खुदा का पैगाम बाँटने वाली संत राबिया

November 1998

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इसके जन्म के समय माँ की आँखें छलक आयी, बाप का सीना दरक उठा। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि इस नन्हीं-सी मासूम बच्ची को कैसे पालेंगे? आखिर कुछ भी तो नहीं थी उनके पास। जब वह पैदा हुई, तब नाभि पर चुपड़ने के लिये घर में तेल का तुपका भी नहीं था और न ही कोई कपड़ा इस इलाही बच्ची के बदन पर लपेटने के लिये था। घर का दिया भी तेल के बिना एक कोने में पड़ा अल्लाह का रंग देख रहा था।

इसे जन्म देने वाली ने उसके बाप से कहा हमसायों से थोड़ा-सा तेल माँगकर ले आओ। पर वह खुदा का बन्दा हमसायों के बंद दरवाजों को हाथ लगाकर पलट आया और उसने कह दिया कि किसी ने दरवाजा नहीं खोला। हकीकत जबकि यह थी कि उस खुदा के बंदे का संकल्प था कि खुदाबंद के अलावा किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना।

उस रात उसे सोते हुये एक गबी आवाज आकाशवाणी सुनाई पड़ी। तेरी यह बच्ची बहुत मकबूलियत हासिल करेगी जिसके कारण मेरा उन्मत्त भक्त-मण्डली के एक हजार लोग बख्श दिये जायेंगे। साथ ही उस रब्बी ईश्वरीय आवाज ने कहा वालिये बसरा बादशाह के पास कागज पर लिखकर मेरा पैगाम भेज दे कि तू हर रोज मुझे सौ बार दरुद भेजता है और जुम्मे की रात को चार सौ बार। पर पिछली रात तू दरुद भेजना भूल गया।

इसलिये काफिर प्रायश्चित के तौर पर तू इस रूक्के वाले को चार सौ दीनार दे दे।

उस सपने से जागकर उसके वालिद साहब बहुत रोए। पर जिस तरह फरमान हुआ था, सारा ख्वाब कागज पर लिखकर एक दरबान की मार्फत वालिये

बसरा को भेज दिया। यह फरमान पढ़कर वालिये बसरा ने चार सौ दीनार उसके वालिद को दिये और दस हजार दिरहाम जरूरतमंदों और फकीरों बाँट दिये। इसी के साथ उसने खुदा को शुक्रगुजार किया कि उसने उसे याद किया है।

लेकिन वक्त के साथ हालात फिर बदल गये। बसरा में जब अकाल पड़ा, उस दौरान उसके माँ बाप दुनिया में नहीं रहे। तीन बड़ी बहिनें थी जो रोटी का जुगाड़ ढूँढ़ती पता नहीं कहाँ चली गयी। उस हालात में किसी जालिम ने उसको पकड़कर अपनी गुलाम बना लिया और फिर कुछ समय बाद थोड़ी सी रकम के बदले उसे बेच दिया।

खरीदने वाले ने उसके सामने मुश्किल मशक्कत वाले ढेरों काम बिछा दिये। एक दिन कामों से थकी सी वह कही जा रही थी कि गिर गयी और उसके हाथ में चोट आ गयी। उस हालात में उसने सज़दा करते हुये पहली बार स्वयं को खुदा से मुखातिब किया। या अल्लाह! बेसहारा तो मैं पहले ही थी, अब हाथ भी टूट गया.......... पर कोई बात नहीं तेरी रजा में रहूँगी।”

उसी समय दिव्य आवाज आयी- राबिया! गमगीन न हो। तुझे वह रुतबा मिलेगा जिससे वालिये मुल्क भी रश्क करेंगे।”

यह वह आवाज थी जिसने राबिया की रगों में जान डाल दी और मालिक के घर पहुँचकर वह खिदमत में लग गयी, दिन में रोज़ा रखती और रात भर इबादत करती।

एक रात मालिक की नींद टूट गयी, उसने हैरानी से देखा कि कहीं से कोई रोशनी आ रही है। रोशनी का मुकाम ढूँढ़ता वह उस ओर गया, जहाँ एक कोने में राबिया सज़दे में थी ओर उसके इर्द गिर्द नूर फैला हुआ था। उसने आवाज भी सुनी उस समय राबिया अल्लाह से कह रही थी अगर मेरा अख़्तियार होता तो मैं सारा वक्त तेरी इबादत में गुजार देती, पर तूने मुझे किसी और चाकर बना दिया। इसलिये तेरी दरगाह में आते देर हो जाती है।

यह सुनकर उसका मालिक परेशान हो उठा कि मुझे तो खुद ही इस अल्लाह की नेकबंदी की खिदमत करनी चाहिए और मैं उलटे इससे खिदमत करवाता हूँ। सुबह होते ही उसने राबिया की आजाद कर दिया। इस तरह मालिक के घर उसने जो हुज़रा बनाया था उस हुज़रे से बाहर आकर वह गाती बजाती खुदा की इबादत करने लगी।

उसके थोड़े दिनों बाद ही एक रोज वह मक्का शरीफ हज करने के लिये चल दी तो रास्ते में खुदा से बातें करते करते उसने एक सवाल किया। खुदा बंद! मैं तो खाक की बनी हूँ और काबा पत्थर से पर मैं तो सीधे ही तुझसे मुखातिब होना चाहती हूँ।

उस वक्त जवाब मिला-राबिया दुनिया के निज़ाम को इसी तरह रहने दे। मेरा नूर कोहिनूर वह पहाड़ जिस पर हजरत मूसा ने खुदा का जलवा देखा था। से न सहा गया। वह टूटकर टुकड़े टुकड़े हो गया, तू भला किस तरह सहेगी?

राबिया ने कहा -मुझे मकान की नहीं मकीन की जरूरत है यानि कि मकान में रहने वाले की! मुझे हुस्ने काबा से ज्यादा जमाले खुदाबन्दी के दीदार की तमन्ना है। वह पल था जब दिव्य रोशनी राबिया की रगों में उतर गयी।

वह लोगों को खुदा का पैगाम देने लगी। लोगों ने इस महान संत राबिया के बताये सूत्र पर मनन करना शुरू कर दिया। ऐसी थी वह संत राबिया जिसका नाम इतिहास में अमर हो गया।


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