क्रान्तिकारी विचार ही मनोभूमियाँ बदलते हैं और बदली हुई मनोभूमि में ही महान जीवन एवं समर्थ समाज की संभावना समाविष्ट रहती है।
पुस्तकालय सच्चे देवमंदिर हैं। उनमें महापुरुष की आत्माएँ पुस्तकों के रूप में प्रतिष्ठापित रहती है। सत्संग के लिए पुस्तकालय से बढ़कर विद्वान और निर्मल चरित्र व्यक्ति दूसरा नहीं मिल सकता। अपने वंशजों के एक उत्कृष्ट पुस्तकालय से मूल्यवान वस्तु और कुछ हो ही नहीं सकती। उत्तराधिकार में और कुछ छोड़े अथवा नहीं पर एक अच्छे प्रेरणाप्रद पुस्तकालय की घर में स्थापना करके उस धरोहर को बच्चों, वंशजों के लिए छोड़ ही जाना चाहिए।