प्रस्तुत अंक के संपादकीय में बारहवर्षीय युगसंधि महापुरश्चरण के अंतिम दो वर्षों की क्रियापद्धति विस्तार से दी गयी है। इक्कीसवीं सदी का आगमन जिन विषम परिस्थितियों से गुजर कर हो रहा है, इसकी चर्चा परमपूज्य गुरुदेव आज से प्रायः पैंतीस वर्ष पूर्व से सतत् अखण्ड ज्योति में अपनी लेखनी एवं अमृतवाणी से करते रहे है। आश्विन नवरात्रि १९८८ की पावन बेला में इसी परिप्रेक्ष्य में एक ऐतिहासिक महाअभियान नवयुग की से युगशक्ति के उद्भव हेतु आरंभ किए गए इस साधना अनुष्ठान में प्रायः २४ लाख से २४. लाख लोगों ने प्रतिवर्ष भाग लिया एवं एक अर्द्धपूर्णाहुति आँवलखेड़ा आगरा (गुरुसत्ता की जन्मभूमि) में नवम्बर, १९९५ की कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर संपन्न हुई।
अब द्वितीय एवं अंतिम महापूर्णाहुति सामने आ पहुँची है। इसे वसंत पंचमी सन् २...- १. फरवरी से आरम्भ होकर वर्ष भर चलना है। इसमें प्रायः चौबीस किए जाने की संभावना है। इस विराट आयोजन की पूर्व तैयारी हेतु पूरे भारत व विश्व में १९९९ की वसंत पंचमी २२ जनवरी से २... की वसंत पंचमी तक साधनावर्ष मनाए जाने एवं इसके लिए साधना प्रशिक्षण सब अभी १५ नवम्बर, १९९८ से आरंभ कर २२ जनवरी, १९९९ तक सारे भारत एवं विश्व में संपन्न कर गायत्री परिवार का संगठनात्मक ढाँचा सशक्त बनाए जाने की रूप-रेखा बनी है। ऐसे स्थान जहाँ से पाँच दिवसीय प्रशिक्षण केन्द्र के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं द्वारा संपन्न किए जाएँगे।
भारत में प्रायः ४८ होंगे। साधनावर्ष में होने जा रहे ढाई दिवसीय आयोजनों का कार्यभार सँभालने वाले केन्द्रों का निर्धारण शान्तिकुञ्ज से किया गया है व सबकी सहमति मँगा ली गयी है। प्रत्येक केन्द्र का निर्धारित क्षेत्र भी यहीं से बना दिया गया है। इन केन्द्रों पर जो पाँच दिवसीय शिक्षण सत्र चलेंगे, ये प्रशिक्षकों का, सक्रिय कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करेंगे। इन प्रशिक्षण सत्रों का एक-एक घण्टा अत्यधिक महत्वपूर्ण व भावी योजनाओं की क्रियापद्धति समाये हुए होगा। परिजनों से अनुरोध है कि वे अपने स्थान-क्षेत्र के प्रचारात्मक आयोजनों, सांस्कृतिक महोत्सवों, श्रीमद्प्रज्ञापुराण आयोजनों को संपन्न तो करें भागीदारी भी करें, परन्तु इन साधना प्रशिक्षण आयोजनों को सर्वोच्च वरीयता दें। इनके माध्यम से ही इन विराट महोत्सवों का अनुयाज-कार्यकर्ताओं का गाँव-गाँव तक फैला तंत्रिका का विकास संभव हो सकेगा। सर्वाधिक ध्यान सभी का इस तथ्य पर डालने के लिए प्रस्तुत संपादकीय लिखा गया है। कृपया ध्यान से पढ़ें।
अखण्ड ज्योति पत्रिका के रूप के आगामी दो अंक बड़े कलेवर में विशेषांकों के रूप में प्रकाशित हो रहे है। दिसंबर १९९८ का अंक साधना विज्ञान के सैद्धांतिक तत्त्वज्ञान वाले पक्ष पर प्रकाश डालेगा, तो जनवरी १९९९ का अंक साधना विज्ञान के व्यावहारिक पहलुओं में साधनामय जीवनपद्धति का रहस्योद्घाटन करेगा। आशा है परिजन पाठक इस पत्रिका के विस्तार फैलाव में कोई कसर शेष न रखेंगे।
*समाप्त*