तुम सुख-दुख की अधीनता छोड़ उनके ऊपर अपना स्वामित्व स्थापन करो और उसमें जो कुछ उत्तम मिले, उसे लेकर अपने जीवन को नित्य नया रसयुक्त बनाओ जीवन को उन्नत करना ही मनुष्य का कर्तव्य है।
-परमपूज्य गुरुदेव