सहयोग सहकार का अनोखा पाठ

November 1998

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वह गाँव का सबसे धनी किसान था। उसके पास तीन सौ बीघा जमीन थी। गाय-भैंस तथा भेड़-बकरियों के रेवड़ उसके पास थे। नकद रुपये जितने उसके पास थे, गाँव में किसी व्यक्ति के पास नहीं थे। वह कम ब्याज पर लोगों को रुपये उधार भी देता था। इसीलिए उसकी प्रसिद्धि ‘बोहरा’ के रूप में हो गयी थी।

उसके चार बेटे थे किशन बोहरा ने अपने चारों बेटों के लिए एक सी चार हवेलियाँ बनवा दी थी। घर में सभी प्रकार की सम्पन्नता थी, लेकिन फिर भी कोई चिन्ता बाकी रह गयी थी तो वह चारों बेटों का आपसी वैमनस्य। उसने अपने बेटों को बहुत समझाया, किंतु वे आपस में झगड़ना छोड़ते ही न थे। एक बार जब वह बीमार हुआ, तब उसने मन में विचार किया कि अब मैं कुछ ही दिनों का मेहमान हूँ, पता नहीं अब किस दिन मेरे प्राण पखेरू उड़ जाएँ।

यही सब सोचते हुए उसने अपने चारों बेटों को बुलाया। उन्हें पास बिठाकर वह कहने लगा-बेटों-मैं अब काफी बूढ़ा हो गया हूँ और मेरा अंतिम समय समीप है। मैं शान्ति से प्राण त्याग सकूँ। इसलिए तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। पहली बात तो मैं तुमसे यही चाहता हूँ कि तुम परस्पर झगड़ा मत करो। एकता से रहो, संगठित रहो। दूसरी बात यह है कि मेरे मरने के बाद तुम घर के बँटवारे पर आपस में झगड़ना मत। मेरे पलंग के पायों के नीचे मिट्टी के चार बरवों को तुम स्वेच्छा से एक एक ले लेना, वही तुम्हारे हिस्से की जायदाद होगी। अब तुम प्रण करो कि भविष्य में एकता व प्रेम से रहोगे। उसके चारों बेटों ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए एकता से रहने का संकल्प लिया।

कुछ दिन बाद किशन बोहरा का देहांत हो गया। तेरह दिन तक पूर्ण विधि विधान से उसके बेटों ने उसके क्रियाकर्म किए। उसके बाद चारों भाइयों ने पलंग के पायों के नीचे से वे वार बरवे निकाले, जो उसने अपने बेटों की वसीयत के रूप में रखे थे। बरवे देखकर वे चारों अचंभे में पड़ गये। क्योंकि उन बरवों में से एक बरवे में कुछ सिक्के, दूसरे बरवे में कुछ हड्डियाँ, तीसरे में मिट्टी तथा चौथे में कुछ कंकड़ रखे थे।

वसीयत की इस गुत्थी को उन चारों भाइयों में से कोई भी सुलझाने में समर्थ नहीं था। चारों बरवे निकालकर वे एक दूसरे का मुँह देखने लगे, मानो आपस में पूछ रहे हो कि यह बँटवारा हमारी वसीयत है या फिर कोई पहली। पूरे गाँव में यह चर्चा गर्म हो गयी कि किशन बोहरा के पलंग के चारों पायों के नीचे से जो बरवे निकले है, उनमें सिक्के, हड्डियाँ, मिट्टी तथा कंकड़ हैं और कुछ नहीं।

गाँव के बहुत से लोग आए किंतु बटवारे की इस गुत्थी को कोई भी सुलझाने में समर्थ नहीं था। उनके गाँव से थोड़ी दूर पर एक गाँव था-उदयपुर उदयपुर गाँव के पटेल पूरणसिंह की ख्याति चारों ओर इस विशेषता के कारण फैली हुई थी कि वे जटिल से जटिल समस्या का समाधान पलभर में कर देते थे। उन चारों भाइयों में से सबसे बड़ा भाई एक दिन अपने तीनों भाइयों को लेकर पटेल पूरणसिंह के घर गया और उन्हें अपनी आपबीती कह सुनायी। पटेल पूरणसिंह ने उन चारों को आश्वस्त किया कि उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा। पटेल ने चारों बरवे अपन पास रखकर उन चारों को पाँच दिन बाद आने के लिए कहकर विदा किया।

पाँच दिन बाद वे चारों भाई जब पटेल पूरणसिंह के पास आए, तो वह बटवारे की गुत्थी सुलझाते हुए बोला जिस बरवे में मिट्टी है, उसे स्वीकार करने वाले के हिस्से में पूरी जमीन रहेगी। तुममें से जो भाई सिक्कों वाला बरवा स्वीकार करेगा वह नकदी तथा घर के सोने-चाँदी का मालिक होगा। हड्डियों वाले बरवे का स्वामी घर के तमाम मवेशियों का हकदार होगा और जिसके हिस्से में कंकड़ों वाला बरवा आएगा। वह सारे मकानों का अधिकारी होगा।

चारों भाइयों को बँटवारे का रहस्य समझ में आ गया। किंतु बड़ा भाई रामदीन कुछ सोचकर उदास हो गया। पटेल ने उसकी उदासी भाँपते हुए पूछा, क्यों भाई! अब क्या नयी समस्या आ गयी, जो तुम उदास हो गये।

रामदीन कहने लगा-मेरे हिस्से में सारी नकदी तथा घर के जेवरात आ गये मान लो। यहाँ तक तो बात ठीक है किंतु मकान, जमीन तथा पशुधन पर तो मेरा कोई हक नहीं होगा और एक किसान के लिए तो ये सब आवश्यक हैं यह बात तो आप भी भली-भाँति जानते है, क्योंकि वो भी किसान हैं इस तरह अलग-अलग तो हम सभी अधूरे रहेंगे।

अब रामदीन की बातों को उसके भाइयों ने भी समझा वे भी इस बटवारे को स्वीकारने से झिझकने लगे।

पटेल पूरणसिंह बोले-भाइयों इस बटवारे का अर्थ है कि तुम अलग-अलग न होकर साथ-साथ रहो। यह तो तुम्हारे पिता ने तुम चारों को सहयोग सहकार का अनोखा पाठ पढ़ाया है। तुम्हारे पिता स्वर्गीय किशन बोहरा बहुत बुद्धिमान व्यक्ति थे। तुम्हें वे हमेशा संगठित रहने को आगाह करते रहते थे और इस बटवारे से एक बार फिर वे तुमको रास्ता दिखा रहे हैं कि बिखरो मत, एक रहे, आपस में प्यार से रहो। परस्पर सहयोग सहकार में ही तुम सबका भला हैं।

पटेल की बात उन सभी ने गाँठ बाँध ली। अपने पिता और पटेल की बुद्धिमानी की प्रशंसा करते हुए उनके पाँव अपने घर की ओर मुड़ चले। पर उन सभी का मन उस अनोखे पाठ को मनन करने में तल्लीन था।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118