सिद्धियों का सच्चा अधिकारी

November 1998

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वे तीन भाई थे। उनका कोई न था। तीनों ही अनाथ थे। गरीबी से तंग आकर गाँव-गाँव रोजी-रोटी की तलाश में भटकना ही उनकी दिनचर्या बन गयी थी। एक दिन काफी भटकने के बाद उन्हें एक बूढ़ा राहगीर मिला जब बूढ़े को उनकी दुःखद कथा का पता चला तो उसने सहानुभूतिपूर्वक कहा- आज से तुम तीनों मेरे बेटे हुए और मैं तुम्हारा पिता। मैं तुम्हें सहारा दूँगा। बस तुम लोग सच्चाई का रास्ता मत छोड़ना।

तीनों भाइयों ने बूढ़े की बात मानने का वचन दिया तथा उसके साथ चल पड़े। राह में उन्हें एक सुन्दर घर दिखाई दिया। करीब ही आम का बगीचा, था, जहाँ फलों से लदे वृक्षों के बीच एक अत्यंत सुन्दर लड़की थी। उसे देखते ही सबसे बड़ा भाई बोला-काश-ऐसी सुंदर मेरी पत्नी होती तो जीवन में खूब सुख मिलता।” इतना सुनते ही बूढ़ा बोला-तो आओ, इससे तुम्हारा रिश्ता किए देते है। खुशी से जिंदगी गुजारो, परन्तु सच्चाई का रास्ता मत भूलना।” वे लोग लड़की के घर पहुँचे बड़े भाई की शादी हो गयी और वह घर का मालिक बन गया।

बूढ़ा अब अपने मुँह बोले दोनों छोटे बेटों को साथ लेकर आगे बढ़ चला। वे पहले की तरह जंगलों और मैदानों को पार करते हुए आगे बढ़ते रहे। चलते-चलते रास्ते में एक खूबसूरत घर दिखाई दिया। घर के पास तालाब था, जिसके पीछे एक पनचक्की थी। घर के पास ही एक युवती अपने कार्य में व्यस्त थी। ऐसी कार्यनिपुण युवती को देखते ही मँझले भाई ने कहा, “काश ऐसी ही युवती मेरी पत्नी होती। दहेज में तालाब और पनचक्की मिलती। मैं भी चैन से जीवन गुजारता।

बूढ़े फकीर ने मँझले भाई की भी शादी उस लड़की से करा दी। विदा लेते समय बूढ़े ने कहा-बेटे खुश रहो, पर सच्चाई का साथ कभी न छोड़ना।”

वे आगे चल पड़े। तभी तभी छोटे भाई तथा बूढ़े को रास्ते में एक झोंपड़ी दिखाई दी। झोपड़ी में से कराहटों की मन्द मन्द आवाजें आ रही थी। छोटे भाई से रहा न गया। उसने झोपड़ी के अन्दर देखा- एक वृद्ध व्यक्ति खाट पर पड़ा था। लगता था कि उसे कोई लम्बी बीमारी थी। छोटे भाई का मन दया से द्रवित हो गया। उसने फकीर से कहा- “बाबा! मेरा मन है कि मैं अपना जीवन दीन दुःखियों की सेवा में लगाऊँ।” तब बूढ़ा फकीर बोला!” शाबाश ऐसा ही होगा। बस बेटे सच्चाई के रास्ते पर चलते रहना।” इस तरह तीनों भाइयों को सुव्यवस्थित कर बूढ़ा अपनी राह चल पड़ा। तीनों भाई अपनी-अपनी तरह से जिंदगी जीने लगे।

इस बीच बूढ़ा फकीर तप साधना में अपना समय काट रहा था। एक दिन उसे अपने मुँहबोले बेटों की याद आयी और उसने उनकी खोज खबर लेने का निश्चय किया। वह एक गरीब भिखारी का वेश बनाकर अपने सबसे बड़े पुत्र के पास पहुँचा। उसने गिड़गिड़ाते हुए उससे खाना माँगा। लेकिन लालची पुत्र ने बेरुखी से कहा-अरे बूढ़े! खाना क्या मुक्त में मिलता है? खाना चाहिए तो मेहनत मजदूरी करो और बदले में खाना लो।”

जबकि सच यह था कि उसकी तिजोरियाँ धन से भरी पड़ी थीं। उसके गोदाम अन्न से भरे थे, लेकिन उसका मन दरिद्र था। बूढ़ा फकीर अत्यंत दुःखी हुआ और उसको क्रोध भी आया। वह खाली हाथ वहाँ से चल पड़ा। थोड़ी दूर जाकर उसने पलटकर बड़े भाई की सम्पत्ति पर एक नजर डाली और उसकी सारी दौलत मिट्टी के ढेर में बदल गयी।

अब बूढ़े फकीर ने मँझले भाई के द्वार पर जाकर भोजन की याचना की बेटा, एक चुटकी आटा दे दे, मैं बूढ़ा भिखारी दाने-दाने को तरस रहा हूँ। मँझला बेटा बोला, “मेरे पास तो खुद ही अपने लिए आटा नहीं है, तुम्हें कहाँ से दूँ। बूढ़े बाबा यहाँ से भी खाली हाथ चल दिये। थोड़ी दूर जाकर पलट कर देखा तो पनचक्की और घर धू-धूकर जल उठे। अंत में बूढ़े बाबा अत्यंत दुःखी हृदय से अपने छोटे पुत्र के पास पहुँचे। छोटा पुत्र अब तक पहले जैसे ही अपने सेवाकार्य में जुटा था। जब बूढ़े बाबा ने भोजन की गुहार लगायी तो उसने प्रेमपूर्वक कहा-आप झोपड़ी के अंदर चलिए। हम दोनों साथ ही साथ भोजन करेंगे। अंदर पहुँचकर सबसे पहले छोटे बेटे ने उसके कपड़े बदलवाए। जब बूढ़ा फकीर कमीज बदल रहा था तब छोटे भाई ने देखा कि उसकी छाती में एक बहुत बड़ा घाव हैं। बूढ़े को भरपेट भोजन कराने के बाद उसने घाव के बारे में पूछा।

बूढ़े ने कहाँ-यह घाव अत्यंत गहरा है और मैं तो बस अब एक दिन का ही मेहमान हूँ।”

“हे भगवान! क्या इसकी कोई दवा नहीं, छोटे भाई ने पूछा। बस एक दवा है, लेकिन उसे कोई देगा नहीं हालाँकि उसे हर कोई दे सकता हैं बूढ़े ने कहा। छोटे भाई ने बताने के लिए जब बहुत आग्रह किया तो भिखारी के वेश में खड़े बूढ़े फकीर ने कहा-यदि कोई अपनी छाती के रक्त की कुछ बूँदें इस घाव पर छिड़क दे, तो घाव अपने आप सूख जाएगा।

छोटे भाई ने बिना एक पल की देरी लगाए पास में पड़ा चाकू उठा लिया और उसने स्वयं की छाती पर मारने का प्रयास किया, परंतु वह मार पाता, इसके पहले ही फकीर ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और बोला-बेटे मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।” अब तो लड़के ने भिखारी की ओर ध्यान से देखा बूढ़े बाबा मुस्करा रहे थे। वे बोल “बेटे तीनों भाइयों में अकेले तुम ही सच्चाई के मार्ग पर चले, इसलिए आज मैं तुम्हें अपनी सारी सिद्धियाँ और तप शक्ति का अधिकारी बनाता हूँ। मन लगाकर सेवाकार्य में निरत रहना। यही मानव जीवन का सार है।” यह कहकर बूढ़े बाबा नजरों से ओझल हो गये।


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