मरेंगे।” उसने जब निश्चय कर लिया कि हमको नहर खोदनी है तब? तब वह कुल्हाड़ी और हथौड़ी लेकर चल दिया। उसने पहाड़ काटना शुरू कर दिया। बाहर के आदमी आते, कुछ दिन मजाक होती रही, कुछ मखौल उड़ाते रहे। कोई पागल कहता, कोई बेवकूफ कहता रहा, लेकिन जब देखा कि इस आदमी ने निश्चय कर लिया है कि हम यह काम करके रहेंगे तो लोगों में सहानुभूति भी पैदा हो गयी। संकल्प वालों के प्रति लोगों में सहानुभूति भी होती है और वह सहानुभूति के अधिकारी भी होते हैं जिनके पीछे संकल्पशक्ति नहीं है वह मजाक के, उपहास के पात्र भी बनते है। फरहाद की लोगों ने मदद की। लोग आये और स्वयं भी कुल्हाड़ी हथौड़े चलाने लगे और नहर खोदने में मदद करने लगे। समय तो थोड़ा लग गया, लेकिन फरहाद नपे नहर खोदकर वहाँ तक ला दी, जहाँ तक राजा ने बतायी थी।

साथियों, यह सब संकल्पबल की बातें मैं कह रहा हूँ। संकल्पबल आपको प्रत्येक काम में प्रयोग करने की जरूरत है। ब्रह्मचर्य के संबंध में, खान-पान के संबंध में। समयदान और अंशदान के संबंध में आपको कोई-न-कोई काम ऐसे करने चाहिए, जिसमें कि यह प्रतीत होता हो कि कुछ तो ऐसा संकल्प आपने लिया है, जिसके निर्वाह करने में आय लगे हुए है। यही मनोबल बढ़ाने का तरीका है। मनोबल से बढ़िया और कोई आपके पास शक्ति नहीं है पैसे की ताकत अपने आप में सही है, बुद्धि की ताकत अपने आप में ठीक है, लेकिन ऊँचा उठने का जहाँ तक ताल्लुक है, वहाँ मनोबल और संकल्पबल को ही सब कुछ माना गया है। संकल्पबल और मनोबल से ज्यादा बढ़ करके आदमी के व्यक्तित्व को उभारने वाली, प्रतिभा को उभारने वाली, उसके चरित्र को उभारने वाली और कोई वस्तु है ही नहीं। संकल्पबल की वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि आप छोटे-छोटे कुछ ऐसे नियम या व्रत थोड़े समय के लिए निर्धारित कर लें कि यह काम जब तक न कर लेंगे तब तक हम यह नहीं करेंगे, मसलन शाम को हम किताब के इतने पन्ने जब तक नहीं पढ़ लेंगे, तब तक सोयेंगे नहीं। इसी तरह हम सबेरे का भजन-उपासना जब तक पूरी न कर लेंगे, खाएँगे नहीं। यह क्या है? यह व्रतशीलता के साथ में जुड़ा हुआ थोड़ा-सा अनुशासन है।

अनुशासन उन संकल्पों का नाम है जिसमें किसी सिद्धांत का तो समावेश होता ही है, लेकिन उस सिद्धांत के साथ-साथ में, उस कार्य को पूरा करने के साथ-साथ में ऐसा भी कुछ फैसला किया जाता है, जिससे कि अपने आप में कुछ स्मरण बना रहे। जैसे जब तक हम मैट्रिक पास न कर लेंगे तब तक चप्पल नहीं पहनेंगे। इससे क्या होता है? इससे बराबर यह दबाव बना रहता है कि यह काम करना था, तो इसीलिए नहीं पहनते। यह बात बार-बार आपको याद दिलाती रहेगी कि हमको मैट्रिक करना है, अच्छे नम्बर से पास करना है, दिन भर पढ़ना है। चप्पल पर जब भी ध्यान जाएगा, अरे हम चप्पल कैसे पहन सकते है, हमने तो संकल्प किया हुआ है, व्रत लिया हुआ है। व्रत और संकल्प आदमी की जिंदगी के लिए बहुत बड़ी चीजें है। आप ऐसा ही किया कीजिए। आप को यहाँ से जाने के बाद कई काम करने है, बहुत अच्छे काम करने है, लेकिन वह चलेंगे नहीं। आपका मन बराबर ढीला होता चला जाएगा। उसको ठीक करने के लिए आप एक विचारो की सेना और विचारो का श्रृंखला बनाकर तैयार रखिए। विचार ही विचारों को काटते है। जहर को जहर से मारते है। काँटे को काँटे से निकालते है। कुविचार जो आपके मन को हर वक्त तंग करते रहते है, उसके मुकाबले पर एक ऐसी सेना खड़ी कर लीजिए, जो आप के बुरे विचारों से लड़ सकने में समर्थ हो।

मित्रो, अच्छे विचारो की भी एक सेना है। जब भी बुरे विचार आते है, कामवासना के विचार आते है, व्यभिचार के विचार आते हैं, तो फिर आप ऐसा किया कीजिए कि उसके मुकाबले एक और सशक्त सेना खड़ी कर लिया कीजिए, अच्छे विचारों वाली सेना। जिसमें आपको यह विचार करना पड़े कि हनुमान कितने सामर्थ्यवान हो गए ब्रह्मचर्य की वजह से। भीष्म पितामह कितने समर्थ हो गए ब्रह्मचर्य के कारण। आप शंकराचार्य से लेकर के अनेक संतों, महात्माओं की बातें याद कर सकते है, जिन्होंने अपने को अच्छे विचारों में लगा लिया। अगर उन्होंने अपने को कुविचारों से लगा लिया होता तो फिर बेचारे संकल्पों की क्या बिसात थी जो पूरे होते। कुसंस्कार हावी हो जाते और जो संकल्प किया था वह एक कोने में रखा रह जाता। सदाचार के लिए आप विचार करें तो कैसे करें? आप उनके लिए एक बड़ी सामर्थ्य वाली सेना बना लीजिए। एक सेना बना लीजिए जो भी बुरा विचार आए उसे काटने के लिए। लोभ के विचार आएँ लालच के और बेईमानी के विचार आएँ तो उन्हें काटने के लिए आप ईमानदारी के समर्थन के लिए उनके इतिहास उदाहरण और शास्त्रों के महापुरुषों के वचन संग्रह करके रखिए कि ईमानदारी की ही कमाई खाएँगे बेईमानी की कमाई हम नहीं खाएँगे। इस तरह आपने अगर विचारों की सेना तैयार कर ली है तो वह आपके लिए स्वर्ग होगा। चाहे बेईमानी के विचार आएँ कामवासना के विचार आएँ, ईर्ष्या के विचार आएँ पतन के विचार आएँ तो उनकी रोकथाम करने के लिए आप अपनी सेना को तैयार कर लें और सामने से अड़ा दें।

मित्रों लड़ाई लड़े बिना काम कैसे चलेगा? दुर्योधन से कहीं लड़े बिना काम चला था? रावण से कही लड़े बिना चला था क्या? कंस से लड़े बिना काम चला था? लड़ाई मोहब्बत की है, हिंसा की है अथवा अहिंसा की है कैसी भी है वह बात मैं नहीं कह रहा। मैं तो वह कह रहा हूँ कि आपको अपनी बुराइयों और कमजोरियों के मुकाबले के लिए भी और समाज में फैले अनाचार से लोहा लेने के लिए भी हालात में आपको ऐसे ऊँचे विचारों की सेना बनानी चाहिए जो आपको भी हिम्मत देने में समर्थ हो सके और आपके समीपवर्ती वातावरण में भी नया माहौल पैदा करने में समर्थ हो सके। वस्तुतः वह संकल्प भरे विचार ही होते है जो व्यक्ति को कही-से-कही पहुँचा देते है। हजारी किसान ने बिहार में यह फैसला किया था कि मुझे हजार आम के बगीचे लगाने है। अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए वह घर से निकल पड़ा। उसने यह व्रत लिया कि जब तक उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता मैं जमीन पर ही सोऊँगा, नंगे पैर रहूँगा। उसने निश्चय कर लिया कि हर गाँव में कम-से-कम एक बगीचा अवश्य लगाना है। गाँवों में पहुँचता लोगों से मिलता और कहता कि लीजिए मैं कही से पौध ले आता हूँ गड्ढे भी मैं ही खोद देता हूँ बस आप पौध को उसमें लगा दीजिए। उसकी रखवाली का इंतजाम आप कर लीजिए।पौधों में पानी लगाने की जिम्मेदारी आप उठा लीजिए।इस तरीके से वह हर एक आदमी को समझाता रहा और लोगों ने उसकी बात मान ली। क्यों मान ली? क्योंकि वह संकल्पवान था। यदि संकल्पवान नहीं होता और ऐसे ही व्याख्यान देते फिरता कि भाईसाहब। पेड़ लगाइए हरियाली उगाइये तब? तब फिर कोई लगाता क्या? सरकार कितना प्रचार करती है पर कोई सुनता है क्या? सुनने के लिए यह बहुत जरूरी है कि जो आदमी उस बात को कहने के लिए आया है वह संकल्पवान हो संकल्पवान ही जीवन में सफल होते है।

संकल्पवान कौन होता है? संकल्पवान का अर्थ एक बार फिर सुन लीजिए। संकल्पवान यानी ऊँचे सिद्धांतों को अपनाने का निश्चय और उस निश्चय को रास्ते में कोई व्यवधान न आने पावे, इसलिए थोड़े-थोड़े समय के लिए ऐसे अनुशासन-व्रत अपनाना जिससे कि स्मरण बना रहे मनोबल बढ़ता रहे गिरने न पावे। संकल्प को याद करके अपनी गौरव-गरिमा बनाए रखें इसके लिए आपको व्रतशील स्वरूप होना जरूरी है। पीले कपड़े पहनने के लिए आप से कहा गया है तो यह व्रतशील होने जरूरी है पीले पहनने के लिए आप से कहा गया है तो यह व्रतशील होने की निशानी है। दूसरे लोग पीले कपड़े नहीं पहनते है पर आपको पहनना चाहिए। इसका मतलब यह है कि आप पर दुनिया का कोई दबाव नहीं है और दुनिया की नकल करने में -अनुकरण करने में आपको कोई दिलचस्पी नहीं है। वह क्या है? यह व्रतशीलता की निशानी है। माघ के महीने में प्रयाग में त्रिवेणी के किनारे एक महीने के लिए लोग व्रतशील होने के लिए जाते है और कल्पवास करते है कल्प साधना करते है। वहाँ वे वह निश्चय कर लेते है कि हम जब तक यहाँ रहेंगे अमुक कार्य नहीं करेंगे। आप भी इस कल्पसाधना शिविर में आये है तो व्रतशील हो करके रहिए निश्चय का पालन करते रहिए। यह दृढ़ निश्चय कर लीजिए कि जो नियम बनाया है उसका बराबर पालन करते रहेंगे। भोजन जैसा भी है उसी से काम चला लेंगे। यह नहीं कि साहब। इसका जायका अच्छा नहीं है हम तो कचौड़ी खाएँगे। भाई साहब ऐसा मत कीजिए

संकल्पवान बनिए।

मित्रों, संकल्प में अकृत शक्ति है। संकल्पवान ही सफल हुए है और संकल्पवान ने ही संसार की नाव पार लगाया है। आपको भी संकल्पवान और व्रतशील होना चाहिए।नेकी आपकी नीति होनी चाहिए और उदारता आपका फर्ज होना चाहिए। ओर उदारता आपका फर्ज होना चाहिए। आपने अगर ऐसा कर लिया हो तब फिर दूसरा कदम यह उठाना कि हम काम नहीं किया करेंगे समय-समय पर छोटे-छोटे व्रत लिया कीजिए। हमारे गायत्री परिवार में यह रिवाज है कि गुरुवार के दिन नमक नहीं खाएँगे। ब्रह्मचर्य से रहेंगे दो घंटे मौन रहेंगे।वहाँ इन सबको यह नियम पालन करने पड़ते है। आप भी कुछ ऐसे ही व्रतशील होकर इन नियमों का पालन करते रहेंगे और साथ में किसी श्रेष्ठ उत्तरदायित्व का ताना-बाना जोड़कर रखेंगे तो आपका व्यक्तित्व पैना होगा। आपके विचार सफल होंगे। आपकी प्रतिभा निखरेगी और आप एक अच्छे व्यक्ति में शुमार होंगे अगर आप आत्मानुशासन और व्रतशीलता का महत्व समझेंगे और उसे अपनाने की हिम्मत करेंगे तब। अगर इस तरह का एक कदम भी आप आगे। बढ़ा सकेंगे तो आपको विश्वास दिलाते है कि हम आत्मोन्नति चलेंगे। इन्हीं शब्दों के साथ आज की बात समाप्त।

युगपरिवर्तन का संकेत देती युगऋषि की लेखनी

“अपना निर्माण ही युगनिर्माण की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। जब इन भावनाओं को हम सभी गहराई से अपने अंतःकरणों में जमाने लगेंगे तो उसका सामूहिक स्वरूप एक युग-आकांक्षा के रूप में प्रस्तुत होगा और उसकी पूर्ति के लिए अनेकों देवता अनेकों महामानव नर-तन में नारायण रूप धारण करके प्रकटित हो पड़ेंगे। युगपरिवर्तन के लिए जस अवतार की आवश्यकता है वह पहले आकांक्षा रूप में ही अवतरित होगा उसी अवतार का सूक्ष्म स्वरूप हमारा युगनिर्माण सत्संकल्प है। इसके महत्व का मूल्याँकन हम सभी को गंभीरतापूर्वक करना चाहिए।”

“युगनिर्माण योजना साझे की खेती है सात-पाँच का छप्पर है। सब मिलकर कटिबद्ध होंगे तो ही काम चलेगा। घड़ी के पुर्जे की तरह अखण्ड ज्योति परिवार के हर पुर्जे को अपने जिम्मे का काम निपटाने के लिए प्रसन्नता और उत्साहपूर्वक तत्पर हो जाना चाहिए। “

“इस युग की सबसे बड़ी शक्ति संगठन है। इतिहास साक्षी है कि जब कभी युगपरिवर्तन जैसे महान और व्यापक कार्यों की योजना बनी है तो उसके लिए संगठन करना पड़ा है। लंकाविजय गोवर्द्धन-धारण-बौद्धधर्म प्रसार, आदि की कथाएँ पाठकों को स्मरण है। वे जानते है कि संघशक्ति ही इस धरती का सबसे बड़ा चमत्कार है। बड़े कार्यों के लिए बड़ी शक्ति चाहिए और बड़ी शक्ति सदा से संगठन में सन्निहित रही है। युगनिर्माण जैसे महान कार्य के लिए भी सदा शक्ति ही अपेक्षित है। इसीलिए प्रारंभिक रूप अखण्ड ज्योति परिवार को भी एक धर्म संगठन का रूप दिया जा रहा है।

विभीषिकाओं का यह दावानल जब चारों ओर गगनचुम्बी लपटों के साथ उठता चला आ रहा हो, तब विवेकशील प्रबुद्ध आत्माओं के लिए यह कठिन होगा कि वे आँखें बंद करके यह सब देखते रहें और इस दावानल को बुझाने के लिए कुछ भी प्रयत्न न करें।”

“आत्मसुधार और आत्मविकास में लगे हुए किशोर-किशोरी कई वर्षा तक अपना जीवन साधनामय बनाकर जब विवाह के बंधन में बँधेंगे और प्रबुद्ध नई पीढ़ी के उत्पादन का ध्यान रखेंगे तो अर्जुन-द्रौपदी के संपर्क से उत्पन्न अभिमन्यु की तरह घर-घर में सुसंस्कारी महापुरुष जन्मेंगे। उनके जन्मजात सुसंस्कार थोड़े-से शिक्षण से ही खराद किए हुए हीरे की तरह दमकने लगेंगे

“नये समाज की सभ्य समाज की, नवयुग की रचना करने के लिए हमें एक ही प्रक्रिया पूर्ण करनी होगी और वह है-भावपरिवर्तन

“युगनिर्माण की पृष्ठभूमि राजनैतिक एवं सामाजिक नहीं वरन् आध्यात्मिक है। इतना महत्वपूर्ण कार्य इसी स्तर पर उठाया या बढ़ाया जा सकता है।”

“अगले दिन बहुत ही उलट-पुलट से भरे है। उनमें ऐसी घटनाएँ घटेंगी ऐसे परिवर्तन होंगे जो हमें विचित्र भयावह एवं कष्टकर भले ही लगे पर नए संसार की अभिनव रचना के लिए आवश्यक है।”

“युग कोई ऐसी वस्तु नहीं जो एक नियत समय पर ही आएगी और फिर चिरकाल के लिए दृष्टिपथ से ओझल हो जाएगी। हम अपना सतयुग और कलियुग अपनी प्रेरणा से आप बना सकते है। जब मनुष्य इस जाग्रत जीवन के अधिकार को भूलकर सूक्ष्म स्थान पर पहुँच जाता है वासना-कामना-संस्कारों आदि से नाता तोड़ लेता है उसी समय सतयुग का पुनः उदय हो जाता है।”

“हम दिव्यलोक के अधिकारी है इस बात का हमें फिर से ज्ञान प्राप्त करना होगा। इसी से नवयुग-सतयुग की स्थापना होगी। तब हम ज्ञानरूपी अमृत का कलश लेकर संसार में ही अमरलोक की लीला करेंगे।

“वर्तमान विचारक्रांति महाकाल का तीसरा नेत्र ही है जा दावानल का रूप धारण कर अज्ञान युग की सारी विडम्बनाओं इन उपलब्धियों के बाद विश्वशान्ति के मार्ग में कोई भी कठिनाई शेष न रह जाएँगी। “

“ अगले दिनों संसार का समग्र परिवर्तन करके रख देने वाला एक भयंकर तूफान विद्युत गति से बढ़ता चला आ रहा है जो इस सड़ी दुनिया को समर्थ-प्रबुद्ध स्वस्थ और समुन्नत बनाकर ही शांत होगा।”

“प्रस्तुत शताब्दी एवं इसका अंतिम दशक अत्यधिक महत्वपूर्ण है। युगपरिवर्तन का-मानवजाति के भावनात्मक नवनिर्माण का श्रेय भारतवर्ष को ही मिलने वाला है। इस शताब्दी के अंत तक भारत अपना प्राचीन सर्वस्व संसार के सामने पुनः प्रकट करेगा। इसके प्रयत्न और प्रभाव से यह संसार आज की तुलना में बिल्कुल बदला हुआ प्रतीत होगा। पिछले दिनों रामकृष्ण परमहंस एवं योगीराज श्री अरविंद के रूप में दो खण्डावतारों ने इस दिशा में अपनी रहस्यपूर्ण भूमिका संपादित की है तीसरा अवतरण युगनिर्माण आंदोलन के रूप में आजकल चल रहा है। इसमें महाकाल भी काम कर रहा है और महाकाली भी। पूर्णावतार लगभग तीस वर्ष की कठिन अवधि के उपरांत प्रकट होगा महान व्यक्तियों एवं महान परिवर्तन के रूप में इस दिव्यप्रयोजन को पूरा करने के लिए महाकाल और महाकाली का आवेश प्रवेश हो रहा है इन्हें हम अभिनंदनीय सौभाग्य मानकर सराहें और शतशत प्रणाम करें यही इच्छा होती है।”

विश्व स्तर पर तनाव छाया दिखाई पड़ता है, और लगता है कि कहीं इस सदी का अंत आते-आते हमारा अस्तित्व रह भी पाएगा क्या? वस्तुतः यह बड़ा चुनौती भरा समय है।

आगे के डेढ़-दो वर्षों का समय द्रष्टा-मनीषियों भविष्यवक्ताओं ने और भी खराब बताया है एवं परिस्थितियों के और भी विषम होने की बात कही है। ऐसे में परमपूज्य गुरुदेव द्वारा मानवमात्र की रक्षा के लिए आरंभ किए गए ‘युगसंधि महापुरश्चरण जो अपनी प्रौढ़ता की स्थिति में पहुँच गया है, को और भी अधिक प्रखर व व्यापक बनाए जाने की आवश्यकता हम सभी को अनुभव करनी चाहिए। अकेले परमपूज्य गुरुदेव ही थे जिनने कहा कि हम फिजाँ को बदलेंगे। दैवीप्रयास ही इस युग की विभीषिकाओं का समाधान कर सकेंगे, पुरुषार्थ को और बढ़ाना चाहिए। अखण्ड ज्योति के फरवरी, १९९. के अंक में परमपूज्य गुरुदेव ने लिखा है “ इन दिनों नियन्ता कुम्हार की तरह अपना कालचक्र तेजी से घुमा रहा है। उद्देश्य एक ही है नए युग के अनुरूप नए मनुष्य गढ़ना।” यदि हमें इन वाक्यों पर दृढ़ और तीव्रता लाने का संकल्प कर अभी से कटिबद्ध हो जाना चाहिए।

ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान जो युगसंधि महापुरश्चरण के रूप में १९८८ की आश्विन नवरात्रि से शान्तिकुञ्ज से आरंभ हुआ था, अब सारे विश्व में प्रायः ५ से ६ करोड़ व्यक्तियों के माध्यम से संपन्न हो रहा है। इस बीच हमारे इस विराट अनुष्ठान की एक पूर्णाहुति नवम्बर, १९९५ में आँवलखेड़ा, आगरा (परमपूज्य गुरुदेव की जन्मस्थली) पर प्रायः पचास लाख से अधिक लोगों द्वारा संपन्न की जा चुकी है। गायत्री परिवार परमपूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण १९९. एवं परमवंदनीय माताजी के महाप्रयाण १९९४ के बाद इस अर्द्धपूर्णाहुति के माध्यम से विराटतम होता चला गया है एवं सारे विश्व में उसका संदेश पहुँच चुका है। अब महापूर्णाहुति में मात्र एक वर्ष एवं कुछ माह शेष रह गए है।

गुरुसत्ता की घोषणा के अनुसार सन् २... की वसंत पंचमी (१. फरवरी, २...) से सारे भारत व विश्वभर के चुने हुए स्थानों पर महापूर्णाहुति संपन्न होनी है, इस प्रकार यह पूर्णाहुति वर्ष होगा जिसका समापन कार्तिकपूर्णिमा सन् २... में शान्तिकुञ्ज हरिद्वार के आस-पास के विराट तीर्थ क्षेत्र में महापूर्णाहुति की अंतिम आहुति के रूप में संपन्न होकर ही होगा। इस वर्ष के आगमन के पूर्व के वर्ष १९९९ को सर्वाधिक विकट, भीषण परिस्थितियों, संभावनाओं से भरा समय मानते हुए इसे साधना वर्ष के रूप में मनाए जाने की घोषणा केन्द्र द्वारा की जा रही है। यह २२ जनवरी, १९९९ वसंत पंचमी से आरंभ होकर १. फरवरी, २... तक भारत व विश्वभर में चलने वाले ढाई-ढाई दिन के अखण्ड जप प्रधान आयोजनों के रूप में संपन्न होगा, ऐसी योजना बनायी गयी है। अंतिम पूर्णाहुति के पूर्व अपने साधनात्मक पुरुषार्थ की आहुति देने की तरह की यह प्रक्रिया इस एक वर्ष में और गति लेगी, ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए। जो कार्य विगत दस वर्षा में संपन्न हुआ है, उससे कहीं सौ गुना अधिक इस अगले एक वर्ष में पूरा करने का लक्ष्य निश्चित किया गया है। इससे गायत्री चेतना का, युगशक्ति का विस्तार गाँव-गाँव घर-घर तक होता चला जाएगा। समूह बन के जागरण के माध्यम से एक सुरक्षाकवच साधकों के चारों ओर विनिर्मित होकर संभावित विभीषिकाओं से रक्षा का विधान भी बन सकेगा। साथ-साथ मिशन का संगठनात्मक आधार भी मजबूत हो इस स्थिति में आ सकेगा कि महापूर्णाहुति का गोवर्द्धन सबकी लाठी के सहारे उठ सके।

वसंत पंचमी २२ जनवरी, १९९९ के पूर्व सारे भारतवर्ष में स्थान-स्थान पर संस्कार महोत्सव एवं प्रज्ञापुराण कथा-आयोजन संपन्न हो रहे है। इसके लिए प्रायः सत्तर कार्यकर्ताओं को लेकर ८ टोलियाँ विगत १५ सितम्बर से कार्यक्षेत्र में फैल गयी है। ये कार्यक्रम पूर्व की तरह चलते रहेंगे-सभी को साधनावर्ष की महत्ता बताते रहेंगे एवं महापूर्णाहुति के स्वरूप को खोलते हुए इन आयोजनों की संपन्न किया जाता रहेगा। उनके साथ-साथ इनके ही समानांतर भारत भर में साधना वर्ष हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रायः ४८ स्थानों पर १५ नवम्बर से १५ जनवरी के मध्य रखे जा रहे है। शान्तिकुञ्ज के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की टोलियों कं द्वारा ये पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम उन स्थानों पर संपन्न होने जा रहे है। जहाँ परिजनों का अपना स्वयं का स्थान है तथा जहाँ कार्यकर्ता स्तर के परिजनों का अनुपात सघन है। इन प्रशिक्षण आयोजनों द्वारा जो ५-५ दिन के होंगे साधनावर्ष के ढाई दिवसीय आयोजनों की पूरी रूप-रेखा बनायी जाएगी। विधि-व्यवस्थाएँ समझाई जाएँगी, ताकि महापूर्णाहुति का सारा संगठनात्मक आधार एवं संभावित चौबीस स्थानों (जहाँ महापू�


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